याकूब मेमन की फांसी का स्वागत है, लेकिन उसकी फांसी बहुत सारे अनुत्तरित सवाल भी छोड़ गई है.
ध्रुव गुप्त, पूर्व आईपीएस
सवाल यह है कि फांसी की सज़ा पाए राजीव गांधी के हत्यारे हिन्दू आतंकियों की दया याचिका पर तमिलनाडु की दोनों प्रमुख पार्टियों के दबाव में जिस कांग्रेस सरकार ने एक दशक तक बैठकर उनकी फांसी की सज़ा को आजीवन कारावास में बदलवाने की साज़िश की उस सरकार को क्या सज़ा मिलनी चाहिए?
बेअंत सिंह के हत्यारे सिख आतंकियों के प्रति अकाली दल के दबाव में पहले कांग्रेस और अब भाजपा सरकार इस क़दर नरम क्यों रही है ? समझौता, मालेगांव और अजमेर ब्लास्ट के आरोपियों के ट्रायल में जान-बूझकर सुस्ती क्यों बरती जा रही है?
बाबरी मस्जिद के क़ातिल तेईस साल बाद भी जेल में होने की जगह सत्ता का सुख क्यों भोग रहे हैं ? 1984 के सिख-विरोधी और 2002 के गुजरात दंगों में सरकार और न्यायालय न्याय करते क्यों नहीं दिख रहे?
जब ‘वोट बैंक’ के मद्देनज़र आप आतंकियों की सज़ा तय करेंगे तो आपकी नीयत पर संदेह पैदा होना स्वाभाविक है।
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