बिहार के भागलपुर से शुरु हुआ साम्प्रदायिक तांडव रोसड़ा, औरंगाबाद, नालंदा, गया और न जाने कहां कहां फैल चुका है. जदयू के वरिष्ठ नेता नवल शर्मा इस मार्मस्पर्सी लेख में बता रहे है कि हमारे राम अपने बच्चों के खून के प्यासे हो ही नहीं सकते ये कुछ और है रामभक्ति तो कत्तई नहीं. 

 

[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/02/naval.sharma.jpg” ]नवल शर्मा, वरिष्ठ नेता जनता दल युनाइटेड[/author]

बिहार की शांति भंग करने की साजिशें रची जा रहीं । पर इतना तो तय है इसके पीछे कोई रामभक्त नहीं । क्योंकि जो रामभक्त होगा वो मानवभक्त भी होगा ; जिसके भी हृदय में राम का वास होगा वहां कपट , छल , छिद्र कहाँ ; वो सही मायने में मानवता का पुजारी होगा । हाँ , तब निर्भर करता है अपने अपने राम पर भी और अल्लाह पर भी । किसके राम की कैसी परिभाषा , किसके अल्लाह का कैसा स्वरूप ।

 

मैं भी राम भक्त हूँ पर मेरे राम वो नहीं जिन्हें अपने बच्चों का खून प्यारा है बल्कि मेरे आदर्श कबीर के वो राम हैं जिनकी नज़रों में हम सब बच्चे समान रूप से प्रिय हैं चाहे हिन्दू हों या मुसलमान । मेरे राम वो कबिराहा राम हैं जो तुलसी की विनयपत्रिका में भी बोल उठते हैं -” मांग के खैबो, मस्जिद में सोइबो ‘ 

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खाकी लिबास का सत्य 

मोदी के श्रृंगार ने भारत को अबर की भौजाई बना डाला है


मुझे लगता है दंगाइयों को समझाना जरूरी नहीं , उनके लिए पुलिस की लाठियां ही काफी हैं ; ज्यादा जरूरी है हमारी समझदारी । और हमारी समझदारी का तकाजा ये बनता है कि सम्प्रदाय के आधार पर हम गलतफहमी के शिकार न हों । बस छोटी सी बात है –शर्मा के राम भी वही हैं जो अंसारी के हैं । दोनों बिल्कुल एक हैं । इसके अलावा कोई दूसरा सत्य नहीं है और अगर है तो इसके पीछे कोई न कोई राजनीतिक षडयंत्र है क्योंकि जब कभी —

”शहर के दंगों में जब भी मुफ़लिसों के घर जले
कोठियों की लॉन का मंजर सलोना हो गया ”

 

दंगों का इतिहास यह बताता है कि यह साम्प्रदायिक श्रेष्ठता या राजनीतिक हितसाधन का साधन मात्र रहा है । मुझे याद नहीं आज तक किसी दंगे से धर्म की सिद्धि हुई हो । धर्म की सिद्धि तो व्यक्तिगत सद्गुणों और समष्टिगत सद्भाव और कल्याण से ही सम्भव है । मानव प्रेम की बुनियाद पर ही धर्म की इमारत बन और टिक सकती है ।

जो व्यक्ति आपके मन में किसी सम्प्रदाय विशेष के प्रति विषवपन करे मान लीजिये वह सबसे बड़ा अधार्मिक है । अगर मन को आतंकित करनेवाले साम्प्रदायिक जयघोष से ही धर्म की सिद्धि होती तो फिर बुद्ध,महावीर ,कबीर और दादू जैसों की निःशब्द प्रार्थनाएं अनसुनी रह जातीं ।

 

ये मेरे अपने अंतर्मन के विचार हैं जिनका दूर दूर तक कोई राजनीतिक निहितार्थ नहीं है । इसलिए अपने पोस्ट पर राजनीतिक वाद विवाद की भी कोई स्पृहा नहीं ।

By Editor


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