यह भारत बंद नहीं बल्कि दलितों-पिछड़ों के प्रति सवर्णवादी घृणा के चरमोत्कर्ष का नमूना था. जहां पप्पू यादव को ‘यादव’ होने और श्याम रजक को ‘धोबिया’ होने की सजा मिली.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम[/author]
गुरुवार की भारत बंद के दौरान सांसद पप्पू यादव पर जानलेवा हमला. सहयोगियों की लात घूसे से पिटाई. खुद पप्पू की मां-बहन को भद्दी गालियां. फिर लाठी डंडे. वहीं बिहार के पूर्व मंत्री श्याम रजक की ठुकाई और कुटाई. गालियां देना. गाड़ी के शीशे पर डंडे बरसाना.इतना ही नहीं जहानाबाद के एएसपी संजीव कुमार पर लाठी-डंडे से प्रहार करना. भारत बंद के दौरान ये तीन उदाहरण काफी हैं. इन तीनों हमलो के पीछे बस एक मानसिकता काम कर रही थी- दलितों और पिछड़ों के प्रति सवर्णवादी घृणा.
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सवर्ण सेना नामक फेसबुकी संगठन ने बंद का आह्वान किया था. वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किये जा चुके एससी, एसटी ऐक्ट को संसद द्वारा फिर से बहाल करने का विरोध कर रहे थे. साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए आरक्षण की मांग कर रहे थे. लोकतंत्र में अपनी मांगों के प्रति आंदोलन का हक सबको है. पर इस आंदोलन के पर्दे के पीछे गुंडागर्दी और गैरसवर्णों के नुमाइंदों के खिलाफ जहर उगला जाना, हमला करना और मां बहन की गाली देना क्या दर्शाता है?
भारत बंद- गैरसवर्ण नुमाइंदों पर जानलेवा हमला
अपने ऊपर हमले की दास्तान श्याम रजक और पप्पू यादव ने रो-रो कर बयान किया है.पप्पू ने कहा कि “इक्यावन की उम्र में मैने कभी नहीं जाना कि जाति क्या होती है. अपने बेटी की सौगंध खा कर कहता हूं कि मैंने कभी किसी की जाति पूछ कर मदद नहीं की.पर मुझे मेरी जाति के कारण मेरी मां को गाली दी गयी”. पप्पू बिलख कर रो रहे थे.
लोगों ने उन पप्पू को बिलखते देखा जो किसी दौर में बाहुबली के रूप में जाने जाते थे. हत्या, हिंसा और रंगदारी के आरोपी हुआ करते थे. जेल की सजा काट चुके थे. वही पप्पू भारत बंद के दौरान आज इस जातिवादी जहर के आगे बेबस से थे. मजबूर पप्पू राजनीति छोड़ देने की बात कह रहे थे.
भारत बंद जिसमें श्याम रजक को ‘धोबिया’ कहके पीटा गया
उधर बेगुसराय में श्याम रजक को मात्र 25-30 गुंडों की टोली ने घेर लिया. श्याम ने अपना हाल सुनाते हुए कहा कि उन्होंने मेरे काफिले को घेर लिया. उन्होंने कहा कि यही है श्याम रजक. यही है धोबिया. मां-बहन की गालिया दीं. लात-जूता से हमला किया. मुझे चोट आयी. सर पर चोट आई. सर भी फूटा. मेरे स्कॉट कर्मी के नेम प्लेट को देखा. ‘मांझी’ टाइटल देख कर उसे भी गाली दी. उसे जला देना चाहते थे.”
जातीय उन्माद की पराकाष्ठा और क्या हो सकती है? एक खास वर्ग के खिलाफ घृणा का और क्या सुबूत हो सकता है? श्याम रजक के बारे में याद करने की जरूरत है कि वह सत्ताधारी दल के वरिष्ठतम नेताओं में से हैं. दलित आरक्षण की मुखर आवाज हैं. सत्ताधारी नेता भी सलामत नहीं तो और कौन सलामत होगा. सोचिए.
हम उस दौर में जी रहे हैं जब किसी की धार्मिक पहचान के कारण उसकी जान ली जा रही है तो किसी की जातीय पहचान के कारण. श्याम रजक ने ठीक ही कहा कि जब दिल टूटेगा तो यह देश भी टूट जायेगा.