इस्लामी बैंकिंग की वह कौन सी खूबी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसके कायल हो गये हैं. इसके प्रति उनके आकर्षण का आलम यहै है कि उन्होंने आरएसएस की परवाह किये बगैर एक खास कदम उठाने जा रहे हैं.
अब जल्द ही इस्लामिक बैंकिंग की शुरुआत नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात से होने जा रही है.
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार जेद्दाह स्थित इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक (आईडीबी) अहमदाबाद में अपना कार्यालय खोलने की प्रक्रिया केअंतिम चरण में है. माना जा रहा है कि इससे देश में कई नए उद्यमों (स्टार्टअप्स) को फंड मिल सकेगा.
अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सऊदी अरब यात्रा के दौरान इसके लिए समझौता हुआ था. इस समझौते पर आईडीबी की एक इकाई ‘इस्लामिक कॉर्पोरेशन फॉर द डेवलपमेंट ऑफ प्राइवेट सेक्टर’ (आईसीडी) और भारत के एक्जिम बैंक ने हस्ताक्षर किए थे.
आखिर क्या है इस्लामिक बैंगकिंग
दर असल इस्लामिक बैंकिंग, बैंकिंग की वह व्यवस्था है जिसमें कर्जदाता से ब्याज नहीं वसूला जाता, बल्कि कर्ज लेने वाले को होने वाले लाभ या घाटे को साझा किया जाता है. गौर हो कि इस्लाम में व्याज को हराम करार दिया गया है और व्याज का लेन-देन पूरे तौर पर प्रतिबंधित है. इसलिए इस्लामी बैंकिंग में घाटे-या मुनाफे को शेयर किया जाता है. दुनिया भर में इस्लामिक बैंकिंग बड़े तेजी से बढ़ रही है और एक अनुमान के मुताबिक वैश्विक स्तर पर 2020 तक इस्लामिक बैंकिंग का लाभ 30.3 अरब तक पहुंच जायेगा.
गुजरात के चर्चित मुस्लिम व्यवसायी जफर सरेशवाला को आडीबी की भारतीय इकाई का निदेशक बनाया गया है. सरेशवाला का कहना है कि किसी भी धर्म का व्यक्ति इसका फायदा उठा सकता है. इस्लामिक बैंकिंग का दुनिया में तेजी से प्रसार हो रहा है. एक अनुमान है कि 2020 तक वैश्विक इस्लामिक बैंकिंग उद्योग का लाभ 30.3 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर जाएगा.
‘कुछ लोग इस्लामिक बैंकिंग को लेकर अनावश्यक मुद्दे उछाल रहे हैं. वास्तव में अब इसे पूरी दुनिया में भागीदारी बैंकिंग के नाम से जाना जा रहा है.’
इस्लामिक बैंकिंग को नरेंद्र मोदी के समर्थन से भाजपा के एक खेमे के नाराजगी के सवाल पर सरेशवाला ने कहा, ‘मोदी बहुत व्यवहारिक आदमी हैं. वे निवेश, ढांचागत विकास, व्यापार और आर्थिक उन्नति को लेकर उत्सुक हैं.’ उनका यह भी कहना था, ‘आईसीडी की सुविधाएं सभी धार्मिक मान्यता वाले भारतीयों के लिए खुली होंगी.