जब लुटेरों ने देश के दस सर्वश्रेष्ठ फोटो पत्रकारों में से एक कृष्ण मुरारी किशन को गोली मारी तो वह मौत को मात दे कर फिर पत्रकारिता में कूद पड़े लेकिन अबकी बार वह मौत को मात नहीं दे सके.
विनायक विजेता
बिहार ही नहीं देश के दस सर्वश्रेष्ठ फोटोग्राफरों में शुमार कृष्ण मुरारी किशन जी से हमारी पहली मुलाकात 14 जनवरी 1981 में तब हुई थी जब वो कोलकाता से प्रकाशित और तब के सबसे चर्चित साप्ताहिक ‘रविवार’ के लिए कार्य किया करते थे। उस वक्त किशन जी की कला की इतनी धाक थी कि उन्हें इस पत्रिका द्वारा बिहार के बाहर भी फोटोग्राफी के लिए बुलाया जाता था। किशन जी से जब पहली बार सासाराम में हमारी मुलाकात हुई तो उस वक्त मैं सातवीं कक्षा में पढ़ा करता था। उस वक्त बेगुसराय निवासी व रविवार में कार्यरत वरीय उपसंपादक विजय कुमार मिश्र जो हमारे नजदीकी रिश्तेदार हैं एक न्यूज के सिलसिले में डुमरांव (बक्सर) के पास स्थित एक गांव में मल्लू नामक मजदूर की व्यथा पर रिपोर्टिंग करने गए थे।
‘रविवार’ से ‘राॉटर’ तक
तब 12 किलोमीटर पैदल चलकर तैयार की गई यह रिपोर्ट ‘रविवार’ में ‘मल्लू की आजादी, राय साहब के यहां गिरवी’ शीर्षक से छपी थी। स्टोरी ने तो हंगामा मचाया ही था कृष्ण मुरारी किशन की तस्वीरे भी काफी चर्चित हुई थीं। बक्सर से ही लौटने के दौरान विजय भैया और किशन जी रोहतास के तत्कालीन एसपी किशोर कुणाल और उनकी पत्नी के साथ रात हमारे घर पहंचे और चारो लोगों ने हमारे घर पर ही खिचड़ी का आनंद लिया।
हमारे रिश्तेदार विजय कुमार मिश्र जो नेतरहाट विद्यालय से पासआऊट थे वो और किशोर कुणाल पटना कॉलेज मे बैचमेट रहे थे। उस वक्त मेरे इंजीनियर पिता सासाराम में पदस्थापित थे। अपने रिश्तेदार से ज्यादा किशन जी से प्रभावित होकर तब मैंने कोलकाता जाकर उस वक्त का मशहुर कैमरा ‘जेनीथ’.खरीदा था और पत्रकारिता जीवन की पहली शुरुआत मैंने फोटोग्राफी से ही की थे।
कृष्ण मुरारी किशन के बारे में कहा जाता है कि दुनिया की शायद ही कोई ऐसा पत्र-पत्रिका हो जहां उनकी तस्वीर न छपी हो. उन्होंने रविवार से लेकर रॉयटर तक और बीबीसी से लेकर युरोप और अमेरिका के अनेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए तस्वीरें खीची.
मैंने किशन जी को कभी तनाव में नहीं देखा। हर क्षण उनके चेहरे पर मुस्कराहट ही देखी। न अहंकार न अभिमान। बड़ो को प्रणाम और छोटों को स्नेह व प्यार शायद किशन जी के जन्मजात संस्कारों में शामिल रहा।शयद कम ही लोगों को पता होगा कि किशन जी ने अपने घर के सामने एक चाय विक्रेता की छोटी बच्ची में पढ़ने की ललक देक अपने खर्च से उसका स्कूल में नामांकन कराया और अबतक वह उस बच्ची का खर्च उठा रहे हैं जो बच्ची उन्हें ‘मामा’ कहती है।
डेढ़ दशक पूर्वं मुजफ्फरपुर से देर रात पटना लौटते वक्त भगवानपुर के समीप रोड लुटेरों ने किशन जी की गाड़ी रुकवा उन्हें लूटने के क्रम में उन्हें गोली मार दी थी (तस्वीर) तब काफी गंभीर और चिंताजनक स्थिति में पटना लाए गए किशन जी को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इलाज के लिए दिल्ली भिजवाया था जहां चिंताजनक स्थिति रहने के बाद भी किशन जी ने मौत को मात दे दी थी पर इस बार वह मौत को मात नहीं दे सके और जिंदगी और मौत के बीच आठ दिनों से चल रही लड़ाई में कुख्यात मौत ने उन्हें अपने सामने घुठने टेकने पर मजबूर कर दिया।
बड़े भाई समान और हमारे प्रेरणा किशन जी को हमारी भावभीनी श्रद्धांजली…..‘हम आपको यूं भूला न पाएंगे, जब भी आएगी याद तेरी-दो बूंद आंसू जरूर बहाएंगे!’