आतंकी साजिश के इल्जाम में 13 युवकों को गिरफ्तार करने की चीखती-चलिलाती रिपोर्ट सभी अखबारों-चैनलों ने दिखाई पर इसी दिन आतंकवाद के इल्जाम में सलाखों में बंद लोगों को बाइज्जत बरी किये जाने की खबर सबने छुपा दी.
फर्रह शाकेब
आतंकवाद एक ऐसा शब्द जो अब देश दुनिया की आंतरिक सुरक्षा से कहीं अधिक सामन्तवाद, मनुवाद और पूंजीवाद के इस दौर में राजनीतिक दलों की लाभ, हानि, वोटबैंक और सत्ता के गणित से कहीं अधिक जुड़ गया है.
और इससे भी कहीं अधिक जुड़ा है अपनी तथाकथित संस्कृतयों की तबाही के डर से प्रतिशोधात्मक रवैय्ये और व्यवाहार के साथ एक धर्म विशेष, एक समुदाय विशेष की नकारात्मक छवि निर्माण और भारत में चाणक्य निति का अनुसरण करते हुए एक बड़े समुदाय के सामने एक काल्पनिक शत्रु के अस्तित्व को जीवंत रखने की मंशा और इरादों के साथ.
13 युवाओं की गिरफ्तारी
कल एक तरफ जब दिल्ली स्पेशल सेल के कर्ताधर्ता दिल्ली और उसके आसपास के इलाक़ों से कॉम्बिंग ऑपरेशन चला रहे हैं और परिणामस्वरूप 13 युवकों को गिरफ्तार किया गया जिसपर जैश ए मोह्हमद का आतंकी होने का लेबल चस्पां कर दिया गया है दूसरी तरफ देश की सर्वोच्च न्यायालय 23 साल बाद जयपुर की विशेष टाडा अदालत द्वारा 28 फ़रवरी 2004 को सुनाये गए फैसले को निरस्त करते हुए डॉक्टर जलीस अंसारी और अब्र ए रहमत को तमाम आरोपों से बा इज़्ज़त कर रही थी.
देश की आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद से जुड़े इन दोनों ही विषयों पर आज के अखबारों ने विशेषकर हिंदी अखबारों ने रिपोर्टिंग की है वो इन हिंदी अखबारों
के संघी अथवा उग्र हिंदूवादी होने की दिशा में कहीं कोई शंका बाक़ी नही छोड़ती है.
दैनिक हिन्दुस्तान भागलपुर संस्करण अपने पहले पन्ने पर जैश ए मोहम्मद से सम्बन्ध रखने के आरोपी युवकों के सम्बन्ध में शीर्षक लगाता है..
“” दिल्ली में दबोचे गए 13 आतंकी,
सभी आरोपी जैश ए मोहम्मद के सदस्य
ब्लास्ट की साज़िश थी, विस्फोटक बरामद””|
दैनिक जागरण भागलपुर संस्करण ने शीर्षक लगाई है
” जैश ए मोहम्मद के तीन आतंकी गिरफ्तार
दिल्ली मॉड्यूल्स से जुड़े 10 संदिग्धों को भी हिरासत में लिया गया
दिल्ली, एनसीआर, मार्केट व मॉल में धमाका करने की थी साज़िश””
दैनिक आज ने भी ऐसा ही कुछ लिखा है ..।
लेकिन इन अखबारों में बेगुनाह 23 साल तक जेल की काल कोठरियों में बंद रहने वाले डॉक्टर जलीस और अब्र ए रहमत की कोई कहानी कहीं नहीं है.
अभी कल ये युवक केवल गिरफ्तार हुए हैं और इनके बारे में तरह तरह की कहनियां मीडिया के स्रोतों से जनता तक पहुँचने लगी हैं जबकि इन विश्वसनीय स्रोतों का कोई आधार है इसकी कोई गारंटी नहीं जबकि मुम्बई के 1993 के बम धमाकों में गिरफ़्तार डॉक्टर जलीस और अब्र ए रहमत के ताल्लुक़ से पूरा का पूरा फैसला सामने है.
आतंक के आरोप से बरी, पर कोई खबर नहीं
ज्ञान हो के जयपुर की बिशेष टाडा अदालत के जज वी.के.माथुर ने 28 फ़रवरी 2004 को अपने फैसले में अब्र ए रहमत को 20 साल और डॉक्टर जलीस अंसारी को 15 साल क़ैद ए बा मुश्क़्क़्त की सज़ा सुनाई थी लेकिन अरशद मदनी के नेतृत्व वाली जमीयत उलेमा ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया की दो सदस्यीय पीठ के जस्टिस अर्जुन कुमार सीकरी और जस्टिस राजेश कुमार अग्रवाल ने दिसम्बर 1993 में विभिन्न ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में निचली अदालत के इस फैसले को निरस्त करते हुए सभी आरोपों से बरी कर दिया.
इसी केस के अन्य दो आरोपियों में डॉक्टर हबीब और जमाल अल्वी को टाडा अदालत ने ही बरी कर दिया था लेकिन राजस्थान सरकार ने इनकी रिहाइ के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी, इस मुद्दे पर महाराष्ट्र जमीयत उलेमा लीगल सेल के कर्ताधर्ता गुलज़ार आज़मी साहेब की टिप्पणी ये है की आज दोनों मामलों की सुनवाई हुई और दोनों में फैसला हमारे पक्ष में रहा है.इसके लिए सीनियर एडवोकेट रत्नाकर दास की सेवा ली गयी थीं जब के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड इरशाद हनीफ पहले ही दिन से इस केस की मॉनिटरिंग कर रहे थे.
लेकिन इस केस के सम्बन्ध में किसी एलक्ट्रोनिक मीडिया या हिंदी मीडिया में कहीं कोई खबर नहीं है जबकि कल गिरफ्तार युवकों के सम्बंध्द में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के चीखते चिल्लाते एंकर दर्शकों को पूर्वाग्रह की ज़मीन पर तैयार की गयी कहानियां सूना रहे हैं तो प्रिंट हिंदी मिडिया के धार्मिक उन्मादी द्वेषी रिपोर्ट तरह तरह की फ़र्ज़ी कहानियाँ उकेर रहे हैं.
पत्रकारिता या पूर्वाग्रह
सबसे खतरनाक रुझान आतंकवाद से सम्बंधित केसों में हिंदी मिडीया और एलेक्ट्रानिक मिडीया की तरफ ये देखने को आता रहां है अब तक के मीडया गिरफ्तार होने के बाद आरोपी को कोर्ट में पेश होने से पहले “” आतंकवादी”” घोषित कर देता है. पिछले 15 सालों के अंदर ऐसे ऐसे सैकड़ों मामले सामने आएं हैं जिसमे मीडिया की मुस्लिम दुश्मनी खुल कर सामने आई है .अब लगातार कई दिन तक हिंदी अखबारों मेमिन युवाओं के बारे में तरह तरह की कहानियां छपते रहेंगे लेकिन इन कहानियों का कोई स्रोत आपको नही मिलेगा.
इस बहु सांस्कृतिक बहु धर्मीय देश और भारत जैसे विशालतम लोकतान्त्रिक राष्ट्र में लोकतंत्र की अस्मिता और इसके नैतिक मूल्यों की रक्षा की दृष्टि स मिडीया का ये रवैया और अपने ही देश के नागरिकों के विरुद्ध ऐसा घिनौना षड्यंत्र और धार्मिक पूर्वाग्रह रखने वाले पत्रकार समाज और देश के लिए घातक हैं.