बीते 12 अप्रैल को संदेहास्पद स्थिति में जहानाबाद स्थित अपने आवास पर फांसी के फंदे से झुलती पायी गर्इं जहानाबाद की तत्कालीन उत्पाद अधीक्षक रेणु कुमारी संदेहास्पद मौत के कारणों पर पड़ा पर्दा अबतक नहीं उठ सका।

रेणु कुमारी की अप्रैल में मौत हुई थी
रेणु कुमारी की अप्रैल में मौत हुई थी

विनायक विजेता

उम्मीद है कि इस रहस्यमय मामले से रेणु कुमारी की रक्त कोशिकाएं (टिशु) ही पर्दा उठाएगी जिन कोशिकाओं को जांच के लिए दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान में भेजा गया था।

डीजीपी अभ्यानंद ने कोशिकाओं को एम्समें जांच के लिए भेजे जाने की पुष्टि करते हुए बताया आत्महत्या और हत्या दोनों ही स्थिति में कोशिकाओं में अंतर हो जाता है। उन्होंने कहा कि संभवत: दिल्ली से जांच रिपोर्ट आ गई है पर उन्होंने उसे अभी देखा नहीं है।

प्रशासनिक तंत्र जहां इस मामले को आत्महत्या मानता रहा वहीं रेणु के पति वैभव और अन्य परिजन इसे अब भी साजिशन हत्या ही करार दे रहें हैं। रेणु के पति फिलवक्त झारखंड के गोड्डा में प्रखंड विकास पदाधिकारी के पद पर तैनात हैं। इधर जहानाबाद में जिला सहकारिता पदाधिकारी के पद पर तैनात रामाश्रय राम ने एक सनसनीखेज खुलासा किया है। रामाश्रय राम ने बताया कि ‘जिस दिन यह घटना हुई उसी दिन दोपहर बारह बजे उत्पाद विभाग का एक क्लर्क ट्रेजरी से बिल पास कराने संबंधी एक दस्तावेज पर रेणु कुमारी द्वारा किए गए हस्ताक्षर का सत्यापन कराने उनके पास आया था। जब उन्होंने उस क्लर्क से पूछा ही हस्ताक्षर शॉर्ट में क्यों है तो उस क्लर्क ने कहा था कि मैडम ऐसे ही हस्ताक्षर करती हैं।’

अब सवाल यह है कि जिस अधिकारी ने आत्महत्या का निर्णय लिया हो वह उसी दिन और घटना के कुछ ही पहले किसी बिल पर हस्ताक्षर क्यों करेगा। लगभग दो वर्ष पूर्व पटना से स्थानांतरित कर जहानाबाद की उत्पाद अधीक्षक के पद पर तैनात की गई रेणु कुमारी जहां सख्त मिजाज अफसर मानी जाती रहीं वहीं अपनी डयूटी के प्रति काफी वफादार भी।

उनकी जहानाबाद में तैनाती के बाद से ही वहां के उत्पाद औरशराब माफियाओं में हड़कंप मचा था और अवैध कारोबार करने वाल कई कारोबारियों की दूकान बंद हो गई थीं। षटना के दिन उन्होंने अपने विभागीय ड्राइवर को दोपहर बाद गाड़ी लेकर कचहरी रोड स्थित अपने आवास पर बुलाया था पर बाद में उनकी लाश उनके कमरे में पंखे से झूलती पाई गई थी।

बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रेणु मामले की जांच का जिम्मा डीजीपी अभ्यानंद को सौंपा था। अब सारा मामला उस कोशिकाओं की जांच रिपोर्ट पर निर्भर करता है कि मामला आत्महत्या का था या हत्या का। संभवत: बिहार का यह पहला मामला है जिसमें किसी संदेहास्पद मौत से पर्दा हटाने के लिए मृतक की कोशिकाओं की जांच करायी गई है।

By Editor


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