नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक असम में अपने सहयोगियों के निशाने पर आई बीजेपी को अब इस मुद्दे पर बिहार के सीएम और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार की नाराजगी का भी सामना करना पड़ रहा है। जेडीयू ने इस बिल का विरोध किया है और पार्टी इस मसले पर संसद के अंदर और संसद के बाहर सरकार के खिलाफ आवाज उठाएगी। आरजेडी से अलग होने के बाद बीजेपी के साथ दोबारा सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार ने पहली बार मोदी सरकार के किसी बिल का सार्वजनिक विरोध किया है।
नवभारत टाइम्स के मुताबिक जेडीयू के सीनियर नेता के. सी. त्यागी ने एनबीटी से कहा कि केंद्र सरकार का प्रस्तावित बिल क्षेत्रीय अस्मिता पर हमला है। जेडीयू ने इस बिल का तब विरोध किया जब असम गण परिषद के नेताओं ने नीतीश कुमार से इस बिल पर विरोध में नीतीश कुमार से मदद मांगी। असम गण परिषद भी असम में बीजेपी सरकार की अहम घटक है। एजीपी के प्रमुख ने तो इतना तक कह दिया है कि अगर इस बिल को वापस नहीं लिया गया तो वह असम की एनडीए सरकार से अलग हो जाएंगे। दूसरी तरफ, इस बिल को लेकर असम के अलावा दूसरे नार्थ-ईस्ट राज्यों में भी विरोध और तेज होता जा रहा है।
मालूम हो कि नागरिकता संशोधन कानून के प्रावधान के अनुसार बांग्लादेश, पाकिस्तान के अल्पसंख्यक नागरिकों को भी आसानी से नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है। विपक्ष और नार्थ-ईस्ट में आंदोलनतर दलों का तर्क है कि इससे गलत परंपरा शुरू होगी। असम में इस बिल को लेकर हो रहे आंदोलन की अगुआई वहां की बीजेपी सरकार में सहयोगी असम गण परिषद कर रही है। 2016 में इस बिल को मोदी सरकार के कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद इसे संसद में पेश किया गया था। संसद ने बाद में इसे अधिक विचार के लिए संयुक्त संसदीय समिति को सुपुर्द कर दिया। संसदीय समिति की टीम पिछले हफ्ते इसी बिल पर तमाम पक्षों का राय जानने नार्थ-ईस्ट के दौरे पर गई थी। इसके बाद इस मामले ने फिर से तूल पकड़ लिया।