जबसे ट्रिपल तलाक का मामला उछाला गया है तब से भाजपा जैसे संगठन राजनीति तो कर ही रहे हैं लेकिन मुस्लिम संगठन भी अपनी तरह से सियासत कर रहे हैं. इन संगठनों की सियासत पर प्रकाश डाल रहे हैं सेराज अनवर

असद उद्दिन अवैसी की लोकतांत्रिक सियासत से दिक़्क़त तो सभी को है.मगर ख़ुद सियासत करने से कोई अपने को रोक भी नहीं पाता.सियासत तो सभी कर रहे हैं,अपने अपने हिसाब से.

 

मौलाना महमूद मदनी इधर सक्रिय नहीं थे,गुमनामी में थे,कोई ख़बर नहीं आ रही थी.अचानक प्रोग्राम बना कि प्रधानमंत्री से मिलना चाहिए.उन्हें बख़ूबी मालूम था मोदी से मिलने का मतलब क्या होता है.अपने ग्रूप (जमियत उलेमा महमूद मदनी ग्रूप)के सभी प्रदेश अध्यक्षों को लेकर नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात क्या हुई हंगामा बरपा हो गया.होना ही था.

 

ऐसा नहीं है कि हालात एक दिन में बिगड़े हैं.अख़लाक़ की हत्या हुई तब भी मुलाक़ात हो सकती थी.भोपाल जेल से भगा कर मुस्लिम लड़कों को मार डाला गया तब भी मुलाक़ात हो सकती थी. जब यू पी चुनाव में मोदी जी ख़ुद हिंदू मुस्लिम कर रहे थे तब भी प्रधानमंत्री से मिला जा सकता था.तो फिर ये मुलाक़ात क्यों हुईं,क्या इस मंसूबा में मोदी की मंशा शामिल थी?

 

दरअसल,तीन तलाक़ पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सरकार से दो दो हाथ करने के मूड में है.जमात ए इस्लामी हिन्द भी इस मुहिम में शामिल है. जमियतुल उलेमा ख़ुद को भारतीय मुसलमानो का प्रतिनिधि संगठन मानता है.तीन तलाक़ के आंदोलन में वो अलग थलग पड़ गया था.

 

मोदी से मुलाक़ात के बाद महमूद मदनी ग्रूप की TRP ज़बर्दस्त उछाल पर है. बोर्ड की जगह प्रधानमंत्री ने जमियतुल उलेमा को ज़िम्मेवारी सौंप दी कि तीन तलाक़ पर राजनीति ना होने दें.इससे बोर्ड का वज़न कम होता दिख रहा है.जमात ए इस्लामी कि मुहिम 15 दिनों तक जोरदार तरीके से चल चुकी है.

उधर  महमूद मदनी की लीड से मौलाना अरशद मदनी थोड़ा बेचैन हो गए.जमियत के दूसरे ग्रूप का नेतृत्व उनके हाथ में है.दोनो चाचा -भतीजा हैं.जमियत पर एकाधिकार की बरसों से लड़ाई लड़ रहे हैं.

 

  उधर  महमूद मदनी के असर को कम करने के लिये अरशद मदनी ने विधिवत प्रेस कॉन्फ़्रेन्स बुला कर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग कर सुर्ख़ियाँ बटोर लीं.

 

एक संगठन मजलीस मुस्लिम मशावरत भी है.कभी ये मुसलमानो का प्रतिनिधि संगठन होता था.दिवंगत सैयद शहाबुद्दीन तक ने मशावरत के अध्यक्षपद को सुशोभित किया है.अभी नावेद हामिद के हाथ में कमान है.काफ़ी जोड़तोड़ के बावजूद संगठन को मीडिया और मुसलमानो में महत्व नहीं मिल पा रहा है.इसी दौरान हुआ यूँ कि मौलाना अब्दुलहमीद नुमानी पर जमियतुल उलेमा (महमूद मदनी ग्रूप) ने चैनल के बहस में जाने से रोक लगा दी.मौलाना इस फ़ैसले से रूठ गए.बस क्या था,नावेद ने उन्हें लपक लिया.लगे हाथ मशावरत का महासचिव भी बना दिया.कहने का मुराद यह है कि राजनीति तो सब कर रहे हैं,सिर्फ़ अपनो के साथ ,अपने लिए.

लेखक पटना से प्रकाशित अखबार फारूकी तंजीम के सम्पादक हैं

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