बिहार विधान सभा चुनाव का दो चरण संपन्न हो गया। वोटों का ध्रुवीकरण भी स्पष्ट दिखने लगा है। वोट के लिए विकास कोई मुद्दा नहीं है। हर जगह सिर्फ जाति बच गयी है। पार्टी के पक्ष में जातियों का गठजोड़ और उम्मीदवार की जाति ही वोटरों को मतदान केंद्र तक पहुंचाने में प्रेरक का काम कर रहा है। मतदान केंद्र पर पहुंचे वोटरों को न सड़क से मतलब है, न बिजली से, न विकास से। ये मुद्दे सिर्फ ‘ गलथेथरी ‘ के लिए हैं, वोट देने के आधार नहीं।
वीरेंद्र यादव
इलेक्शन जर्नी- पटना से मखदुमपुर -1
शुक्रवार को हम जहानाबाद और मखदुमपुर विधान सभा से कई बूथों पर गए। दर्जनों लोगों से बातचीत की। जहानाबाद के एक बूथ पर एक युवक ने समझाया- यहां सब शांतिपूर्ण चल रहा है। भूनिहार (भूमिहार) सब पंखा में वोट दे रहा है। गोआर (यादव) लालटेन में। चमार का वोट भी लालटेन में जा रहा है। पासवान पंखा में दे रहा है। कोईरी वोट बंट रहा है। लालटेन में भी जा रहा है और पंखा में भी। हमने उस लड़के से पूछा- तुम किस जाति के हो। उसका जवाब था- भूमिहार। एक अन्य बूथ पर एक पोलिंग एजेंट ने बताया- यहां ज्यादा वोट पंखा में जा रहा है। भूमिहार का गांव है। हमने उनसे पूछा- आप किस जाति के हैं। उनका जबाव था- यादव।
हर जगह सिर्फ जाति
मतदान केंद्र व मतदान केंद्र के बाहर चर्चा का विषय था- यादव व भूमिहार। यादव के पक्ष में कौन खड़ा है और भूमिहार के पक्ष में कौन खड़ा है। उम्मीदवार की पहचान लालटेन (राजद ) से थी या मोदी (रालोसपा) से। लगभग यही स्थिति सभी बूथों पर थी। कोई भी बूथ जाति विशेष के प्रभाव वाला नहीं था, संख्या ज्यादा भले हो। जहानाबाद के शहरी मतदान केंद्र हो या अरवल व पटना की सीमा से लगा रतनी फरीदपुर प्रखंड के लाखापुर मतदान केंद्र हो, वोटरों का स्वर लगभग एक समान। बातचीत की शुरुआत यहीं से होती थी कि किस जाति का वोट किसे मिल रहा है।
जाति से इतर कोई नहीं
इसका असर यह रहा कि इस गोलबंदी में अन्य जातियां, जो सीधे-सीधे किसी पार्टी की नहीं मानी जाती हैं, वे भूमिहारों के बजाय यादव के साथ खुद को सहज महसूस कर रही थीं। यहीं पर एनडीए के पक्ष में भूमिहारों की गोलबंदी उसके लिए परेशानी का कारण बन रहा है। जब वोट देने के लिए पार्टियों के चयन में जाति की भूमिका निर्णायक हो गयी है तो बहुसंख्यक जातियों का भारी पड़ना स्वाभाविक है। लेकिन इतना तय है कि यह लड़ाई यादव और भूमिहार की हो गयी है और कोई भी पार्टी, गठबंधन या उम्मीदवार इससे इतर नहीं जाना चाहता है।