आगाम लोकसभा चुनाओं के मद्देनजर सभी पार्टियां राजनीतिक रूप से सबसे सशक्त राज्य उत्तर प्रदेश के लिए कमर कस चुकी हैं. क्या हो रहा है वहां बता रहे हैं अनुराग मिश्र.
कहा जाता है कि केन्द्र की सत्ता पर बैठने का रास्ता उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटो से निकलता है.यही कारण है कि हर राजनैतिक दल उत्तर प्रदेश से ज्यादा से ज्यादा सीटो को निकालने के प्रति लालयित है। सपा जहाँ 60 लोक सभा सीटो का लक्ष्य लेकर आगामी लोक सभा चुनाव में कूदने जा रही है वही अन्य राजनैतिक दल भी कुछ इतनी ही सीटो का लक्ष्य लेकर कूदेगें। ऐसे में बडा सवाल ये है कि उत्तर प्रदेश की जनता किस दल को अपना साथ देगी।
पिछले एक दशक से उत्तर प्रदेश में सियासत जाति और धर्म के रास्ते से गुजर रही है। यही कारण रहा कि सन् 92 में बाबरी मस्जिद विधवंस के बाद से हिन्दूवादी भाजपा जब सत्ता में आई तो वादा किया कि वह मन्दिर का निर्माण करायेगी। ये बात अलग की है कि मन्दिर निर्माण का वादा, वादा ही रहा और भाजपा पांच साल तक सत्ता का सुख भोगकर चली गयी। कालांतर में समाजवादी पार्टी से लेकर बहुजन समाज पार्टी तक सभी ने विभिन्न धर्मो और जातियो के उत्थान की बातें करके उत्तर प्रदेश की सत्ता पर राज किया साथ ही साथ केन्द्र की राजनीत ने अपना कद भी बढाया। पर जाति और धर्म के आधार पर वोट करने वाले मतदाता की स्थिति वही की वही रही।
सपा
इस समय में प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्तव में सपा की सरकार है। सपा को मुस्लिम हितैषी पार्टी कहा जाता है। इस बार सपा का यही वोट बैक काफी हद तक उससे नाराज है कारण मुस्लिमो को लगता है कि सपा ने विधान सभा चुनाव के दौरान जो वायदे किये थे उसे पूरा करने के लिए वो तत्पर नही है। अब इसमें कितनी सच्चाई है ये तो मुख्यमंत्री अखिलेश अपने मूल बोट बैक के साथ साथ प्रदेश की जनता पर एक कडक प्रशासक की छाप नही छोड पा रहें है। जिसका खमियाजा सपा को इस लोकसभा चुनाव में भुगतना पड सकता है।
कांग्रेस
पिछले दो विधानसभा चुनावो में कोई खास कमाल नही दिखा पानी वाली कांग्रेस केन्द्र में स्थापित उनकी सरकार जिसकी जनविरोधी नीतियो ने आम जनता में काग्रेंस की छवि को काफी हद तक नुकसान पहुँचाया। राहुल की लाख कोशिशो के बाद भी काग्रेंस की बिगडी छवि सुधर नही पा रही है। लेकिन इस बार के चुनाव में काग्रेंस को भी उत्तर प्रदेश से काफी उम्मीद है।
भापजा
पिछले एक दशक से उत्तर प्रदेश की सियासत में अलग थलग रही भाजपा खुद को इस बार के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बेहतर स्थिति में लाने की कोशिश में है.नरेन्द्र मोदी की एक हिन्दूवादी नेता की छवि विशेष कर उसके मूल वोट बैक हिन्दुओ में। भाजपा को लगता है कि इस बार मोदी नाम पर भजपा अच्छी खासी सीटे निकाल ले जायेगी। यही कारण है कि उसने नरेद्र मोदी के सबसे खास अमित शाह को यूपी का प्रभारी बनाया है पर शाह और मोदी के आरमानो पर क्षेत्रीय नेताओ की आपसी सियासत भारी पड रही है। जो भाजपा के लिए शुभ संकेत नही है।
बसपा
लोकसभा चुनाव के हिसाब से बसपा की स्थिति काफी ठीक लग रही है। बसपा का मूल वोट बैक दलित जातियां है। जिस पर अभी तक किसी भी दल की सेंध लगती दिख नही रही है। अलबत्ता बसपा अन्य दलो के वोट बैक पर सेंध मार सकती है पर ये सेंध इतनी गहरी नही होगी जो बसपा प्रमुख को केन्द्र की सत्ता तक ले जायें। यानी अब तक के राजनैतिक समीकरणे को देखे तो प्रदेश की जनता किसी एक दल के साथ जाती नही दिख रही।
यहाँ यह बात भी कबिले गौर होगी कि यदि प्रदेश में भाजपा का मोदी फैक्टर चला जिसके चलने की पूरी सम्भावना भी है, तो उसका फायदा काग्रेंस को होता दिख रहा है। क्योकि मोदी फैक्टर चलने की स्थिति में वोटो का ध्रुवीकरण होना निश्चित है और धु्रवीकरण की स्थिति में मुस्लिम वोट कागें्रस में जातें दिख रहें है। इसका जो सबसे प्रमुख कारण है वो ये कि मुस्लिम वर्ग ये बात अच्छी तरह से जानता है कि उसका पाराम्परिक राजनैतिक दल सपा उसके अपेक्षित सहयोग के बाद भी केन्द्र में अपने बलबूते पर सरकार नही बना पायेगा उसे किसी न किसी दल सहयोग लेना पडेगा जबकि यदि कागें्रस को मत दिया गया तो वो बहुमत की सरकार बनाने की स्थिति में आ सकती है। यानी कुल मिलाकर मोदी फैक्टर चलने की स्थिति में मुख्य लडाई भाजपा बनाम कागे्रस ही दिख रही है। अब इस लडाई में किसकी जीत और किसकी हार होगी ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। पर इतना तय है कि इस लडाई में मूल नुकसान क्षेत्रिय पार्टीयो का ही होगा।
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