सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शहाबुद्दीन को सीवान से तिहाड़ शिफ्ट कर दिया गया. हत्या,किडनैपिंग फिरौती तमाम आरोपों के बावजूद समाज के एक वर्ग, सियासत,मीडिया, अदालत यहां तक भाजपा जैसे धुर विरोधी के लिए भी वह महत्वपूर्ण बने हुए हैं. नौकरशाही डॉट कॉम के एडिटर इर्शादुल हक का विश्लेषण-
शहाबुद्दीन की कहानी अपराध से शुरू होती है, सियासत से आगे बढ़ती है और जेल तक पहुंचती है. बस सारांश में शहाबुद्दीन नाम की कहानी के यही तीन महत्वपूर्ण पड़ाव हैं. पर बात सिर्फ इतनी नहीं है. बात यह है कि जहां दर्जनों क्रिमिनल बैकग्राउंड के नेता सलाखों में कैद होते ही गुमनामी के अंधेरों में गुम हो गये, वहीं शहाबुद्दीन हमेशा मीडिया की सुर्खियों में रहते हैं. कभी अपने ऊपर लगे आरोपों के चलते, कभी केस की पेचीदगी के कारण तो कभी सियासी विरोधियों के हमले की वजह से. और अगर वह इन कारणों से सुर्खियों में नहीं रहते तो सुर्खियों में बन जाने के अपने व्यक्तित्व की वजह से सुर्खियां बटोर जाते हैं. इस तरह हत्या, रंगदारी, फिरौती, किडनैपिंग और मारपीट जैसे 30 से ज्यादा मुकदमे झेलने के बावजूद वह समाज के एक हिस्से, सियासत, प्रशासन, सरकार मीडिया के साथ साथ अदालत के लिए भी महत्वपूर्ण तो हैं ही, भारतीय जनता पार्टी जैसे धुर विरोधी पार्टी के लिए भी शहाबुद्दीन राजनीतिक रूप से अति महत्वपूर्ण हैं. आइए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है.
लालू और राजद के लिए
अपने पॉलिटिकल करियर के उठान के दिनों में शहाबुद्दीन ने लालू प्रसाद की पार्टी को अनेक बार मुश्किलों के भंवर से निकाला है. लुढ़कती सत्ता को बचाने के लिए शहाबुद्दीन ने 90 के दशक के उत्तराद्ध में सरकार बचाने के लिए विधायकों को जमा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसके बाद शहाबुद्दीन, लालू के लिए अति महत्वपूर्ण बन कर उभरे थे. सीवान के वोटरों पर लगभग 15 वर्षों तक एकक्षत्र प्रभाव रखने वाले शहाबुद्दीन उसके बाद एक प्रभावशाली मुस्लिम चेहरा बन कर उभर चुके थे.
जेल में तहज्जुद और रेल में इशा की नमाज पढी शहाबुद्दीन ने
आज भी राष्ट्रीय जनता दल के लिए शहाबुद्दीन महत्वपूर्ण हैं और यही वजह है कि जेल में रहते हुए भी राजद ने उन्हें अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बना रखा है.
एक वर्ग में दीवानगी
शहाबुद्दीन का राजनीतिक प्रभाव वैसे तो सीवान की सीमा में पिछले दो दशक से कमोबेश बना हुआ है लेकिन बदलते हालात ने शहाबुद्दीन का प्रभाव जेल में रहते हुए भी मुसलमानों के बड़े वर्ग में लगातार बढ़ा है. दर असल शहाबुद्दीन के इस बढ़े प्रभाव का एक कारण यह है कि वह लगातार भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के लिए आक्रमण का शिकार रहे हैं. भाजपा के इस आक्रमण की प्रतिक्रिया में शहाबुद्दीन को खुद ब खुद मुसलमानों के एक सेक्शन में सहानुभूति मिल जाती है.
