मुजफ्फरपुर के सरैया का साम्प्रदायिक आक्रमण {दंगा नहीं} बिहार की पहली हिंसा है जिसमें भगवावादी मानसिकता और माओवादी लुटेरे एक मंच पर थे. पहले ने राजनीतिक रणनीति से काम लिया तो दूसरे ने आतंक और लूट से.

इसी हैंडल से हमला कर पीछे की खाट पर जला डाला अकबर अली और उनके नाती को. फोटो में अकबर अली का बेटा शमीम, दायें
इसी हैंडल से हमला कर पीछे की खाट पर जला डाला अकबर अली और उनके नाती को. फोटो में अकबर अली का बेटा शमीम, दायें

इर्शादुल हक, सम्पादक, नौकरशाही डॉट इन

महत्वपूर्ण नोट- सरैया साम्प्रदायिक आक्रमण की पृष्ठभूमि के चार मुख्य पहलू हैं. पहला भारतेंदु के अपहरण और हत्या का. दूसरा हिंसा का. तीसरा प्रशासन की भूमिका का और चौथा–  इस आक्रमण के पीछे छुपी रणनीति और इसके मास्टरमांइड की कहानी. इसके अलावा कुछ और पहलू भी हैं. पाठकों से आग्रह है कि इस पूरे मामले को समझने के लिए वे इन चारों पहलुओं को जरू पढ़ें तब ही किसी नतीजे पर पहुंचें. चूंकि भारतेंदु अपहरण और हत्या का मामला कई पेचीदगियों से भरा है इसलिए हम इस गुत्थी पर सबसे बाद की किस्त में चर्चा करेंगे.

सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि

आइए सबसे पहले इस आक्रमण की पृष्ठ भूमि और इसके पीछे छुपी रणनीति की परतों को समझते हैं. हम यह बताते चलें कि नौकरशाही डॉट इन को कुछ संदिग्धों की बातचीत की मोबाइल रिकार्डिंग भी मिली है. सरैया थना का अजीजपुर गांव पारू विधन सभा क्षेत्र का हिस्सा है. इस क्षेत्र में मलाह जाति का सामिजक प्रभुत्व है. यहां से भाजपा के प्रत्याशी चुनाव जीतते हैं. नाम है ओशोक सिंह. मलाह जाति का बड़ा हिस्सा उनके खिलाफ है. अशोक सिंह राजपूत हैं. जातीय वर्चस्व के संघर्ष के कारण मलाह उनसे नहीं जुड़ पाते. इसलिए मलाहों का गिना-चुना घराना अशोक सिंह से व्यक्तिगत संबंधों के कारण उनके संग है. दूसरी तरफ मलाहों का एक वर्ग माओवादियों के प्रभाव में है. अजीजपुर गांव, जहां आक्रमण हुआ, सरैया पुलिस स्टेशन से पांच किलो मीटर पर अलहदा बसा एक गांव है. यहां पिछड़े मुसलमानों के 56 परिवार हैं. यहां लहेरी, मंसूरी और अंसारी जाति के लोग हैं. यहीं वसी अहमद अंसारी का घर है जिन पर कमल सहनी के बेटे भारतेंदु के अपहरण का आरोप लगा. वसी अहमद वकील हैं. प्रखंड में ही वह न्याय मित्र के रूप में काम करते हैं. सामाजिक सरोकारों में सक्रियता के कारण लोकल एमएलए अशोक सिंह से उनके अच्छे संबंद हैं.

 यह कैसा हमला है जिसमें अभियुक्त का परिवार जिंदा बच जाता है?

