राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए चुनाव सुधारों पर जोर देते हुए कहा है कि इन सुधारों से ही देश की जनता को न्याय मिल पाएगा और संवैधानिक मूल्यों और उसके आदर्शों की रक्षा हो सकेगी। श्री मुखर्जी ने भारतीय अधिवक्ता महासंघ द्वारा नई दिलली में ‘चुनाव के संबंध में आर्थिक सुधार’ विषय पर आयोजित सेमिनार में यह बात कही।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में गठबंधन की सरकारों के रहने से अस्थिरता का माहौल रहा और इस वजह से देश में बार-बार चुनाव होते रहे क्योंकि ढीले-ढाले गठबंधनों पर आधारित सरकारें अधिक दिनों तक टिकती नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि चुनावी प्रक्रिया का गंभीरता से विश्लेषण किया जाए ताकि इस प्रणाली की खामियों को दूर किया जा सके। उन्होंने लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए मतदाताओं को भी जिम्मेदार बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि संसद केवल बहस मुबाहिसा करने की संस्था नहीं है बल्कि वह निर्णय लेने वाली इकाई भी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि पहले 1976 में किये गये संविधान के 40 वें संशोधन के मुताबिक 1971 की जनगणना को लोकसभा सीटों का आधार बनाया गया था और बाद में 2001 में 84 वां संशोधन कर 2026 तक इसी जनगणना को इन सीटों का आधार बनाया गया लेकिन इस बीच कई दशकों में देश की आबादी काफी बढ़ गई और अब अस्सी करोड़ मतदाता हो गये हैं। इसीलिए एक बार फिर संसद के निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को लेकर कानूनों पर पुनर्विचार करने की जरूरत पड़ गयी है। उन्होंने कहा कि अगर ब्रिटेन जैसे छोटे देश में 600 से अधिक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हो सकते तो भारत में संसद की अधिक सीटें क्यों नहीं हो सकती।