बिहार में भाजपा की हार के अनेक कारण बताये जा रहे हैं. लेकिन मीडिया में बात रखने में महागठबंधन के प्रवक्ताओं ने जिस तरह से भाजपा के प्रवक्ताओं को पछाड़ा उस पर चर्चा नहीं हुई.
रवि वर्मा
बिहार में बीजेपी क्यों हारी इसके लिए कई कारण रहे जैसे की आरक्षण पर भागवत का बयान , महँगाई , नीतीश लालू का सफल जातीय कार्ड , दादरी , दाल , बीफ , विकास के मुद्दे से भटकाव.
लेकिन मुझे लगता है एक और बड़ा कारण था जिसपर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है . और वो कारण है मीडिया में बात रखने का तरीका .
पूरे चुनाव में बिहार में रहा और अब दिल्ली लौट गया हूँ .इस दौरान मैंने बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं से लेकर प्रदेश के प्रवक्ताओं का विभिन्न चैनलों पर डिबेट सुना . जहाँ जद यू के नेताओं को अपनी बातों को सुलझे और शांत तरीके से जनता के बीच रखते देखा , यहाँ तक कि राजद जैसी पार्टी के भी कई नेताओं प्रवक्ताओं की शालीनता ने हैरत में डाल दिया . वही दूसरी ओर बीजेपी समेत एनडीए के तमाम नेता मानो आसमान में उड़ते दिखाई दिए .
गठबंधन के सी त्यागी , पवन वर्मा ,राजीव रंजन , नवल शर्मा , अजय आलोक , मनोज झा , प्रेमचंद मिश्रा जैसे धुरंधरों के सामने एनडीए में संबित पात्र , सुधांशु त्रिवेदी जैसे कुछेक लोगों को छोड़ दे तो अधितर खासकर बिहार एनडीए का कोई प्रवक्ता कहीं दूर दूर तक नहीं ठहरता दिखाई दिया .
एक तो की जानकारी के स्तर पर एकदम अधकचरा . बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं के नॉलेज का स्तर जहाँ सराहनीय था वहीँ बातों के पेश करने का तरीका दंभ भरा , लेकिन उनके प्रादेशिक प्रवक्ताओं के तो क्या कहने . एक से एक नमूने दिखाई दिए पूरे बिहार एनडीए में . सब के सब पढाई – लिखाई और नॉलेज लेवल से कोसों दूर , केवल शोर – शराबा और चिल्लपों .
एक यादव नामधारी बीजेपी के नेता को जब टीवी पर बोलते देखा तो लगा की अब बीजेपी को डूबने से कोई नहीं बचा सकता . इसी तरह कुशवाहा , पासवान और मांझी सभी की पार्टी में एक से एक नमूने दिखाई दिए , सब के सब एकदम बकवास .
किसी को इस बात की परख ही नहीं की कैसे तार्किक तरीके से नीतीश लालू को बेनकाब किया जाये . बस केवल सतही आलोचना . जंगलराज , यहाँ मर्डर वहां बलात्कार , सब बेकार की बातें . खासकर मांझी की पार्टी और बीजेपी में एक से एक कॉमेडियन की भरमार दिखी . जद यू-राजद गठबंधन के सी त्यागी , पवन वर्मा ,राजीव रंजन , नवल शर्मा , अजय आलोक , मनोज झा , चन्दन यादव , प्रेमचंद मिश्रा जैसे धुरंधरों के सामने एनडीए में संबित पात्र , सुधांशु त्रिवेदी जैसे कुछेक लोगों को छोड़ दे तो अधिकांश खासकर बिहार एनडीए का कोई नेता प्रवक्ता कहीं दूर दूर तक नहीं ठहरते दिखाई दिया .
बीजेपी में संबित पात्रा और सुधांशु ने अपनी विद्वता और सुलझेपन से काफी प्रभावित किया . राजद , कांग्रेस और जद यू में कई सारे सुलझे प्रवक्ता नेता अपनी बातों को तर्क और विश्वास के साथ जनता को समझाते दिखाई दिए . पता नहीं शायद एनडीए ने तर्क की अपेक्षा दूसरों को अपमानित करने का लगता है अपने नेताओं को कोई फंडा सिखाया था . खैर जो हो , इसकी कीमत तो चुकानी ही थी . बिहार एनडीए को चाहिए कि वह पढ़े लिखे और सुलझे लोगों को मीडिया टीम में रखे .