भारतेंदु अपहरण की बात 9 जनवरी को सामने आती है. वसी अहमद परिवार पर अपहरण का आरोप लगता है. इसी दिन पुलिस में अपहरण  की खबर पहुंचती है. पर पुलिस एक ‘नेता’ के दबाव में एफआईआर दर्ज नहीं करती है. दूसरी तरफ मलाहों में आक्रोश फैलता है.सूत्र बताते हैं कि वह नेता मलाहों के आक्रोश को मुसलमानों की तरफ मोड़ने की साजिश रचता है.दूसरी तरफ वसी अहमद से अच्छे रिश्तों का हवाला देकर उसे भरोसा दिलाता है कि घबराने की बात नहीं है. पुलिस के सूत्र बताते हैं कि नेता उन्हें समझाता है कि यह प्रेम प्रसंग का मामला है. कुछ दिन में लड़का खुद ही सामने आ जायेगा. दिन बीतते जाते हैं. पूरा इलाका सुलगता रहता है. अफवाहवाजी चरम पर होती है. 18  जनवरी को भारतेंदु की लाश वसी अहमद के घर से दो सौ गज के फासले पर गेहूं के खेत में मात्र ढ़ाई फिट गहराई में मिलती है.  एक शिक्षित युवा इमरान उमर बताते हैं कि उसके शरीर का कुछ हिस्सा मिट्टी की सतह के बाहर है. इमरान ने खुद भी लाश को देखी है. सवाल है कि आखिर लाश का एक हिस्सा जमीन से बाहर क्यों होता हैं? लोग इकट्ठे होने लगते हैं. इससे पहले एक नेता का फोन वसी अहमद के मोबाइल पर आता है.{जांच कर्ताओं को इस कॉल डिटेल को देखना चाहिए}. इस फोन पर वसी अहमद से हमदर्दी जतायी जाती है. फिर वसी अहमद का परिवार साम्प्रदायिक आक्रमण के पहले ही घर छोड़कर जा चुका होता है.

 

माओवादी-भगवावादी सिचुएशनल गठजोड़

हमने ऊपर माओवादियों का जिक्र किया है. जो भारतेंदु अपहरण से आक्रोशित है. जो वसी अहमद से बदला लेना चाहता है. इसमें मलाह या निषाद जाति को उकसाने का एक भगवा ऐंगल भी है जो राम प्रेवश सहनी से जुड़ा है. राम प्रवेश सहनी के बारे में बताया जाता है कि वह बजरंग दल से जुड़े है. वह चकमा पंचायत के रहने वाले हैं. इसी पंचायत में भाजपा एमएलए अशोक सिंह का घर है. खैर, भगवा मानसिकता मलाह यानी निषाद जाति के लोगों के दिमाग में इस हत्या को अपनी अस्मिता से जोड़ती है. वहीं दूसरी तरफ माओवादी प्रभाव के लोग इसे कथित अन्याय के खिलाफ अपने वर्चस्व को चुनौती के रूप में देखते हैं. लाश मिलने के बाद माओवादी और भगवादियों में सिचुएशनल  अंडस्टेंडिंग बन जाती है. इसी मिले-जुले आक्रोश में औरतों, बच्चों, युवाओं की सैंकड़ों की भीड इकट्ठी होती है और अजीजपुर के अल्पसंख्यक घरों पर आक्रमण करने लगती है. पहले लोगों पर बेरहमी से आक्रमण किया जाता है. उनके घरों के दरवाजे तोड़ कर गहने, पैसे, गैसे सिलेंडर, खसी, बकरी, बक्से सब लूटे जाते हैं. उसके बाद लोगों को आग की लपटों के हवाले किया जाता है.

सुनियोजित तैयारी और सिचुएशनल भागीदारी

इस दौरान वहां मौके पर लोकल मुखिया कामेश्वर शुक्ल मौजूद होते हैं. हमें फकीर महम्मद की 18 वर्षीय बेटी शमा खातून बताती है कि शुक्ला इस दौरान लगातार फोन पर बात कर रहे होते हैं. वह फोन पर कह रहे होते हैं कि यहां पुलिस को आने नहीं दिया जाये. दूसरी तरफ लोकल एमएलए अशोक सिंह दो किलो मीटर के फासले पर एक चौराहे पर मौजूद होते हैं{ टोलिग्राफ अखबार ने अशोक सिंह की मौजूदगी का उल्लेख 20 जनवरी के अंक में किया है, जिसमें खुद अशोक सिंह ने कहा है कि वह वहां पहुंचने वालों में सबसे पहले रहे}  उस चौक पर, {अब पद से हटाये जा चुके} डीएसपी संजय कुमार सरैया पुलिस को लेकर पहुंचते हैं. लेकिन वहां पहले से मौजूद अशोक सिंह उन्हें चौक पर रोक लेते हैं और हालात के भयावह होने की बात बतायी जाती है. वहां यह अफवाह फैलायी जाती है कि 5-7 हजार लोग बमों से हमला कर रहे हैं. वहां पुलिस का जाना खतरे से खाली नहीं. जबकि  आक्रमण को अपनी आंखोंसे देखने वाले फकीर महम्मद बताते हैं कि उस भीड़ की संख्या3-4 सौ से ज्यादा नहीं होती. अजीजपुर से विस्फोट की आवाजें आती हैं. यह विस्फोट ट्रेक्टर के चक्कों के जल कर फटने और शादी में फोड़े जाने वाले राकेटों के हैं. नौकरशाही डॉट इन ने उन राकेटों यानी पटाखों के खोखे भी देखे. यह खबर आईजी पारसनाथ को भी मिलती है. उन्हें यह खबर मिलती है कि ओशोक सिंह ने पुलिस दस्ते को, हालात की भयावहता बता कर डीएसपी संजय कुमार को रोके रखा..आईजी पारसनता ने टेलिग्राफ के 20 जनवरी के अंग में इस बात का उल्लेख भी किया है.

