भाजपा के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए बिहार की तीन दलों राजद, जदयू और कांग्रेस नया गठबंधन बनाया है। इसे इन दलों में महागठबंधन का नाम दिया है। बुधवार को तीनों दलों के प्रदेश अध्यक्षों ने होटल मौर्या में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में इसकी औपचारिक घोषणा की। साथ ही विधानसभा उपचुनाव में अपने-अपने हिस्से आई सीटों का एलान भी किया। तीनों दल उपचुनाव के लिए अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा अलग-अलग करेंगे।
जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह, राजद के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामचंद्र पूर्वे और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने एक स्वर में कहा कि उनका साथ आना बिहार की जनता की जरूरत है। भाजपा ने आक्रामक चुनाव प्रचार करके दिल्ली की गद्दी हथिया ली, लेकिन भाजपा का असली चेहरा सामने गया है। अच्छे दिनों का वादा लगातार बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार बदल गया है। तीनों नेताओं ने कहा कि वे भाजपा का अकेले भी मुकाबला कर सकते हैं, लेकिन समान विचारधारा वाले दलों और वोटों के बिखराव को रोकने के लिए जदयू, राजद और कांग्रेस का साथ आना जरूरी है। बिहार से एक नए राजनीतिक अभियान की शुरूआत हो गई है।
राजद के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामचंद्र पूर्वे ने कहा कि हमें अपनी जीती हुई सीट तक छोडऩी पड़ी है। परबत्ता विधानसभा सीट पर वर्ष 2010 के चुनाव में राजद के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी। बहरहाल बड़े राजनीतिक लक्ष्य को हासिल करने के लिए कुछ त्याग तो करना ही पड़ता है। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह महागठबंधन को सही साबित करने के प्रयास में अचानक बोल पड़े- कल जो स्थिति थी, वह आज नहीं है। और, आज जो सामने है, वह कल नहीं रहेगा। इसबीच भाजपा के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन कि कहा कि तीनों का यह अनैतिक गठबंधन है। एक-दूसरे को कोसने वाले आज एकजुट हो गए हैं। यह साबित करता है कि भाजपा सबसे ताकतवर पार्टी है। हम सभी सीटें जीतेंगे। भाजपा के सामने अकेले उतरने में लालू और नीतीश के पसीने छूट रहे हैं।
उधर नई दिल्ली में भाजपा, लोजपा और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी नेताओं के बीच गुरुवार को फिर बैठक होगी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की अगुवाई में हुई बैठक में रालोसपा ने अपने दल के लिए एक सीट मांगी, जबकि लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान की ओर से कम से कम एक सीट की दावेदारी पहले ही की जा चुकी है। जानकार सूत्रों के मुताबिक उपेंद्र कुशवाहा ने लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन और भविष्य की राजनीति को देखते हुए सम्मानजनक हिस्सेदारी की मांग रखी।