नीतीश कुमार दो जातियों भूमिहार और कुर्मी पर सर्वाधिक भरोसा करते हैं। भरोसे के लिए सभी जिम्मेवारी इन्हीं दो जातियों को सौंपते हैं। विधान सभा और विधान परिषद दोनों ही सदनों में जदयू के मुख्य सचेतक कुर्मी हैं। विधान सभा में विधायकों के ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ में स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। विधायकों की संख्या और निष्ठा के गणित में स्पीकर का निर्णय तत्कालिक रूप से सर्वमान्य होता है। पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी की ‘नीतीश निष्ठा’ को बिहार देख चुका है। इसलिए स्पीकर के पद पर भूमिहार को बैठाया गया, ताकि लोकतंत्र का गणित संख्या के हिसाब से नीतीश के पक्ष रहे। मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार के निजी और सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों में कुर्मी और भूमिहार का दबदबा रहा है।
वीरेंद्र यादव
2008 में जब नीतीश कुमार को लालू यादव के खिलाफ अभियान चलाना था तो ललन सिंह के नेतृत्व में लालू विरोधियों को आगे किया और लालू यादव के विरोध में व्यापक पैमाने पर अभियान चलावाया। 2015 में जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री पद से अपदस्थ करना था तो एमएलसी नीरज कुमार के नेतृत्व अभियानियों की टीम सक्रिय हुई और जीतनराम मांझी को इस्तीफा दिलवाया कर ही दम लिया। शरद यादव को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटवाने का जिम्मा भी यूपी के भूमिहार केसी त्यागी को सौंपा गया था। केसी त्यागी ने शरद यादव को नैतिकता और पार्टी संविधान का इतना पाठ पढ़ाया कि शरद यादव ने अध्यक्ष पद ‘छोड़’ कर भागने में ही भलाई समझा।
अब उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को नसीहत देने का ‘ठेका’ एमएसली नीरज कुमार को सौंप दिया गया है। 11 जुलाई को जदयू की बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस करने को जिम्मा नीरज कुमार को ही मिला था। उसके बाद से वह लगातार नीतीश कुमार के यूएसपी, सुशासन और छवि का राग अलाप रहे हैं। अब नीतीश की ‘गरीबी’ का ब्योरा भी सार्वजनिक कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने अपनी पारिवारिक गरीबी की व्याख्या करने के लिए भी भरोसे के लायक एक भूमिहार को ही माना। यह भी संयोग है कि लालू के खिलाफ लड़ रही भाजपा भी सबसे अधिक भूमिहारों पर भरोसा करती है और उसे ही अपना कैडर वोट मानती है।