राजनीतिक बाजार। यहां सब कुछ बिकता है- नीयत, निष्ठा से नियति तक। पाजामा, कुर्ता से कुर्सी तक। बेचने वाले तो पद, प्रतिष्ठा और टिकट तक बेच लेते हैं। रेलवे और जहाज के कूपन भी बिक जाते हैं। न बेचने वाले की कमी है, न खरीदने वाले की। इस बाजार में सवाल नहीं चलता है। इस बाजार में प्रक्रिया कोई नहीं पूछता है। सबको परिणाम का इंतजार रहता है। आज इसी ‘परिणाम’ का सामना हो गया बिहार विधान परिषद के परिसर में।
वीरेंद्र यादव
जदयू सरकार में न्यूनतम वरीयता के मंत्री पशुपति कुमार पारस को आज विधान परिषद की सदस्यता की शपथ दिलायी गयी। उन्हें हाल ही में मंत्रिमंडल की सलाह पर राज्यपाल ने अपने कोटे से विधान परिषद के लिए मनोनीत किया था। इसके बाद आज उन्हें शपथ दिलायी गयी। शपथ ग्रहण के बाद वे पोर्टिको में पत्रकारों को संबोधित करने आये। कई लोगों ने सवाल पूछा। हमने भी एक सवाल पूछ लिया- आप किस श्रेणी से एमएलसी बने हैं। यानी रंगकर्मी, समाजेसवी, साहित्यकार इत्यादि। इस सवाल पर उन्होंने कहा कि ‘कंट्रोवर्सी वाले सवाल क्यों पूछते हैं। ऐसे सवालों से हमारा क्या बिगड़ जायेगा।’ हमने सवाल बिगाड़ने के लिए, जानने के लिए पूछा था।
हम बात ‘अनैतिक’ सवाल की कर रहे थे। सवाल यह है कि कोई मंत्रिमंडल अपने ही सदस्य का नाम राज्यपाल के कोटे से नामित करने के लिए भेज सकता है? संविधान में राज्यपाल के मनोनयन कोटे के लिए मानदंड निर्धारित है। लेकिन राज्यपाल अपने मंत्रिमंडल के सदस्य को नामित कर सकता है या नहीं, इस संबंध में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। राज्यपाल के लिए मंत्रिमंडल का परामर्श ही एक मात्र शर्त है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी भी एमएलसी हैं। सरकार के कई मंत्री एमएलसी हैं। ललन सिंह भी मनोनीत कोटे सदस्य हैं। लेकिन पहले वे राज्यपाल द्वारा एमएलसी नामित किये थे, बाद में मंत्री बने थे। पशुपति कुमार पारस पहले मंत्री बनते हैं और जिस मंत्रिमंडल के सदस्य हैं, वही मंत्रिमंडल उनके नाम की सिफारिश राज्यपाल से करता है। इसी मुद्दे पर नैतिकता और अनैतिकता का सवाल उठता है। हालांकि श्री पारस ने ठीक ही कहा कि इन सवालों से हमारा क्या बिगड़ जाएगा।
सत्तर के दशक में सांसद बीपी मंडल बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। राजनीतिक जोड़तोड़ के बाद उन्होंने सीएम बनने का माहौल अपने पक्ष में बनाया। लेकिन विधानमंडल सदस्य नहीं थे। इसके लिए उन्होंने परबत्ता के तत्कालिक विधायक सतीश कुमार सिंह को मुख्यमंत्री बनावाया। सतीश कुमार सिंह ने बीपी मंडल को राज्यपाल कोटे से एमएलसी बनावाया। इसके बाद बीपी मंडल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी गयी। उस दिन भी बीपी मंडल मुख्यमंत्री बनकर एमएलसी बन सकते थे। लेकिन उन्हें यह अनैतिक लगा होगा सो वे पहले एमएलसी बने और फिर मुख्यमंत्री बने। वर्तमान भाजपा के समर्थन से चल रही जदयू सरकार को अपने ही मंत्रिमंडल के सदस्य को एमएलसी नामित करवाना अनैतिक नहीं लगा सो श्री पारस के नाम की सिफारिश कर दी। इसमें विवाद की गुंजाईश भी नहीं है। लोकतंत्र में सरकार सर्वोपरि है। सवाल तो आते-जाते रहते हैं, सरकार की तरह।