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इस खबर से पूरी दुनिया में कोहराम मचना चाहिए था. लेकिन मीडिया ने इसे बहुत तवजो नहीं दी. ये उन मुसलमानों की लटकी लाशें हैं जो भैंस के व्यापारी थे और उन्हें गोरक्षा मंच से जुडें आतताइयों ने हत्या कर दी.

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इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

यह मामला झारखंड के लातेहार का है. मृतक मजलूम अंसारी के भाई मुनव्वर ने पत्रकारों को बताया, “वे लोग चतरा के टुटीलावा पशु मेले में जा रहे थे. लातेहार के एसपी ने इस बात की पुष्टि की है कि उसने मिथिलेश, मनोज शाहू, प्रमोद शाहू अवधेश साव, को गिरफ्तार किया है. पुलिस धीक्षक अनूप बिरथरे के मुताबिक मिथिलेश शाहू गोरक्षा मंच का सदस्य है. एसपी बिरथरे का कहना है कि इन आरोपियों ने पहले उनकी भैंसें लूटने की कोशिश की. लेकिन विरोध करने के बाद उन्हें गला दबा कर हत्या कर दी. फिर लाश को पेड़ पर लटका दिया.

दरिंदो का राज

सवाल है कि झारखंड में किसी चुने हुए सरकार का राज है या दरिंदों का या फिर जंगल राााज इसे ही कहते हैं. क्योंकि चार महीने में इस तरह की यह दूसरी घटना है. भले ही पहली घटना मेंं जिस व्यापारी का अपहरण किया गया था  वह जान बचा   कर भागने में सफल रहा था.राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को बताना चाहिए कि जब राज्य में दरिंदों का राज है तो फिर उनकी क्या जरूरत है.

देश में इतनी दर्दनाक हत्या पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के दादरी में की जा चुकी है. जहां एक बुजुर्ग को बकरीद के बाद पीट पीट कर हत्या कर दी गयी थी. आरोप यह लगाया गया था कि उसने अपने घर में गोमांस रखा था. बाद में जांच से यह साफ हो गया था कि दादरी कांड में मारे गये मुस्लिम बुजुर्ग के के फ्रिजे में रखा मांस खसी का था.

 

ताजा घटना के बाद पूरे झारखंड में मुसलमानों में खौफ है. झारखंड की भाजपा सरकार में मानवता खतरे में है. याद रखने की बात है कि इस घटना के बाद लातेहार के विधायक प्रकाश राम ने बीबीसी से कहा कि “चार महीने पहले भी इसी गांव के पास अपराधियों के एक गुट ने एक पशु व्यापारी को अगवा कर लिया था. उसकी भी हत्या कर दी जाती लेकिन उनके चंगुल से वह भाग निकला.”

सवाल यह है कि लातेहार की यह पहली घटना नहीं है. इससे पहले ऐसी घटना हो चुकी है लेकिन राज्य सरकार ने इस घटना के बाद क्या किया? जिस राज्य में कानून अपराधियों के ठेंगे पर हो तो वहां की हालत समझी जा सकती है. अपराधियों का मनोबल ऐसे ही नहीं बढ़ता. जब पिछली घटना में अपराधियों के खिलाफ मजबूत कार्रवाई हुई होती तो ऐसी घटना फिर से दोहराई नहीं जाती.

 

ऐसी घटनायें जो एक खास साम्प्रदायिक मानसिकता से प्रभावित लोग अंजाम देते हैं, उससे अल्पसंख्यक समाज में असुरक्षा की भावना बढ़ना स्वाभाविक है. अगर अपराधी इस तरह से कानून व्यवस्था को अपने हाथों में लेते रहेंगे तो इसे किसी भी हाल में कानून का राज नहीं बल्कि जंगल राज कहा जायेगा.

ताजा मामले में भले ही पुलिस ने कुछ आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. पर यहां सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अल्पसंख्यक समाज के लोगों के दिलों में कानून के राज का भरोसा भी मिलना चाहिए. सरकारों को यह समझना होगा कि जिस सरकार में अपराधी कानून को अपने हाथों में लेंगे तो वहां प्रतिरोध की भावना बढ़ेगी. और ऐसे में राज्य में शांति भंग होने का खतरा रहेगा.

By Editor


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