एक चाय दुकानदार को 20 कप चाय और ढाई हजार रुपये खातिर, कोई पुलिस अधिकारी रात भर लॉकअप में रखे तो आपके दिल में उस पुलिस अधिकारी के प्रति क्या भावना पनपेगी?
निश्चित तौर पर आपके दिल में पुलिस वर्दी के प्रति सम्मान तो नहीं बढ़ेगा. जब जय प्रकाश नामक चाय दुकानदार को बिहार के सीतामढ़ी के रुन्नी सैदपुर थाने के सहायक अवर निरीक्षक अरविंद सिंह ने पहले तो जय प्रकाश को हुक्म दिया कि वह जल्द 20 कप चाय लाये. यह भी किया कि ये चाय वह किसी और से नहीं भेजे बल्कि खुद लेकर आये.
जय प्रकाश ने हुक्म की तामील की. एक एक कर पुलिसवालों के हाथो में गर्मागर्म चाय का ग्लास बढाया और फिर उसे लॉक अप में ठूस दिया गया.
यह बयान जय प्रकाश ने बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग को लिखित रूप से दिया है.
जय प्रकाश का कहना है कि उसे रात भर लॉकअप में रखा गया और छोड़ने के एवज 20 हजार रुपये से सौदे की शुरूआत हुई.उसे धमकाया गया कि उसके खिलाफ कुर्की जब्ती का हुक्म है. जय प्रकाश ने लाख कहा कि कुर्की मामले में उसे जमानत मिल चुकी है. इस पर भी अरविंद और उनकी टीम टस से मस नहीं हुई. हां इतना जरूर हुआ कि सौदे की दर कम कर दी और ढाई हजार रुपये में उसे छोड़ा गया.
मानवाधिकार आयोग से फरियाद
रात भर के टार्चर और पुलिस जुल्म से आजिज आकर जय प्रकाश ने मानवाधिकार आयोग में गुहार लगायी.
मामला आयोग के सदस्य नील मणि तक पुंचा. आपको याद होगा कि नीलमणि कुछ साल पहले तक बिहार के पुलिस महानिदेशक हुआ करते थे.
सुनवाई के दौरान आयोग को लगा कि चाय दुकानदार संग सहायक अवर निरीक्षक ने ज्यादती की है.तत्काल मामले की जांच डीएसपी स्तर के किसी अधिकारी से कराने का आदेश एसपी को दिया गया. डीएसपी को 30 अगस्त तक जांच रिपोर्ट के साथ आयोग के समक्ष हाजिर होने का निर्देश दिया गया है.
कुछ पुलिस वाले कह सकते हैं कि जय प्रकाश चाय वाले ने सारे बयान झूठे दिये हैं. यह भी हो सकता है कि जब 30 अगस्त को जांय रिपोर्ट सामने आये, उससे पहले ही जय प्रकाश चाय वाले को डरा धमाका कर तथ्यों को बदल दिया जाये. जांच का मामला अलग है पर क्या यह सच नहीं कि पुलिस की वर्दी पहने कुछ अधिकारी खुद को इलाके का दादा नहीं समझ लेते?
ऐसे में हमारे-आपके दिलों में वर्दी के प्रति जो भावना पनपती है उसे कहने की कोई जरूरत है क्या?