मैं पटना का एनएमसीएच हूं- नालंदा मेडिकल कालेज ऐंड हॉस्पिटल. मेरे पास हजारों मरीज बीमारी लिए कराहते पहुंचते हैं. पर रुकिये. लाइ लगाने से पहले सोच लीजिए कि आप ताकतवर हैं, गार्ड के डंडे और स्टाफ का रोब सहने की कुअत रखते हैं तो आपका स्वागत है.
सबसे पहले आप मेरे कैम्पस में दाखिल होते हैं तो अगर बाइक या कार से हैं तो आपको प्राइवेटवर्दीधारी डंडे के इशारे से रोकेंगे. जबरन पेड पार्क में जाने को कहेंगे. जबकि परिसर के अंदर हजारों गाड़ियां लगाने की जगह है लेकिन आप से जबरन कहा जा सकता है कि पेड पार्क में जाइए. वहां खड़े दलाल सहानुभूति भरी नजरों से आपकी तरफ लपकेंगे. कहेंगे कि गाड़ी सुरक्षित रखना चाहते हैं तो वहीं लगाइए वरना चोरी होने की जवाबदेही एनएमसीएच प्रशासन की नहीं होगी. आप बीमारी की भूल के गाड़ी की सुरक्षा के प्रति सतर्क होते हुए पेड पार्क की तरफ बढ़ने को बेबस हो जायेंगे.
बीमारी हैं तो जरूरी है कि आप ताकतवर हों ताकि धक्के खा सकें
फिर आप जब आगे बढ़ेंगे तो आपकी दूसरी चुनौती होगी कि आप नम्बर लगाने के लिए मशक्क्त शुरू कीजिए. अगर आप 11 बजे के आसपास पहुंचते हैं तो आपको 200 मरीजोंं के पीछे लाइन में खड़ा होना पड़ सकता है. लाइन में सीधे खड़ा रहिये और धीरे-धीरे खसकते हुए काउंटर की तरफ बढ़ते जाइए. जब आप काउंटर के मेन परिसर में पहुंचेंगे तो बायें-दायें निजी कम्पनी के दो वर्दीधारी की फटकार या डांट से बचने के लिए शराफत से खड़ा होना पड़ेगा. और अगर अंदर घुसने में कामयाब रहे तो आपको पांच काउंटर नजर आयेंगे. इनमें से एक या दो बंद मिल सकते हैं. तीसरे पर ‘स्टाफ’ खिड़की लिखा है, यानी यहां से आपकी पुर्जी नहीं बन सकती. तीसरी खिड़की खाली तो होगी पर यहां पुराने मरीजों की पुर्जी पर मुहर लगायी जाती है. मतलब यहां भी आपका गुजारा नहीं. चौथी खिड़की पुरुषों के लिए है और पांचवी महिलाओं के लिए. यानी पांच में से दो खिड़कियां ही आपके लिए हैं. दो घंटे की मशक्कत के बाद आपकी पुर्जी बन गयी तो आप लकी हैं.
चतुर्थवर्गी कर्मी भी डपटे तो अजीब बात नहीं
अब आपकी बारी है कि आप अपने मर्ज के अनुसार डाक्टर के वार्ड में दाखिल होंगे. वहां भी भीड़ होगी. और वहां खड़ा गार्ड आपको डप्ट सकता है. कह सकता है कि लाइन में खड़े हो कर इंतजार कीजिए- महिला अलग और पुरुष अलग. अगर आपने मदद भरी आंखों से देखा तो गार्ड कुछ कहे न कहे, डाक्टर चैम्बर के बार स्टूल पर बैठा चतुर्थवर्गीय कर्मचारी बेरहमी भरे भरताव की आंखों से आपको घूरेगा और डपट भी सकता है. अगर आप पढ़े लिखे नजर आते हैं और अपनी मर्यादा प्यारी है तो उसके आदेशों का चुपचाप पालन कीजिए, शराफत इसी में है. लेकिन अगर आपका पहिरावे से यह झलकता है कि आप गरीब हैं, कम पढ़े लिखे या अनपढ़ हैं तो आपको इंतजार करने के क्रम में कई बार दुरदुराया भी जा सकता है. इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप महिला हैं या पुरुष.
जहां दलाल भी सहानुभूति से पेश आते हैं
अपनी बारी का इंतजार करते हुए यह याद करेने लगें कि आप एनएमसीएच से पांच-सात साल पहले से परिचित हैं तो आपको यह याद करने की जरूरत नहीं कि मेरे इस परिसर में कभी मरीजों के लाले पड़े रहते थे. यहां आने के बजाये लोग पीएमसीएच की तरफ बढ़ जाना मुनासिब समझते थे. तब मेरे परिसर में दवायें आम तौर पर नहीं होती थीं. जांच की सुविधायें नदारद थीं. लेकिन आप मेरा एहसान मानिये कि अब मेरे पास सारी सुविधायें हैं.
खैर आप यही सोचते हुए डाक्टर से परामर्श लेने में कामयाब रहे तो डाक्टर आपके पुर्जे पर कुछ जांच लिख सकता है. जैसे ही आप पुर्जा लिये बाहर आयेंगे तो आप सरकारी सब्सिडाइज्ड मूल्य पर जांच करा सकते हैं. लेकिन अगर आप अंजान हैं तो गिद्ध की तरह मडराते दलाल आपकी मदद को आ धमकेंगे. आपको सहानुभूतिपूर्वक बतायेंगे कि परिसर के बाहर ज्लदी से जांच करा दी जायेगी. अस्पताल में जांच करवाने में आपको लम्बी लाइन और दो दिन की भागदौड़ करनी पड़ सकती है.
मैं एनएमसीएच हूं. ईमानदारी से कहूं तो मेरे परिसर में सारी सुविधायें हैं. अच्छे डाक्टर हैं. दवाइयां हैं. जांच की सारी सुविधायें हैं. काबिल जांचकर्ता भी हैं. पर परिसर के दलालों के कमीशन के मोह में व् ईमानदारी से और उचित समय में जांच कर दें यह हर बार जरूरी नहीं.
मैं एनएमसीएच हूं. आप मरीजों से मेरी पूरी सहानुभूति है. इसलिए मैंने ईमानदारी से सारी बातें बता दीं हैं. आप इलाज के लिए आइए, आपका स्वागत है. पर आपके लिए जरूरी है कि यहां इलाज के लिए आयें तो आपका स्वस्थ्य और ताकतवर होना जरूरी है. अगर ताकतवर नहीं हैं तो आपके साथ स्वस्थ्य एटेंडेंट को जरूर लेते आइए. और हां आइए तो इस बात की चिंता घर छोड़ आइए कि आपका वास्तविक इलाज शुरू होने में दो दिन लगेगा या तीन-चार दिन.
हमारे सम्पादक इर्शादुल हक ने जो अपनी आंखों से देखा