वरिष्ठ पत्रकार अरुण अशेष तथ्यों को गहराई तक पकड़ते हैं और वह अपने अंदाज ए बयान से पाठकों को खीचते भी हैं. इस लेख में उन्होंने राज्यपाल से जुडे विवादों की तारीख के पन्नों को खंगाल दिया है.

देबानंद कुंवर बुधवार को सूबे के राजभवन से विदा हो गए. इसके साथ ही 2009 से राजभवन और राज्य सरकार के बीच विवाद का एक अध्याय समाप्त हो गया.

नए राज्यपाल डा.डीवाई पाटिल आ गए हैं.

देबानंद: दिल मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए

राजभवन और राज्य सरकार के बीच विवाद कम से कम बिहार के लिए नई बात नहीं है। इस विवाद ने कई अप्रिय दृश्यों को जन्म दिया. राज्य की आम जनता ने एक तरह से बड़ों की लड़ाई का मुफ्त तमाशा देखा। एक अपवाद को छोड़ दें तो विवादों में एक समानता रही है. केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकारें रही हैं. अपवाद का दौर मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद और राज्यपाल गोबिन्द नारायण सिंह के कार्यकाल को मान सकते थे.

दोनों कांग्रेस के थे. विवाद कुलपति (वीसी) की बहाली पर अधिक हुआ था. सिंह अपने लोगों को वीसी के पदों पर बिठा रहे थे. विवाद ऐसा कि दोनों के बीच बोलचाल भी बंद। अखबारों में एक दूसरे के लिए तल्ख बयान छपते थे.संयोग ऐसा हुआ कि दोनों आगे-पीछे 1989 में हटा दिए गए.

इसके बाद सुंदर सिंह भंडारी का कार्यकाल आया. उनका कार्यकाल छोटा था। वे अप्रैल 1998 से मार्च 1999 तक रहे. केंद्र में एनडीए और राज्य में राजद की सरकार थी। मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थीं. अन्य मामलों के साथ वीसी का भी विवाद था. भंडारी और उनके बाद विनोद चंद्र पांडेय के कार्यकाल में भी वीसी को लेकर यही आरोप लगा कि भाजपा समर्थकों-नेताओं को यह पद दिया जा रहा है. उस समय सरकार की ओर से भंडारी को स्वाहा करने के लिए यज्ञ का स्वांग रचा गया. पांडेय के बार में तो सरकार की ओर से ऐसी टिप्पणी की जाती थी, जिसे मुद्रित करना भी संभव नहीं है.

हर दौर में रहा है विवाद

सत्ता के संक्रमण के दौर में सरदार बूटा सिंह राज्यपाल बने. वे पांच नवम्बर 2004 से 29 जनवरी 2006 तक राज्यपाल रहे. मार्च 2005 के विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला. विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया.नवम्बर 2005 में लोकप्रिय सरकार बनने तक बूटा सिंह का एकछत्र राज था. वीसी बहाली से लेकर पुलिस और प्रशासन के अफसरों की तैनाती उनके आदेश पर हुई. बेशक उस वक्त भी भ्रष्टाचार की चर्चा थी. फिर भी पुलिस की सक्रियता के चलते बूटा सिंह को सराहना मिली. मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार को सरदार बूटा सिंह के अलावा गोपाल कृष्ण गांधी, आरएस गवई, आरएल भाटिया और देवानंद कुंवर के कार्यकाल को देखने का मौका मिला है. इनमें से उनके लिए सबसे अधिक असहज कार्यकाल कुंवर का ही रहा. हालांकि उन्होंने कभी भी अपने पूर्ववर्तियों की तरह इस बड़े पद के लिए असम्मानजनक टिप्पणी नहीं की. मगर कभी-कभी तल्खी बाहर आ ही जाती थी.

वीसी बहाली को लेकर ही कुंवर सबसे अधिक चर्चा में रहे. हालांकि, बिहार में कभी भी वीसी की बहाली योग्यता के आधार पर शायद ही हुई हो. मुख्यमंत्री या राज्यपाल की मर्जी या कभी कभी दोनों में बंटवारे को लेकर सहमति के आधार पर ही बहालियां होती रही हैं.

इसका जिक्र नहीं करना ही ठीक रहेगा कि बिहार में ऐसे-वैसे और जैसे-तैसे वीसी बहाल होते रहे हैं. फिर भी खुला खेल से महामहिम बचते ही रहे हैं.

अब नए राज्यपाल डा.डीवाई पाटिल पर सबकी नजर है. गवई की पहचान अगर वीसी की बहाली को लेकर रही है, तो डा. पाटिल के नाम पर विश्वविद्यालय है. मेडिकल, इंजीनियरिंग और दूसरे तरह के प्रोफेशनल संस्थान चलाने का भी उन्हें अनुभव है.

वस्तुत: कुंवर द्वारा छोड़े गए विवाद, डा.पाटिल की चुनौतियां हैं.

अदर्स वॉयस कॉलम के तहत हम अन्य मीडिया में प्रकाशित लेखों को हू-ब-हू साभार प्रकाशित करते हैं. दैनिक जागरण से साभार.

By Editor


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