हमारे बच्चे भूख से नहीं मरते.घर की सूखी रोटी खा कर भी नहीं मरते पर सरकारी जहरीले अनाज खा कर जान गंवा बैठते हैं. आज फिर दर्जन भर बच्चे मर गये.
छपरा के मसरख प्राइमरी स्कूल के बच्चों ने जिस तरह से जान त्यागी है हमारी भ्रष्ठ व्यवस्था और लूट तंत्र का नमूना है. यह जग जाहिर है कि स्कूलों में मिलने वाले मिड डे मील जितना घटिया खाना देकर पैसों की हेराफेरी का निकृष्ठ नमूना है. इसके लिए सरकार ने जांच बिठा दी है. यह ठीक है. पर यह किसे नही मालूम कि ऐसे घटिया अनाजों की आपूर्ति के लिए जिला आपूर्ति पदाधिकारी से लेकर शिक्षा पदाधिकारी और स्कूलों के हेड मास्टर तक की मिलीभगत से ही यह संभव हैं.
इन बिलखती माओं को इंसाफ की जरूरत है जिन्होंने पढाई की उम्मीद में अपने नौनिहालों को स्कूल भेजा पर उनके बच्चे जहरीला भोजन खा कर जान गंवा बैठे.
आखिर क्या वजह है कि हमारे घर के खाने में मरे चूहे, छिपकिली नहीं मिलते. हम घर में भूखे रह जायें तो रह जायें लेकिन सड़े गले बदबूदार भोजन नहीं खा सकते. लेकिन जैसे ही बात सरकारी स्कूलों के मिड डे मील की आती है हम ऐसे अनाज की आपूर्ति करते हैं जिन्हें जानवरों को भी नहीं खिलाया जा सके.
सवाल सिर्फ जवाबदेही तय कर देने मात्र की नहीं है. सवाल हमारे नैतिक मूल्यों के घोर पतन का भी है. जब हम नैतिक रूप से पतन के शिकार हो जाते हैं तो हमें हमारी जिम्मेदारियों का एहसास तक नहीं रह जाता. ऐसी व्यवस्था में हमारे बच्चे ही मरेंगे, शिक्षक या अधिकारी नहीं.
जिन लोगों के चलते हमारे नौनिहालों की जाने गयीं हैं उन्हें किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाना चाहिए. उन पर भ्रष्टाचार के मुकदमे तो चले हीं उनके ऊपर हत्या का मामला भी चलाया जाना चाहिए.
और हां इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि जांच की प्रक्रिया त्वरित हो.यह उच्चस्तर के प्रशासनिक अधिकारियों और राजनीतिक नेतृत्व पर ही निर्भर है कि वह अपनी जिम्मेदारी को कैसे निभाते हैं.
मसरख मामले में सरकार ने मृतकों के परिवारों को दो- दो लाख रुपये देने की घोषणा की है. पर क्या जिन लोगों के नौनिहालों की मौत हुई है उनके लिए रुपये की थैली थमा देने मात्र से सरकार की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है? कत्तई नहीं. ऐसे में सरकार और प्रशासन से उम्नीद की जाती है कि वे दोषियों की जिम्मेदारी जितना जल्द हो सके तय करें और उन्हें सजा दिलायें.