मुलायम सिंह की सलतनत में एक बुजुर्ग अखलाक अहमद को बीफ रखने के झूठे आरोप में हुजूम ने पीट-पीट कर मार डाला. इसका पैगाम बहुत खतरनाक है. इस पैगाम को समझने की जरूरत है. अगर मुसलमानो तुम नहीं समझे तो मार डाले जाेंगे.
अशफाक रहमान
यह घटना गाय के प्रति श्रद्धा का नहीं, बल्कि मुसलमानों से नफरत का है. अगर गाय से इतनी ही श्रद्धा होती तो फिल्म स्टार श्रृषि कपूर, लेखिका शोभा डे और मोदी मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री रिजीजू के घर के सामने दादरी के उत्पाती लोग प्रदर्शन कर रहे होते और उग्रता में उनके घरों में तोड़-फोड़ कर रहे होते तो बात समझ में आती. दुनिया जानती है कि ऊपर वर्णित तीनों मशहूर हस्तियों ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है कि वे लोग गाय का मांस खाते हैं.
दर असल गोधरा से ले कर मुजफ्फरनगर तक नफरत की जो चिनगारी सुलग रही है वह अब हिंदू राष्ट्र का शोला बन कर भड़क रहा है. आरएसएस के संस्थापक ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि मुसलमानों को भारत में रहने दिया जायेगा लेकिन हिंदुत्व की शर्त पर. गोलवालकर ने हिंदू राष्ट्र का जो सपना देखा गया था अब उस सपने को सच करने की दिशा में काम शुरू हो गया है. दादरी की घटना इसकी एक मिसाल है. हिंदू राष्ट्र का ब्लू प्रिंट यही है कि अगर देश हिंदू राष्ट्र हुआ तो मुसलमानों को ऑन स्पाट सजा दी जायेगी.
संघ की इस नफरत भरी मानसिकता को देश के मीडिया का एक बड़ा वर्ग फैलाने में लगा है और यह घटना उसी नफरत की मानसिकता का नतीजा है.
कितनी विडम्बना है कि मंदिर के पुजारी ने स्वीकार किया कि उसने ऐलान करके लोगों को बुलाया ताकि अखलाक के घर में घुस कर उसे लोग कत्ल कर दें. लेकिन इस पुजारी को अब तक गिरफ्तार भी नहीं किया गया.
यह घटना गाय के प्रति श्रद्धा का नहीं, बल्कि मुसलमानों से नफरत का है. अगर गाय से इतनी ही श्रद्धा होती तो फिल्म स्टार श्रृषि कपूर, लेखिका शोभा डे और मोदी मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री रिजीजू के घर के सामने दादरी के उत्पाती लोग प्रदर्शन कर रहे होते और उग्रता में उनके घरों में तोड़-फोड़ कर रहे होते तो बात समझ में आती. दुनिया जानती है कि तीनों मशहूर हस्तियों ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है कि वे लोग गाय का मांस खाते हैं.
जहां खलाक के कातिलों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए था वहीं पुलिस अखलाक के घर के फ्रीज में रखे गोश्त की जांच करवाने में लगी है, जबकि अखलाक की बेटी साजिदा ने यहां तक कह दिया है कि गोश्त की जांच से अगर पता चल जाये कि वह गाय का नहीं तो क्या वे लोग मेरे अब्बू को जिंदा वापस मुझे दे देंगे?
तब तो सेक्युलरिज्म की मौत हो जायेगी
हैरत की बात तो यह है कि मुलायम सिंह यादव समाजवाद के बड़े पहरेदार बनते हैं. लेकिन इनकी ही सलतनत में मुसलमानों का खून हो रहा है और वह मौन दर्शक बने हुए हैं. ऐसा लगता है कि उन्होंने धर्माँधों और साम्प्रदायिक शक्तियों से मौन समझौता कर लिया है.
इस घठना के बाद सेक्युलर भारत के लोग सकते में है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जो सेक्युलरिज्म के नाम पर सियासत की रोटी सेकते हैं वे आज चुप हैं और उनकी चुप्पी के कारण देश में फासिज्म, सेक्युलरिज्म को निगल जाने पर आमादा है.
दादरी का पैगाम यह है कि अब दबे-कुचले, दलित, पिछड़े सब एक प्लेटफॉर्म पर जमा हो जायें और हिंदुत्व के घृणित मंसूबे को चकनाचूर कर दें. इस पैगाम को मुसलमानों को भी समझना होगा. उन्हें लालू-मुलायम-नीतीश जैसे ढोंगें सेक्युलर नेताओं को भी समझना होगा और उनका भी सियासी तौर पर सफाया करना होगा.
अशफाक रहमान जनता दल राष्ट्रवादी के राष्ट्रीय संयोजक हैं