खबर है कि मोदी सरकार 200 करोड़ रुपये की लागत से चीन के कम्युनिकेशन युनिवर्सिटी की तर्ज पर पत्रकारिता विश्विद्यालय बनाने में जुटी है ताकि यहां से निकले छात्र सिर्फ सरकार का गुणगान कर सकें
कम्युनिकेशन युनिवर्सिटी ऑफ चाइना के बारे में कहा जाता है कि वहां के छात्र एडिटिंग और तकनीक में तो दक्ष होते हैं पर उन्हें प्रेसकांफ्रेंस में सवाल पूछने की शिक्षा नहीं दी जाती.
qz.com की खबर के मुताबिक इस पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए कम्युनिकेशन युनिवर्सिटी ऑफ चाइना को मॉडल के रूप में पेश किया जा रहा है.
इकोनामिक टाइम्स को इस बारे में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के एक गुप्त सूत्र ने बताया है कि पश्चिम के मीडिया इंस्टिच्युट दर असल पत्रकारिता के स्कूल हैं जबकि सरकार चीन के मॉडल को स्वीकार करना चाहती है.
गौरतलब है कि चीन में पत्रकारिता का प्रशिक्षण की खास बात यह है कि वहां विडियो एडिटिंग, टेलिविजन ब्रॉडकास्टिंग तो सिखाया जाता है लेकिन वहां के प्रसे पर सेंशरशिप की सीमायें भी पूरी दुनिया को पता है. उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी द्वार स्वीकृत शिक्षा ही ग्रहण करने की पाबांदी है. जहां सरकार की बातों को हूबहू रखना होती है और प्रेसकांफ्रेंस में सवाल पूछने का साहस कोई नहीं करता.
कम्युनिकेशन युनिवर्सिटी ऑफ चाइना में 1500 छात्र पढ़ते हैं जहां आर्ठ, डिजाइन, पब्लिक रिलेशन और विज्ञापन पढ़ाया जाता है. हालांकि यह विश्वविद्यालय खुद को चीन का टॉप रैंक पत्रकारिता विश्वविद्यालय कहता है लेकिन सच्चाई यह है कि यहां के छात्रों की डिग्रियों को कई इंस्टिच्युट रिकगनाइज नहीं करते क्योंकि उसे एक प्रोपगंडा स्कूल के तौर पर जाना जाता है.
हां लेकिन इस विश्वविद्यालय के छात्रों की नौकरी चीन सरकार के टीवी स्टेशनों, अखबारों और रेडियो में नौकरी जरूर मिल जाती है.
अब देखना की मोदी सरकार जिस पत्रकारिता विश्वविद्यालय के बनाने में जुटी है उसका असली स्वरूप क्या होगा.