मुलायम यादव ने राज्यसभा के सात उम्मीदवारों में एक भी मुसलमान को शामिल नहीं किया. हैरत की बात नहीं कि जो दल 21 प्रतिशत मुसलमानों को एक टिकट न दे वह 18 प्रतिशत आरक्षण क्या खाक देगा.
वसीम अकरम त्यागी
मुलाय सिंह को जोकर, झूठा, धृतराष्ट्र बताने वाले और उससे भी आगे बढकर ‘जहर खा लुंगा मगर मुलाय की सूरत नहीं देखुंगा’ ऐसी कसमें खाने वाले अमर सिंह की न सिर्फ सपा में वापसी हुई बल्कि उन्हें राज्यसभा सांसद बनाने पर मुहर लगाई गई।
सवाल यह बिल्कुल नहीं है कि अमर सिंह को सांसद क्यों बनाया जा रहा है ? सवाल यह है कि क्या सूबे की 21% मुस्लिम आबादी को उसकी हिस्सेदारी दी जा रही है ?
आखिर यह हिस्सेदारी क्यों नहीं दी गई ? छह लोगों की सूची में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार क्यों नहीं ?
जो पार्टी संगठन के अंदर मुसलमानों को सही से भागीदारी नहीं दे सकती, वह मुसलमानों को 18% प्रतिशत आरक्षण क्या खाक देगी ? पार्टी में शफीकुर उर रहमान जैसे बर्क नेता जो मोदी लहर में महज पांच हजार वोट से हारे थे क्या समाजवादी पार्टी को उनका नाम ध्यान नहीं आया होगा कि उन्हें राज्यसभा में भेजा जाये ?
निसंदेह ख्याल आया होगा मगर सपा सिर्फ मुस्लिम वोट लेना जानती है बदले में ‘मुजफ्फरनगर’ तो मिल जायेगा मगर भागीदारी नहीं मिलेगी ? यह समाजवाद नहीं बल्कि छलवाद है।
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