जदयू, राजद व कांग्रेस के महागठबंधन की सबसे बड़ी पीड़ा है कि सरकार में आने के बाद से ही ‘जाने’ की खबरों से परेशान है। जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव के बीच मतभेद, महागठबंधन में दरार और सरकार के भविष्य पर संकट की चर्चा आम रही है। इसकी एक वजह राजद का ‘भूमिहार-बंधन’ भी है। अन्य वजहें भी हैं।
वीरेंद्र यादव
राजद ने विधानसभा चुनाव में एक भी टिकट भूमिहार जाति के नेताओं को नहीं दिया था। यह राजद की मजबूरी थी। पार्टी यह संदेश देना चाहती थी कि भूमिहार जाति उसकी सबसे बड़ी दुश्मन है। लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर भूमिहार को हाशिए पर रखने वाला राजद ‘खबरों के मोर्चे’ पर भूमिहार पत्रकारों के निशाने पर आ गया है। राजद की हर खबर को महागठबंधन के ‘सशंकित भविष्य’ से जोड़ दिया जाता है। इसकी वजह है कि कई समाचार पत्र और चैनलों में राजद का बीट भूमिहार पत्रकारों के पास है।
राजद बीट के कई पत्रकार भूमिहार
पटना से प्रकाशित कम से कम तीन अखबारों में राजद का बीट देखने वाले पत्रकार भूमिहार जाति के हैं। एक टीवी चैनल का राजद बीट देख रहे पत्रकार भी भूमिहार हैं। स्थानीय खबरों में इन अखबारों और चैनल का असर काफी है। इस कारण राजद या महागठबंधन से जुड़ी खबरों में नकारात्मकता ज्यादा दिखती है। एक अखबार ने राजद और लालू यादव परिवार के विभाग का पूरा जिम्मा ही भूमिहार पत्रकार को सौंप दिया है। वाट्सअप पर एक ग्रुप उपमुख्यमंत्री के नाम का है। इस ग्रुप में चार एडमिन हैं, जिसमें दो भूमिहार हैं। मीडिया के मोर्चे पर भूमिहार पत्रकारों के साथ राजद की ‘आत्मीयता’ की पीड़ा महागठबंधन झेल रहा है। राजद के बीट देख रहे पत्रकारों की खबरों का एंगल ‘दरार’ खोजता हुआ नजर आता है। इस दरार को लेकर महागठबंधन के नेताओं को बार-बार सफाई देनी पड़ती है। इस फेर में महागठबंधन में गरमाहट आये या नहीं, खबरों में जरूर गरमाहट बनी रहती है।
बाबू साहब का छोंक
उधर, राजद और जदयू के दो ‘बाबू साहब’ खबरों में छोंक का ठेका ले रखे हैं। जब कोई खबर राजद वाले पत्रकारों को नहीं मिलता है तो ‘बाबू साहब’ को उकसा देते हैं। फिर बयानबाजी का तीर शुरू हो जाता है। इसके बाद ‘जबान पर ताला’ लगाने की नसीहत दी जाती है। इस बीच फिर कोई नया ‘दरार’ मिल जाता है। इस प्रकार भूमिहार, पत्रकार और दरार की राजनीति में महागठबंधन बेचैन रहता है। इस बैचेनी की शिकन अब सीएम नीतीश कुमार के चेहरे पर भी दिखने लगी है।