चार घंटे तक अजीतपुर के पचास घर जलाये जाते रहे और पुलिसबल दूर से नजारा देखता रहा. डीएम पहुंचे.एसएसपी पहुंचे. सब गांव से दूर रूपनाथ चौक पर रुके रहे जबकि कुछ ही फासले पर उपद्रवियों का हुजूम घरों में आग लगाता रहा लूटता रहा.
झुलसते लोग कराहते रहे और 6 लोग जिंदा जला दिये गये जबकि कोई दर्जन भर लोग झुलस गये.
दूर खड़े देखते रहे डीएम, एसपी
पढ़ें- मुजफ्फरपुर में साम्प्रदायिक तांडव, आगजनी 6 की मौत
आगजनी और लोगों को जिंदा जलाने की यह घटना तब शुरू हुई जब एक युवक की लाश जमीन में गड़ी मिली. बताया जाता है कि भारतेंदु नामक युवा के अपहरण की रिपोर्ट सरैया पुलिसस्टेशन में दर्ज करायी गयी थी. वसी अहमद के बेटे विकी पर अपहरण का आरोप लगाया गया था. शव मिलने के बाद ही उग्र भीड़ ने आरोपी वसी अहमद के घर पर पहले हमला बोला. यह घटना रविवार एक बजे शुरू हो गयी. सैकड़ों लोगों की भीड़ वहां के कुछ लोगों को आग में झोकती रही उनकी गाडिया, ट्रेक्टर, मोटरसाइकिलें और दूसरे कीमती सामान आग के हवाले किये जाते रहे. यह ऐसा नजारा रहा जहां आरजकता ही आरजकता थी लेकिन लोकल सरैया पुलिस बेबस, सारे नजारे को देखती रही. सरैया पुलिस ने अपने हाकिमों को खबर तो दी लेकिन एसएसपी रंजीत कुमार मिश्रा अपने दलबल के साथ पहुंचने के बावजूद तमाशाई बन कर देखते रहे. पुलिस के इस रवैये से, पुलिस की चौकसी की पोल खुल गयी है.
सवाल यह है कि जब भारतेंदु के अपहरण की रिपोर्ट 9 जनवरी को ही लिखायी गयी थी तो पुलिस को इस मामले की संवेदनशीलता को समझना चाहिए था. जब भारतेंदु की लाश अजीतपुर गांव में सुबह 11 बजे के करीब देखी गयी तो फौरन कुछ लोगों ने इसकी सूचना लोकल पुलिस स्टेशन सरैया को दी. लेकिन पुलिस की लापरवाही से भीड़ इकट्ठी होती गयी और हालात इतने बेकाबू हो गये कि उग्र भीड़ ने लोगों को घरों में बंद करके आग के हवाले करना शुरू कर दिया. इस घटना में कुछ लोग 6 लोगों के जल कर मरने की बात कह रहे हैं तो वहीं पुलिस मरने वालों की संख्या 4 बता रही है.
9 दिनों तक क्यों सोयी रही पुलिस
ठीक है कि सरकार ने मृतकों के परिजनों के लिए राहत की घोषणा और मामले की जांच का आदेश दे दिया है लेकिन सवाल यह है कि हालात बेकाबू होने देने में जो लापरवाही बरती गयी है वह काफी गंभीर है. अपहरण के आरोपी को पुलिस ने 9 दिनों बाद तब गिरफ्तार किया, वह भी तब, जब मामला काफी गंभीर हो कर दंगा का रूप ले लिया. दूसरी तरफ उपद्रवी छुट्टा घूमते रहे और घरों को आग लगाते रहे लेकिन पुलिस बेबस बन सब कुछ देखती रही.
आम तौर पर ऐसी घटनाओं के बाद सरकार जांच का आदेश देती है, प्रभावितों को मुआवजा देती है लेकिन जिन लोगों के ऊपर कानून की रखवाली की जिम्मेदारी होती है वे पहले से हालात को नियंत्रण में क्यों नहीं रख पाते. यह गंभीर सवाल है जो हमरे समाज और सरकार के लिए चिंता की बात है.
Comments are closed.