मार्कंडेय काटजू ने घोषणा की है कि न तो वह किसी राजनीतिक दल में जायेंगे और न ही जीवन में कभी वोट डालेंगे. सुप्रीम कोर्ट के जज और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन रह चुके काटजू ने ऐसी घोषणा क्यों की?
काटजू ने इस बारे में अपना तर्क देते हुए बताया है कि अगर वह किसी राजनीतिक दल में जाते हैं तो उन्हें अपने आजाद विचार को त्यागना पड़ेगा, नहीं तो उन्हें पार्टी से निकाल ही दिया जायेगा. उन्होंने कहा कि मैं ईमानदारी से बताऊं तो मुझे किसी भी राजनीतिक दल पर भरोसा नहीं है क्योंकि यह सच है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी में ईमानदारी से देश की भलाई करने का कोई जज्बा नहीं है.
उन्होंने कहा कि निर्दलिय उम्मीदवार की हैसियत स जीत हासिल करने वालों की संख्या न के बराबर है. चुनाव लड़ने का खर्च बहुत ज्यादा है. और अगर कोई बड़ी रकम खर्च करके चुनाव जीत भी जाता है तो वह अकेले दम पर संसद में कर भी क्या सकता है.
काटजू ने वोट न डालने के अपने तर्क देते हुए कहा कि आम तौर पर वोट जाति और मजहब के नाम पर दिये जाते हैं. ऐसे में मेरा अकेला वोट कोई मायने नहीं रखता. अगर वोट जाति या मजहब के नाम पर नहीं दिये जाते तो अकसर किसी सपने को बेच कर वोट लिये जाते हैं. जैसे गरीबी हटाओ, विकास आदि. चुनाव के बाद ये सपने हवा हो जाते हैं.
काटजू ने कहा कि मैं यह नहीं कहता कि लोग भी वोट न करें. वे वोट करें लेकिन मैं तो जीवन में कभी भी वोट नहीं डालूंगा.
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