प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी, आजादी की लड़ाई के नायक और बिहार विधान सभा के पूर्व सदस्य मुनीश्वर प्रसाद सिंह राजनीतिक संत थे। उनका पूरा जीवन आजादी की लड़ाई, नैतिक मूल्यों की रक्षा और राजनीतिक मर्यादाओं के निर्वाह में गुजर गया। 29 नवंबर, 1921 में जन्मे मुनीश्वर बाबू ने अंतिम सांस 5 नवंबर, 2013 को ली। करीब 93 वर्ष की उम्र में वे अपने स्वजनों को छोड़कर स्वर्ग सिधार गए।
प्रीति सिंह
पुण्य तिथि (5 नवंबर ) पर श्रद्धांजलि
मुनीश्वर बाबू का जन्म वैशाली जिले के महनार थाना क्षेत्र के बासुदेवपुर चंदेल गांव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा हाजीपुर में हुई। वे पढ़ाई बीच में छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए थे। आजादी की लड़ाई में उनके खिलाफ 88 से ज्यादा मामले दर्ज हुए। ‘अंदामा कांड’ में फांसी की सजा सुनायी गयी। लेकिन अन्य मामलों की सुनवाई चलते रहने की वजह से फांसी की सजा पर अमल नहीं किया गया। 26 जून, 1946 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के आदेश पर वे जेल से रिहा किए गए।
सोशलिस्ट पार्टी में हुए शामिल
आजादी के बाद मुनीश्वर बाबू कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुए। बाद में वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में चले गए। आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, डॉ. लोहिया, नाथपाई, एन.जी.गोरे, एस.एम.जोशी, अशोक मेहता, मधु दंडवते, बसावन सिंह, रामानंद तिवारी, सुरेन्द्र मोहन, प्रेम भसीन, एस.एन. द्विवेदी, यमुना शास्त्री, जॉर्ज फर्नांडीस, चंद्रशेखर जी, कर्पूरी ठाकुर, रामबहादुर सिंह, युवराज सिंह और रामसुंदर दास के साथ मिलकर वे समाजवादी आंदोलन को मजबूती प्रदान करने में लगे रहे।
चार बार बने विधायक
1962, 1972, 1977 और 1990 में वे महनार विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए। विधानसभा की कई महत्वपूर्ण कमिटियों के सदस्य रहे। उन्होंने 1974 में जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर बिहार विधानसभा से त्यागपत्र दे दिया। ऐसा करने वाले वे पहले विधायक थे। 1979 में वे रामसुंदर दास सरकार में सिंचाई और ऊर्जा मंत्री भी बने। लेकिन सरकार राजनीतिक कारणों से जल्द ही गिर गयी। लेकिन जब तक वे मंत्री रहे, पूरी निष्ठा व ईमानदारी के साथ राज्य की सेवा करते रहे।
राजनीति के साथ सामाजिक सक्रियता के कारण बाद के दिनों में भी वे आम लोगों के बीच लोकप्रिय रहे थे। समाजवादी आंदोलन के मजबूत स्तंभ थे और आजीवन सामाजिक न्याय और समाजवादी विचारधारा के लिए संघर्ष करते रहे।