पूर्व उपमुख्यमंत्री व मौजूदा नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा राजद की भागलपुर की जनसभा आत्मघाती नुक्कड़ नाटक बताने को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जनसभा को आत्मघाती बताकर हमें धमकी दें रहे है. अपनी धमकी पर मर्यादा का उन्हें ख़्याल नहीं रहता.
नौकरशाही डेस्क
गौरतलब है कि सोमवार को भागलपुर में तेजस्वी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी समेत भाजपा के कई अन्य नेताओं को सृजन का दुर्जन बताया था. उसी जनसभा से खुद लालू प्रसाद और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव ने भी नीतीश कुमार और भाजपा पर जमकर बरसे थे. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ही नीतीश कुमार ने उस सभा को आत्मघाती नुक्कड़ नाटक बताया था.
तेजस्वी ने पटना में मुख्यमंत्री के कटाक्ष का जवाब देते हुए कहा कि अब माननीय मुख्यमंत्री को विपक्षी दल द्वारा उनके हज़ारों करोड़ के सृजन महाघोटाले के विरुद्ध की जा रही जनजागरण जनसभाएं नाटक लगने लगी है. एक तो शब्दों के चयन का ख़ुद ख़याल नहीं रखते और ऊपर से कहते है वो मर्यादित है. दरअसल जिस दिन से उन्होंने महागठबंधन तोड़ा है, उस दिन से ये बेचैन, बौखहलाट और अपने सहयोगी दल के डर के साये में जी रहे है. भाजपा इनको जो आईना दिखा रही है, उसकी खीझ इनके शब्दों में दिख रही है.
उन्होंने कहा कि शायद मुख्यमंत्री जी अपने दल के हर घंटे में जारी होने वाले आधिकारिक व्यक्तव्यों और उसकी शब्दावली की जानकारी का घोर अभाव है. लोकतंत्र और सार्वजनिक जीवन में मर्यादित टिप्पणी होनी चाहिए. लेकिन जब से मुख्यमंत्री अपने दल के अध्यक्ष बने है, इन्होंने आधिकारिक टिप्पणी देने वालों को विशेष रूप से ट्रेनिंग देना शुरू किया है. बिहार की जनता जानती है कौन, कब, किससे ,क्या बुलवा रहा है?
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि हमारे यह संस्कार नहीं है कि अपने शब्द दूसरों के मुंह से बुलवाए और ख़ुद संत बने घूमें. हम बहुत स्पष्टवादी है. दिल और दिमाग़ के साफ़ है. मन में कोई छल-कपट और फ़रेब नहीं है. अपने दुर्विचार और दुर्भावनाओं को किसी और की ज़ुबान से कहलवाना जिनकी फ़ितरत है, उन्हें जनता जानती है. हम जैसे है वैसे दिखते है. कहीं कोई बनावटीपन नहीं है. पर उन लोगों का क्या जो बगुले के भेष में कौए बने बैठे है ? जो सिर से लेकर पैर तक अनैतिकता के बोझ तले दबे है, लेकिन सार्वजनिक जीवन में नैतिकता के पुजारी बनने का ढोंग करते है.