बिहार के शिक्षा विभाग की यह बेअदबी भी है और बशर्मी भी. उसने अपने एक अधिकारी को रिटायरमेंट के दिन सम्मानित करने के बजाये उनका पद घटा दिया.
बिहार राज्य पुस्तकालय एवं सूचना प्राधिकार केन्द्र के निदेशक श्याम नारायण कुंवर 31 जनवरी को रिटायर कर गये. लेकिन शिक्षा विभाग ने उन्हें रिटायरमेंट के साथ डिमोट भी कर दिया. किसी अधिकारी को डिमोट करना, सिर्फ उनको मिलने वाले आर्वेथिक लाभ में कमी और पद का डिमोशन नहीं बल्कि उनका अपमान करना भी है.
हां यह सही है कि श्याम नारायण कुंवर कोई दूध के धुले नहीं थे. उनके ऊपर अपने पद और अधिकारक्षेत्र के मिसयूज का इल्जाम था. उन्होंने कई लोगों को गलत तरीकी से नियुक्त किया था. इसके अलावा भी उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप रहे. पर ये तमाम मामले आज के नहीं बल्कि 3 साल पुराने हैं.
थोड़ी देर के लिए मान लिया जाये कि अगर श्याम नारायण का मामला काफी पेचीदा और कानूनी अड़चनों के कारण विलंबित हुआ जिसके कारण उन्हें तब सजा नहीं दी जा सकी तो अब भी बीच का रास्ता निकाला जा सकता था. उन्हें मिलने वाले आर्थिक लाभ में कुछ समय के लिए कटौती की जा सकती थी. लेकिन इस तरह का कदम जो उसने उठाया है उसे कैसे उचित माना जा सकता है?
ऐसे में सवाल यह था कि जिस अधिकारी को विभाग ने तीन साल पहले दोषी पाया था उन्हें तब सजा क्यों नहीं दी गयी? इस सवाल का जवाब देने के लिए शिक्षा विभाग का कोई अधिकारी तैयार नहीं है.
अगर श्याम नारायण भ्रष्ट थे तो उन्हें तीन साल पहले सजा नहीं देने वाले निश्चित तौर पर उनसे भी बड़े भ्रष्ट अधिकारी रहे होंगे. हो सकता है कि उनको सजा न देने के लिए श्याम नारायण ने तब रिश्वत भी दी होगी. हम श्याम नारायण के पक्ष में नहीं हैं. हमारी चिंता शिक्षा विभाग के व्यापक भ्रष्टाचार को लेकर है.वैसे भी बिहार का शिक्षा विभाग भ्रष्टतम विभागों में से एक माना जाता है.
शायद यही कारण रहा होगा कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने यह सोचा होगा कि अब, जब श्याम नारायण विभाग से सदा के लिए अलग हो रहे हैं तो उनका दोहन मुम्किन नहीं है. या यह भी सम्भव है कि रिटारमेंट के वक्त श्याम नारायण ने उनका मुंह ‘मीठा’ नहीं किया होगा. इसलिए उन्हें जाते जाते सजा दी गयी होगी.
रिटायरमेंट के वक्त किसी भी अधिकारी को उनके जीवन भर की कमाई से एकमुश्त लाखों रुपये मिलते हैं और आम तौर पर रिटारमेंट की खानापूर्ति करने में बड़े अधिकारी अनाकानी करते हैं ताकि उनसे उगाही की जा सके.
श्याम नारायण सिंह ने अपनी नौकरी के दौरान जो भी पाप किये उन्हें उसकी सजा मिनी चाहिए थी, और समय पर मिलनी चाहिए थी लेकिन रिटायरमेंट के वक्त उन्हें सजा दे कर शिक्षा विभाग एक स्वच्छ परम्परा के खिलाफ बेशर्मी और बेअदबी करके किया है. यह घटना साबित करती है कि विभाग में भ्रष्टाचार का अब भी बोलबाला है