बिहार से राज्य सभा के लिए पांच सीटों पर होने वाले चुनाव को लेकर वीरचंद पटेल पथ में सरगर्मी बढ़ गयी है। सरगर्मी तो सर्कुलर रोड में भी है, लेकिन वहां की चुप्पी नेता और कार्यकर्ताओं को परेशान किए हुए हैं। जबकि वीरचंद पटेल स्थित तीनों प्रमुख पार्टियों भाजपा, राजद और जदयू के कार्यालयों में नामों को लेकर खूब चर्चा हो रही है। जहां चार लोग बैठ गए, वहीं राज्य सभा और विधान परिषद के उम्मीदवारों की दावेदारी शुरू हो जाती है।
वीरेंद्र यादव
राज्य सभा चुनाव में भाजपा कोटे से एक सांसद का चुना जाना तय है। भाजपा विधान मंडल दल के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के नाम पर लगभग सहमति बन गयी है। एकाध और नामों की भी चर्चा है, लेकिन उसे तवज्जो नहीं मिल रहा है। हालांकि नामों पर अंतिम मुहर भाजपा संसदीय दल की बैठक में लगेगी। सूत्रों की मानें तो सुशील मोदी राज्यसभा के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर आशान्वित हैं। वे भी अब बिहार की राजनीति से बाहर निकलकर केंद्र की राजनीति में सक्रिय होना चाहते हैं। अगले पांच वर्षों तक सत्ता की कोई संभावना बिहार में नहीं है। जबकि राज्यसभा में जाने के बाद सरकार और संगठन दोनों जगहों पर कई विकल्प मौजूद हैं। फिर उनके राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभवों का लाभ भी पार्टी को मिल सकता है।
2018 का चुनाव पड़ सकता है भारी
2018 का विधान परिषद चुनाव सुशील मोदी लिए भारी पड़ सकता है। तब उनके पास राज्यसभा में जाने का विकल्प भी नहीं होगा। विधान परिषद में उनका कार्यकाल अप्रैल 2018 में समाप्त हो रहा है। यह उनका दूसरा कार्यकाल है। भाजपा ने अब तक किसी को तीसरी बार विधान परिषद में संभवत: नहीं भेजा है। इसी आड़ में मोदी विरोधी उनकी तीसरी बार निर्वाचन का विरोध कर सकते हैं। 2018 में दो केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और धर्मेंद्र प्रधान का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। जबकि भाजपा कोटे से किसी एक व्यक्ति की ही राज्यसभा में वापसी संभव होगी। राज्यसभा में रविशंकर प्रसाद का यह तीसरा कार्यकाल है, जबकि धर्मेंद्र प्रसाद पहली बार चुने गए हैं। उस समय केंद्रीय नेतृत्व क्या करेगा, अभी से अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन इतना तय है कि 2018 में सुशील मोदी के लिए राज्यसभा के लिए कोई संभावना नहीं बनेगी।
राज्य सभा में चार सांसद हैं भाजपा के
अभी राज्य सभा में भाजपा के चार सांसद बिहार से हैं। रविशंकर प्रसाद और धर्मेंद्र प्रधान का कार्यकाल 2018 में और सीपी ठाकुर और आरके सिन्हा का कार्यकाल 2020 में समाप्त हो रहा है। चार में एक सांसद धर्मेंद्र प्रधान बाहरी (ओडीसा) हैं। इस कारण राज्यसभा चुनाव में किसी बाहरी व्यक्ति को बिहार से भेजने का जोखिम भाजपा नहीं उठाएगी। विधान सभा चुनाव में भी भाजपा ‘बाहरी नेता’ का खामियाजा भुगत चुकी है। इस परिस्थिति में सुशील मोदी के समक्ष कोई परेशानी नहीं आ रही है और वे निर्विवाद रूप से पार्टी की ओर से उम्मीदवार हो सकते हैं। लेकिन अंतिम फैसले के लिए इंतजार करना होगा।