एक कर्मी ने नौकरशाही डॉट इन को बताया है कि राष्ट्रीय सहारा के पत्रकारों को तीन महीने से वेतन के लाले पड़े हैं. गौरतलब है कि सहारा प्रमुख महीनों से जेल में बंद है.
उस कंपनी के कर्मचारियों को पिछले 100 दिनों से तनख्वाह नहीं मिली है। उस कंपनी के कर्मचारियों का सामान किराया नहीं चुकाने के कारण मकान मालिक सड़कों पर फेंक रहे हैं उनके घरों में आज खाने के लाले पड़ गये हैं। वहीं खास कर वैसे कर्मचारियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है जिनकी तनख्वाह मात्र पांच हजार रूप्य से 10000 रूप्ये है ऐसी सहारा के कर्मी और सहारा मीडिया हॉउस के लोगों का आधे से ज्यादा पैसे रेंट में चली जाती है और जो कुछ बचता है उससे अपनी परिवार का खर्च और बच्चे का स्कूल फी भी कम पड़ जाता है। उस कंपनी के कर्मचारियों के बच्चों को स्कूलों में फीस नहीं चुकाने के कारण शिक्षक दिन भर कक्षा के बाहर खड़ा करके रखते हैं। इसके कारण कई लोग सहारा छोड़ भी चुके है। साथ ही पिछले कई सालों से मीडिया हॉउस के लोगों के तनख्वाह मंे कोई भी इंक्रीमेंट भी नहीं हुआ है।
नीलामी का दंश
सहारा इंडिया परिवार के अध्यक्ष सुब्रत रॉय भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए उनकी और उनकी कंपनियों की संपत्तियों की नीलामी की प्रक्रिया में लगा हुआ है.
इसलिए सेबी मुख्यालय के बाहर इस दौरान काफी अफरा-तफरी मची हुई है. पिछले दिनों सहारा समूह की दो कंपनियों सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एसएचआईसीएल) और सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एसआईआरईसीएल) के निवेशकों के करीब 24,000 करोड़ रुपये वापस करने के मामले में उनके व्यक्तिगत और कंपनी की संपत्तियों की सेबी द्वारा नीलामी कराए जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है.
क्या है पूरा मामला? निवेशकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनी नियामक संस्था सेबी का आरोप है कि एसआईआरईसीएल और एसएचसीआईएल ने बांड धारकों से 6,380 करोड़ रुपये और 19,400 करोड़ रुपये जुटाए थे. धन जुटाने के लिए कई तरह की अनियमितताएं की गई थीं. फरवरी महीने में सेबी ने सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय और उनकी इन दोनों कंपनियों के बैंक खातों पर रोक लगाने के लिए कुर्की के आदेश दिए थे.
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल अगस्त में इन कंपनियों को निवेशकों का पैसा 15 प्रतिशत ब्याज सहित लौटाने का आदेश दिया था और सेबी से इस पर निगरानी रखने के लिए कहा गया था. सहारा समूह की अर्जी पर दिसंबर 2012 में ये पैसा तीन किस्तों में लौटाने की छूट दी गई. कोर्ट ने उस समय आदेश दिया था कि सहारा समूह 5,120 करोड़ रुपये तत्काल जमा करे और 10,000 करोड़ रुपये जनवरी के पहले हफ्ते में जमा करे जबकि बाकी राशि फरवरी 2013 के पहले सप्ताह में दे लेकिन कंपनी ने बाकी की किस्तें नहीं जमा कराईं इसलिए सेबी को कोर्ट के आदेशानुसार कुर्की करने के आदेश दिए थे.
सुब्रत रॉय का क्या कहना है?
बाजार नियामक सेबी के साथ चर्चित विवाद में उलझे सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय का मानना है कि उन्हें पिछले कुछ वर्ष से उत्पीड़ित किया जा रहा है और इसकी शुरुआत 2005 में राजनीतिक द्वेष की घटना के साथ हुई तथा रिजर्व बैंक और सेबी उनकी कंपनियों के खिलाफ शिंकजा कसने लगे. उनका कहना है कि ”जिन लोगों ने 2005 में सहारा को कुचलने की कोशिश की थी, वे लोग फिर लौट आए हैं. रॉय का कहना है कि सेबी की इस कार्यवाही से कंपनियों के कारोबार पर असर पड़ रहा है.” वहीं सहारा और सेबी के विवाद को लेकर सहाराकर्मी पिस रहे हैं। जिस कंपनी की कुल परिसंपत्ति 1.75 लाख करोड़ रुपए है उसके मालिक महज 10 हजार करोड़ रुपए (कुल परिसंपत्ति का करीब 6 फीसद) के लिए पिछले करीब एक साल से जेल में बंद हैं।