लोकतंत्र में हार-जीत एक नियमित प्रक्रिया है.पर राजनीति में सही समय में सही फैसला सब के बूते की बात नहीं होती. नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे कर विरोधियों को चित करने की रणनीति अपना ली है.
यूं तो यह पहले से आशंका थी कि लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद नीतीश की पार्टी में भगदड़ मचे सकती है. जिस तरह से पार्टी विधायक नरेंद्र सिंह ने बगावती तेवर अपना रखे थे, उससे ऐसा ही लग रहा था. लेकिन, इससे पहले कि जद यू के कुछ विधायक बगावती तेवर अपनाते, नीतीश ने इस्तीफा देकर और विधानसभा भंग न करके, उनकी सारी रणनीति में पलिता सा लगा दिया है. साथ ही, नीतीश ने भारतीय जनता पार्टी के नेता सुशील मोदी को आत्मरक्षा के लिए मजबूर कर दिया है. मोदी चुनावों के दौरान कहते रहे थे कि जद यू के 50 विधायक उनके सम्पर्क में हैं और चुनाव होते ही नीतीश सरकार गिर जायेगी. अब चूंकि नीतीश ने इस्तीफा दे दिया है तो सुशील मोदी को जदयू के 50 बागी विधायकों के साथ सरकार बनाने की पहल करनी चाहिए. पर शायद ही वह इतना हौसला दिखा पायें.
दर असल नीतीश कुमार ने एक सधी रणनीति के तहत इस्तीफा दिया है. इस्तीफा के कई मकसद हैं. एक तो यह कि अब जद यू के अंदर भगदड़ की संभावनायें खत्म होंगी. क्यों? क्योंकि विधायकों को यह लालच सतायेगा कि अगर जदयू फिर सरकार बनायेगा तो उन्हें मंत्री बनने का अवसर मिल सकता है. ऐसे में बागी नरेंद्र सिंह अकले पड़ जायेंगे और पार्टी छोड़ने का जोखिम नहीं उठायेंगे. और फिर सत्ता किसे प्यारी नहीं, यह सोच कर वह नीतीश के सामने नतमस्तक भी हो सकते हैं.
इधर इस इस्तीफे का एक मजबूत कोन राष्ट्रीय जनता दल से जुड़ा है. आपको याद होगा कि चुनाव परिणामों के तुरंत बाद लालू प्रसाद ने कह दिया था कि अब समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष ताकतों को फिर से एक होना पड़ेगा, अगर साम्प्रदायिक शक्तियों से लोहा लेना है तो. हालांकि इस खबर को द्रुत गति से चलने वाले मीडिया ने तरजीह नहीं दी लेकिन नीतीश ने लालू के संकेत को फौरन समझ लिया. कुछ सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि जद यू और राजद के शीर्ष नेतृत्व के बीच बातचीत भी हो चुकी है. मतलब साफ है. अगर जद यू की नयी सरकार पर कोई खतरा आया तो राजद और कांग्रेस उसे बचाने आ जायेंगे. इसके लिए राजद और कांग्रेस के कुछ नेताओं को मंत्रिपद भी सौंपा जा सकता है.
आज शाम, जब जद यू विधायक दल की बैठक होगी तब सारी चीजें सामने आयेंगी. पर अब यह संभावना काफी प्रबल हो चुकी है कि लालू और नीतीश करीब आयेंगे.
चूंकि विधान सभा का कार्यकाल एक साल में खत्म होने वाला है और जिस तरह से नेंद्र मोदी द्वारा वोटरों को ‘मदहोशी की घुट्टी’ पिलायी गयी है, इसका असर कहीं विधानसभा चुनाव तक रहा तो राजद व जद यू के लिए यह स्थिति भयावह हो सकती है. ऐसे में नीतीश और लालू एक साथ मिल कर भाजपा का सामना करने पर विचार कर सकते हैं.