कई बार नारे मतदाताओं पर अचूक असर करते हैं. कुछ नारे तो इतने लोकप्रिय हो जाते हैं कि वे बड़े तो बड़े, बच्चों के बोल चाल की भाषा का हिस्सा बन जाते हैं. ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि यूपी में राजनीतिक पार्टियां कैसे-कैसे नारे गढ़ रही हैं.
नारों या स्लोगन युद्ध की सबसे दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस ने कोई एक साल पहले चुनावी प्रचार की कमान संभाली तो उसने जो सबसे मजबूत नारा गढ़ा था वहा था- ’27 साल यूपी बेहाल’. लेकिन चुनाव आयोग द्वारा चुनावी बिगुल फूकने के बाद जब कांग्रेस और सपा ने गठबंधन कर एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया तो आनन-फानन में इस नारे को वापस ले लिया गया. अब कांग्रेसी यह नहीं कह रहे कि 27 साल यूपी बेहाल.
अब इन दोनों पार्टियों के लिए नया नारा है- ‘यूपी को ये साथ पसंद है’. यानी राहुल और अखिलेश अब एक हो चुके हैं. इसलिए ये नरा जोर पकड़ रहा है. कांग्रेस का एक नारा जो अखिलेश के साथ मिलने के बाद भी जारी है वह है- ‘राहुल भैया आयेंगे, यूपी को बचायेंग’.
इसी तरह अखिलेश के समर्थकों की जुबान पर भी कुछ प्रभावित करने वाले स्लोगन हैं. अखिलेश समर्थकों ने नारा दिया है ‘नो कंफ्युजन, नो मिस्टेक- सिर्फ अखिलेश, सिर्फ अखिलेश’. इसी तरह सपा के नारे गढ़ने वालों ने महिलाओं को प्रभावित करने के लिए नारा दिया है- ‘जीत की चाभी, डिम्पल भाभी’. इसके अलावा पार्टी के बुजुर्ग नेता मुलायम को ले कर एक प्रचलित नारा दिया गया है- ‘जिसका नाम मुलायम है, उसका जलवा कायम है’
उधर भाजपा भी अपने आक्रामक नारों के साथ मैदान में कूद चुकी है. उसके निशाने पर अखिलेश और मुलायम हैं. उसका एक नारा है- ‘बाप-बेटे के ड्रामे हजार, नहीं चाहिए ऐसी सरकार’. इसी तरह उसका दूसरा नारा है’न भ्रष्टाचार न गुंडों का अत्याचार, अबकि बार भाजपा सरकार’.
नारों और स्लोगनों की इस दौड़ में बहुजन समाज पार्टी भी अपने खास अंदाज में सामने आ चुकी है. उसका नारा है- ‘भ्रष्टाचार गुंडाराज को जाने दो, बहनजी को आने दो’.