निर्णायक मौकों पर राहुल के गायब हो जाने की आदत अब कांग्रेस पर भारी पड़ने लगी है क्या राहुल, नेहरू, इंदिरा, राजीव और सोनिया के बाद अब कांग्रेस को अपनी रहनुमाई में लेने के लिए प्रेशर टैक्टिस का गेम खेल रहे हैं?
तबस्सुम फातिमा
लोकसभा 2014 वेफ चुनाव में हार के बाद उंगलियां राहुल की ओर उठीं। राहुल की मुश्किल थी कि वह आरोपों वेफ घेरे में थे। अब जरा ठहर कर राहुल गांधी के छुट्टी पर जाने वाले विवाद के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हैं।
यह कहा जाता रहा है कि जब भी राहुल की आवश्यकता होती है, राहुल गायब हो जाते हैं। 2014 कांग्रेस के स्थापना दिवस के अवसर पर भी वह गायब थे। मनमोहन के बिदाई समारोह में भी नजर नहीं आये। निर्भया रेप मामले को लेकर जब दिल्ली सुलग रही थी और युवराज राहुल को याद किया जा रहा था, तब राहुल के लिए अन्ना हजारे के मंच पर आकर हीरो बन जाना आसान था लेकिन वह गायब ही रहे। और अब जब भूमि अध्ग्रिहण संशोधन बिल को लेकर कोहराम मचा है तो राहुल छुट्टियां मनाने चले गए।
राहुल के छुट्टियां मनाने की कहानी इतनी आसान नहीं है, जितनी समझी जा रही है। सबसे पहले तो यह समझिए कि यह भूमि अधिग्रहण बिल वही है, जिसे 2013 में राहुल गांधी ही लेकर आए थे। आज मोदी ने बैठे बिठाए विपक्ष और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी दलों को विवाद से भरा एक मुद्दा दे दिया तो इसका सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस उठा सकती थी। विशेष रूप से राहुल गांधी इस मौके पर कांग्रेस की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस ला सकते थे और भारत की 120 करोड़ जनता तक यह संदेश पहुंचा सकते थे कि 130 साल पुरानी कांग्रेस अभी भी जनता और गरीबों वेफ पक्ष में खड़ी है.
चूके हुए कांग्रेसियों की कठपुतली
यह कहा गया कि राहुल मंथन करने के लिए गए हैं। जब कांग्रेस को सबसे ज़्यादा राहुल की जरूरत थी, राहुल ने हाथ झटक कर, गायब होकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब वह कमजोर कांग्रेसियों के हाथ की कठपुतली नहीं बन सकते। राहुल जिन कांग्रेसी बुजुर्ग नेताओं से घिरे हैं, वहां अपनी शक्ति का इस्तेमाल करना उनके लिए मुश्किल है। सोनिया भी इन बुजुर्ग नेताओं की शक्ति से परिचित हैं। कांग्रेस के ये बुजुर्ग चेहरे कांग्रेस के पुराने नियमों के साथ ही चल रहे हैं। जबकि 2000 के बाद पूरी दुनिया बदल चुकी थी।
जरा 27 दिसंबर 2013 का वह दिन याद करें, जब कांग्रेस के दागी नेताओं को बचाने वाले आर्डेनेंस पर राहुल गांधी ने अपनी ही सरकार के खिलाफ ऐसा बिगुल बजा दिया कि मनमोहन सिंह भी हैरान रह गए। मैं समझती हूं कि कांग्रेसी राहुल को लेकर दोहरा रवैया अपना रहे थे। एक तरफ दबी ज़ुबान में प्रियंका को लाने की बात हो रही थी तो दूसरी तरफ राहुल गांधी से बुजुर्ग कांग्रेसी नेताओं को खतरा महसूस होने लगा है।
कांग्रेस इन दिनों दो भागों में विभाजित है। राहुल की मुश्किल यह है कि असफलताओं का ठीकरा उनके सिर फोड़ा जाता है जबकि उन्हें मां और पुराने कांग्रेसियों की उपस्थिति में कोई भी फैसला लेने की आजादी नहीं। और इसलिए राहुल सभी ‘चूके’ हुए राजनेताओं, का खेल मोदी की तरह समाप्त करते हुए, बागडोर अपने हिस्से में लेकर वे नए लोगों को मौका देना चाहते हैं। और यह सोनिया के लिए भी आसान नहीं है।
कांग्रेस में कलह
दिल्ली के राम लीला ग्राउंड में अन्ना हजारे और वेजरीवाल के भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल पर जंतरमंतर के दरने में राहुल की मौजूदगी होती तो राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में कांग्रेस मोदी सरकार को एक बड़ी चुनौती दे सकती थी। याद कीजिए कि विधनसभा चुनाव में राहुल के शो में हजारों लाखों की भीड़ उमड़ आई थी। यह भीड़ इस बात की गवाह है कि अभी राहुल गांध को लेकर सभी उम्मीदों का खून नहीं हुआ है। और शायद इस महत्वपूर्ण अवसर पर भगोड़े की राह अपनाते हुए राहुल ने सोनिया गांधी और सभी कांग्रेसियों को अपनी मज़बूती का संदेश देने की कोशिश की है कि उनपर भरोसा करना है तो उनकी इच्छा पर चलना होगा। उन्हें पावर देना होगा।
राहुल का एक वह चेहरा भी था जब दिल्ली चुनाव में हार के बाद अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी केजरीवाल के लिए यह बयान देना कि हमें कजरीवाल से सीखने की जरूरत है। विचार करें तो यहां नेहरू, इंदिरा और राजीव की विरासत के सभी सार मौजूद हैं। उनमें यह गुण और दम है कि वह कांग्रेस के बिखराव को खत्म करके एक नई कांग्रेस की नींव डाल सकते हैं। अब कांग्रेस की गलतियों, भष्टाचार, अहंकार और तानाशाह व्यवहार के लिए माफी मांग कर एक नई पारी शुरू करने का समय है।
यह कहना गलत है कि कांग्रेस भूमिगत हो चुकी है। कांग्रेस जैसी सबसे पुरानी पार्टी की मौजूदगी इसलिए भी ज़रूरी है कि भाजपा के अल्पसंख्यक विरोध और सांप्रदायिकता की रोकथाम के लिए एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है। आम आदमी पार्टी को अभी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में देर लगेगी, लेकिन कांग्रेस की मजबूती भाजपा के किले में सेंध लगाने का काम कर सकती है। और यह बात मोदी अच्छी तरह जानते हैं और इसलिए वे बार बार कांग्रेस के भूमिगत होने या मृत होने की कहानी दोहराते रहते हैं।
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