भाजपा के लिए भी महत्वपूर्ण
यह निर्विवाद है कि शहाबुद्दीन के नाम से हिंसा, हत्या,किडनैपिंग और मारपीट जैसे अपराध जुड़े रहे हैं. सीवान में उनके नाम से दहशत और डर भी रहा है. सीवान के चंदा बाबू के तीन बेटों की बेदर्दी से की गयी हत्या का आरोप भी शहाबुद्दीन पर है. लेकिन इस सच से इनकार करने की गलती नहीं की जा सकती कि उनकी लोकप्रियता का ग्राफ भी हमेशा बना रहता है. यह कारण है कि भारतीय जनता पार्टी कानून व्वस्था के मुद्दे पर, शहाबुद्दीन पर खुल कर हमला करती है. लेकिन जब भाजपा उन पर हमला कर रही होती है तो उसका एक तीर से दो जगह निशाना होता है. एक- शहाबुद्दीन की छवि के कारण तो दूसरा शहाबुद्दीन का एक खास समुदाय से जुडे होने के कारण. भाजपा इसलिए भी शहाबुद्दीन पर हमला करने में तत्पर रहती है ताकि वह अपने हिंदुत्ववादी वोटरों की सहानुभूति बटोर सके. इसलिए ‘शहाबुद्दीन’ उसके लिए विरोधी राजनीति का एक प्रतीक बन जाते हैं. यही वजह है कि भाजपा के राजनीतिक दर्शन के लिए शहाबुद्दीन का होना महत्वपूर्ण है.
प्रशासन-साशन के लिए महत्व
सीवान में चंदा बाबू, जिनके तीन बेटों की हत्या हुई और आशा रंजन, जिनके पत्रकार पति की हत्या हुई ( हालांकि इस मामले में शहाबुद्दीन आरोपी नहीं हैं) इसके अलावा अनेक मामलों के कारण शहाबुद्दीन प्रशासन के लिए सर दर्द बने हुए हैं. बीते सितम्बर में वह जेल से कुछ दिनों के लिए बाहर आये. तो प्रशासन के लिए चुनौती बन गये. सीवान में अब भी कोई घटना हो तो शहाबुद्दीन प्रशासन के लिए चुनौती बन जाते हैं. और अगर कुछ नहीं होता तो खुद शहाबुद्दीन कुछ ऐसा कर जाते हैं जिससे प्रशासन उनके मामले में गंभीर हो जाता है. शहाबुद्दीन अपने से जुड़े इन्हीं मामलों के महत्व को समझते हैं. वह या तो विवादों से जोड़ दिये जाते हैं या फिर खुद ही जुड़ जाते हैं. पिछले छह-आठ महीनों में दो कारण ऐसे रहे जिसके कारण शहाबुद्दीन विवादों से जुड़ कर खुद को चर्चा में बनाये रखे. पहला मामला था बिहार के मंत्री अब्दुल गफूर के साथ सीवान जेल में बैठे चाय की चुस्की लेती तस्वीर का मीडिया में आ जाना तो दूसरा मामला था नये लुक में फेसबुक पर उनकी तस्वीर का वायरल हो जाना.
मीडिया के लिए टीआरपी
एक जमाने में शहाबुद्दीन की छवि रॉबिन हुड की तरह उभरी थी. वह चर्चा बटोरते रहे. मीडिया उनके किरदार को अनेक रूपों में पेश करता रहा. लेकिन अब हालत यह हो गयी है कि मीडिया के लिए शहाबुद्दीन महत्वपूर्ण खबर हैं. शहाबुद्दीन से जुड़ी तमाम खबरें न्यूज चैनलों की टीआरपी बढ़ाने, वेबसाइट्स की हिट्स लाखों तक पहुंचाने और अखबारी पाठकों के लिए उत्सुकता बढ़ाने वाले होते हैं. इसलिए मीडिया उन्हें इग्नोर करने का रिस्क नहीं लेता.
अदालत भी सक्रिय
मीडिया और समाज के बड़े हिस्से में यह बात रच-बस चुकी है कि शहाबुद्दीन एक बड़े अपराधी हैं. इसलिए जब सितम्बर में शहाबुद्दीन को जमानत पर रिहाई मिली तो पूरे देश में यह खबर सुर्खियों में आ गयी. कई मीडिया संगठन दिन-दिन भर शहाबुद्दीन मामले पर अभियान चलाने लगे. मामला अदालत तक पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए उनकी रिहाई को रद्द कर दिया. इस दौरान अदालत ने पब्लिक परसेप्शन का भी ख्याल रखा. इतना ही नहीं अदालत ने यह आदेश भी दिया है कि शहाबुद्दीन के मामले की ससमय सुनवाई होती रहे. और अब तो अदालत ने उन्हें सीवान से तिहाड जेल में शिफ्ट करवा दिया. अदालत शहाबुद्दीन का समाज और परिवारों पर पड़ने वाले प्रभाव के महत्व को( चाहे वह महत्व नकारात्मक हो या सकारात्मक) बार बार रेखांकित किया है.