लोकसभा चुनाव में जबरदस्त पराजय के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी मूल धारा से अलग हट गए हैं। उन्हें अपनी ही नीति व कार्यक्रमों से डर लगने लगा है। शायद यही कारण है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली का अनुकरण कर रहे हैं। वे अपनी रणनीति से पीएम को मात देने के बजाये उनका फॉलोआप कर रहे हैं। प्रधानमंत्री बिहार आकर ‘बयान का एक डंस’ मार कर दिल्ली चले जाते हैं और फिर नीतीश कुमार व उनकी टीम ‘बयानों की लाठी’ पीटती रहती है।
वीरेंद्र यादव
लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी के कंपेन के प्रमुख रहे प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने किराये पर लिया। प्रशांत किशोर ने सरकार और जदयू को भेद समाप्त कर दिया और सरकार के खर्चे पर जदयू की प्रचार रणनीति बनाने में जुट गए। मामला कोर्ट तक पहुंचा। लोकसभा चुनाव में भाजपा का पूरा कंपेन नमो पर केंद्रित था, ठीक उसी प्रकार नीतीश कुमार ने कंपेन को खुद पर केंद्रित कर लिया। होर्डिंग्स में वे अपना ही ‘झूमर’ गाते दिख रहे हैं। वह खुद नारा लगा रहे हैं- फिर एक बार नीतीश कुमार।
जगह घेरो अभियान
भाजपा की प्रचार रणनीति का हिस्सा रहा है कि अखबारों की जगह और चैनलों के समय पर ‘कब्जा’ जमाए रखा जाए। इसके लिए प्रवक्ताओं से लेकर प्रकोष्ठ तक जुटे रहते हैं। कार्यक्रमों का सिलसिला जारी रहता है। अब यही नीतीश कुमार कर रहे हैं। आधा दर्जन प्रवक्ताओं के अलावा कई सांसद रोज बयान भेज दे रहे हैं। चैनलों पर जा रहे हैं। प्रधानमंत्री की धुआंधार रैली के बाद अब नीतीश कुमार व लालू यादव भी रैली आयोजित कर रहे हैं औइ इस माह के तीस तारीख को पटना के गांधी मैदान में स्वाभिमान रैली कर हैं।
टर्मलॉजी की नकल
नीतीश कुमार अब शब्दों की नकल भी करने लगे हैं। भाजपा से जुड़े संगठन ने ‘घर वापसी’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल की शुरुआत की थी। अब उसी तर्ज पर नीतीश कुमार ‘शब्द वापसी’ अभियान चला रहे हैं। कुल मिलाकर नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी की रणनीति को फॉलो कर रहे हैं। नीतीश आक्रमण के बजाय बचाव की मुद्रा में आ गए हैं। अब सवाल यह है कि क्या नीतीश ‘जूठन की राजनीति’ से आगे बढ़ पाएंगे या लालू यादव के वोट बैंक को ‘अगोरने’ की उम्मीद पर सत्ता में वापस आ पाएंगे।