हम स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष्य में आप सभी प्रदेशवासियों और देशवासियों को शुभकामना देते हैं। हम इस अवसर पर उन शहीदों को भी नमन करते हैं,जिन्होने देश के खातिर अपनी जान कुर्बान कर दी। हम इस अवसर पर महात्मा गांधी सरीके महान विभूतियों को भी याद करते हैं,जिन्होने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर हमें आजादी दिलाई.
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर जद यू के बिहार प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने फेसबुक पर अपना विचार व्यक्त किया है. पढ़ें संपादित अंश-
भारत के कुछ शिक्षित लोग पश्चिम के मोह में फंसे हुए हैं। जो लोग पश्चिम के असर तले नहीं आए हैं,वे भारत की धर्म-परायण नैतिक सभ्यता को ही मानते हैं। उनको अगर आत्मशक्ति का उपयोग करना सिखाया जाय,सत्याग्रह का रास्ता बताया जाय,तो वे पश्चिमी राज्य-पद्धति का और उससे होनेवाले अन्याय का मुक़ाबला कर सकेंगे तथा शस्त्र बल के बिना भारत को स्वतंत्र करके दुनिया को भी बचा सकेंगे।
आज जरूरत है कि इन संदर्भों में हम अपनी स्वतन्त्रता को व्याख्यायित करें और इसे समझें,बुझें। हमें आजादी जरूर मिल चुकी है ,लेकिन अभी भी इस देश में एक बड़ा वर्ग आजादी के जश्न से अपने को दूर महसूस कर रहा है।
हमारी आजादी तब तक अधूरी है जबतक कि हम अपने सभी देशवासियों को भूख से आजादी नहीं दिला देते और जब तक हम सभी अपनी आत्मा को पवित्र नहीं कर लेते,हमारी आजादी बेमानी है।
देश किसी एक संप्रदाय का नहीं
हमारी एकता और अखंडता ही हमारी असली शक्ति है,इसे हमें पहचानना होगा।गांधी ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा था कि हिंदुस्तान में चाहे जिस धर्म के आदमी रह सकते हैं,उससे वह एक-राष्ट्र मिटने वाला नहीं है। जो लोग इस में दाखिल होते हैं,वे उसकी प्रजा को तोड़ नहीं सकते,वे उसकी प्रजा में घुलमिल जाते हैं। ऐसा हो तभी कोई मुल्क एक राष्ट्र माना जाएगा। हिंदुस्तान ऐसा था और आज भी है। यों तो जितने आदमी उतने धर्म मान सकते हैं। एक-राष्ट्र होकर रहने वाले लोग एक -दूसरे के धर्म में दखल नहीं देते,अगर देते हैं तो समझना चाहिए कि वे एक-राष्ट्र कहलाने के योग्य नहीं हैं। अगर हिन्दू मानें कि सारा हिंदुस्तान सिर्फ हिंदुओं से भरा होना चाहिए,तो यह एक निरा सपना है। मुसलमान अगर ऐसा मानें कि उसमें सिर्फ मुसलमान ही रहें तो उसे भी सपना ही समझिए। फिर भी हिन्दू,मुसलमान,पारसी,ईसाई,जो इस देश को अपना वतन मानकर बस चुके हैं -एक देशी हैं,एक मुल्की हैं,वे भाई हैं ,और उन्हें एक दूसरे के स्वार्थ के लिए भी एक होकर रहना पड़ेगा। दुनिया के किसी भी हिस्से में एक राष्ट्र का अर्थ एक धर्म नहीं किया गया है,हिंदुस्तान में तो ऐसा था ही नहीं।
गांधी अपने आचरण में पवित्रता के हिमायती रहे। उन्होने शराब की घोर निंदा की और इसे समाज का दूषण माना। हम आज शराब बंदी के जरिये गांधी के सपने की ओर बढ़ रहे हैं। आप भी इस अवसर पर यह शपथ लें कि अपने समाज से शराब को दूर कर देंगे। तभी जाकर हम गांधी को सच्चा स्वतंत्र भारत समर्पित कर सकेंगे। अपनी स्वतन्त्रता को आप इन्हीं आशयों में समझेंगे तो मुझे बेहद खुशी होगी।