यह लूट-पाट, आगजनी और मौत का तांडव पांच घंटे तक चलता है. 20 वर्ष का शमीम अली इन नजारों को अपनी आंखों से देखता है. उसके सामने उसके 60 साल के पिता अख्तर अली और उनके 16 वर्षीय नाती शमसुल मुस्तफा को एक चारपाई पर रख कर आग लगा दी जाती है. शमीम बताता है कि इस घटना से आहत वह भागता है, गिरता है फिर उठता है और भागता है. वह बताता है कि अख्तर अली को जला कर मारने से पहले चांपा कल के हैंडिल से उन पर प्रहार किया जाता है. शमीम खेतों को पार करता हुआ सरैया पुलिस स्टेशन में जा कर अपनी जान बचाता है. दूसरी तरफ भीड़ 55 वर्षीय अल्ताफ अली के घर में घुसती है. लूट-पाट के बाद उनके 12 वर्षी पोते के संग आग में डाल दिया जाता है.   इस घटना में और कितने लोग जलाये और मारे जाते हैं. यह आंकड़ा अभी भी पोख्ता नहीं क्योंकि 22 जनवरी तक जब नौकरशाही की टीम वहां रही, अनेक लोग गांव वापस नहीं आये होते. लेकिन फकीर मोहम्मद कहते हैं कि उनके घर के सामने  से पुलिस एक लाश को उठा कर ले जाती है.

राजनीतिक अजेंडा

ऊपर हमने एक मोबाल रिकार्डिंग की बात की है. उस रिकार्ड में एक बड़े नेता के भाई की बातचीत दर्ज है. इलाके में राजनीतिक फैसले लेने और रणनीति बनाने में उनका ही फैसला चलता है. वह घटना के दूसरे दिन मुसलमानों से मिलते हैं. वह इस घटना को कलंक बताते हैं. इसमें वह निषाद जाति के लोगों को अपने निशाने पर लेते हैं. निषादों के खिलाप गालियों से भरे शब्द इस्तेमाल करते हैं और बताते हैं कि उस जाति के लोग किसीके हमदर्द नहीं, न तो मुसलमानों के और न ही राजपूतों और भूमिहारों के. वह बताते हैं कि निषादों ने कभी उनकी हिमायत नहीं की, बल्कि उनके खिलाफ भी षडयंत्र करते रहे हैं. वह कई उदाहरण गिनाते हैं. इलाके के सजग लोग कह रहे हैं कि इस मामले बड़ा राजनीतिक खेल हुआ है.

इस पूरी घटनाक्रम को बारीकी से अपनी आंखों से देखने वालों में उमर अंसारी शामिल हैं. उमर अजीजपुर से कोई तीन किलोमीटर दूर के गोपालपुर नेउरा के रहने वाले हैं. उमर सरैया प्रखंड के प्रमुख रह चुके हैं और फिलहाल एसोसिएशन ऑफ लोकल गवर्नेस ऑफ इंडिया के वायस प्रसिडेंट हैं. इलाके अच्छा रसूख रखने वाले उमर कहते हैं- सरकार अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण और निषादों के संतुष्टिकरण की नीति पर चल रही है. ऐसे में इंसाफ की उम्मीद की कोई संभावना नहीं है. गोपालपुर के कई लोग उस आरोपी का हवाला देते हैं जो साम्प्रदायिक आक्रमण के आरोप में गिरफ्तार तो होता है पर दूसरे ही दिन पुलिस हिरासत से भाग निकलता है. वे सवाल उठाते हैं कि क्या सचमुच ऐसा हो सकता है कि आपोपी पुलिस हिरासत से भाग जाये?

23 जनवरी को पढ़ें – आक्रमण की पूरी कहानी और 24 जनवरी को पढ़ें भारतेंदु अपहरण और हत्या की  कंस्पिरेसी थ्युरी

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