उच्चतम न्यायालय ने मोबाइल इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगाने के राज्यों के अधिकार को चुनौती देने वाली अपील खारिज करते हुए आज कहा कि कानून-व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए इस तरह का प्रतिबंध लगाना गलत नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति आर भानुमति की खंडपीठ ने इस संबंध में गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ गौरव सुरेशभाई व्यास की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई करने से साफ इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने दंड विधान संहिता की धारा 144 के तहत राज्य सरकारों को दिये गए ऐसे अधिकारों को चुनौती दी थी। न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकारें इन धाराओं में प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए इंटरनेट सहित कई सेवाएं रोक सकती हैं।
इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से वकील अपर गुप्ता ने दलील दी कि सीआरपीसी के तहत इस तरह का प्रतिबंध अनुचित है, क्योंकि ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए विशेष टेलीग्राफ कानून मौजूद है। उन्होंने कहा कि इस तरह का प्रतिबंध सीआरपीसी के तहत नहीं लगाया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि कानून और व्यवस्था बनाये रखने के लिए कभी-कभी ऐसा कदम उठाना जरूरी हो जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘ कानून व्यवस्था की खराब स्थिति से निपटने के लिए समवर्ती अधिकार होने जरूरी हैं।’’ शीर्ष अदालत ने मोबाइल इंटरनेट सेवा पर रोक के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश पर अपनी मुहर लगाते हुए याचिकाकर्ता की याचिका खारिज कर दी।