खैर मनाइये, गया के चिकित्सक डा. पंकज गुप्ता-पत्नी शुभ्रा गुप्ता सकुशल घर पहुंच गए । गैंगस्टर अजय सिंह भी हत्थे चढ़ गया । आज कुछ और पर्दा उठाते हैं । जानता कल ही था, लेकिन पुलिस के अनुसंधान को डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था । अपहरण के मामले में पुलिस को भी जानकारियां कई बार उलझानी होती है । इस उलझन ने कुछ भ्रम भी पैदा किए । पालिटिकल सवाल भी उठने लगे ।
ज्ञानेश्वर, वरिष्ठ पत्रकार
कानाफूसी की रिपोर्टिंग करने वाले साथियों ने फिरौती के दावे कर दिए । ऐसे दावे करने वाले अजय सिंह गिरोह की माडेस अप्रेंडी से बिलकुल अनभिज्ञ थे । हकीकत की जांच के बाद मेरा निष्कर्ष है कि इस अपहरण कांड में कोई फिरौती नहीं वसूली जा सकी । इसके लिए आपको बिहार में कांड की मानीटरिंग कर रहे आईपीएस कुंदन कृष्णन को सलाम करना होगा । बहुत कम समय में कृष्णन ने गया -रफीगंज- सासाराम- पटना- जमुई में गैंगस्टर अजय सिंह से जुड़े करीब बीस लोगों को रडार पर लिया । पत्नी-साला से लेकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा अजय सिंह का बेटा घेरे में आया ।
सही है कि बिहार पुलिस लखनऊ में दो दिनों से कैंप कर रही थी । वहां यूपी पुलिस के आईजी (एसटीएफ) सुजीत पांडेय मानीटरिंग कर रहे थे । सभी लीड्स गोमतीनगर में जाकर ठहरते थे । गोमतीनगर की खबर पहले से भी थी । यह ऐसे कि पूर्व में इस गिरोह के द्वारा अपह्त ठेकेदार रविरंजन सिंह के परिजनों ने फिरौती का भुगतान लखनऊ के गोमतीनगर में ही किया था । यूपी एसटीएफ की पड़ताल ने बाद में शारदा अपार्टमेंट की पहचान की । इस अपार्टमेंट में हजारों लोग रहते हैं । फिर भी फ्लैट को लेकर कंफ्यूजन था । गन बैटल यहां मुश्किल था ।
मंगलवार पांच मई की रात बहुत अहम् थी । अपहरण मामले में अपह्त की सकुशल रिहाई पुलिस की सर्वोच्च प्राथमिकता होती है । लखनऊ के शारदा अपार्टमेंट में घुसकर यूपी एसटीएफ तुरंत बड़ा सर्च आपरेशन कर सकती थी, लेकिन कई तरीके का संकोच भी था । इधर अपने स्टाइल में काम करने में महारत हासिल किए कुंदन कृष्णन पटना में दबाव का मीटर जान निश्चिंत थे कि अपहर्ताओं को चिकित्सक दंपति को आज रात छोड़ना ही होगा । यह स्पष्ट नहीं था कि कहां छोड़ेंगे । निश्चिंतता इस बात की भी पूर्ण नहीं थी कि गोमतीनगर के शारदा अपार्टमेंट में अपहर्ताओं के साथ अपह्त चिकित्सक दंपती भी हैं । ऐसे में, अपार्टमेंट के भीतर घुसकर तुरंत कार्रवाई कर देना भी मुनासिब नहीं था ।
कुंदन कृष्णन की बड़ी भूमिका
यह तो कुंदन कृष्णन ने ही यूपी एसटीएफ को बुधवार छह मई को सुबह कंफर्म किया कि डाक्टर दंपती छोड़ दिए गए हैं । पर कहां छोड़ा, यह नहीं बताया गया, क्योंकि छोड़े जाने के बाद डाक्टर का फोन नहीं आया था । ऐसे में, जब तक डाक्टर दंपती घर गया नहीं पहुंचते, सौ फीसदी मुमकिन करना संभव नहीं था । सो, आपरेशनल टीम शारदा अपार्टमेंट से दूर ही रही । दंपती के घर पहुंचने का इंतजार किया जाता रहा । दूसरी ओर अजय सिंह गिरोह को अभी इस बात का अंदेशा नहीं था कि पुलिस टीम लखनऊ पहुंच चुकी है । वह अपह्त को रिहा कर और तनावमुक्त हो गया था । अब सच जान लें कि डाक्टर दंपती को न पुलिस के दावे के मुताबिक लखनऊ में छोड़ा गया और न ही डेहरी में, जैसा कि घर आने के बाद डा. पंकज गुप्ता ने मीडिया को बताया था । अपहर्ताओं ने उन्हें इलाहाबाद जाकर छोड़ा था, जहां से वे पुरुषोत्त्म/पूर्वा एक्सप्रेस से गया आये । गया आने के बाद ही दंपती की रिहाई की खबर कुंदन कृष्णन के माध्यम से यूपी एसटीएफ के आई जी सुजीत पांडेय को कंफर्म की गई ।
शारदा अपार्टमेंट में कार्रवाई
इस कंफर्मेशन के बाद यूपी एसटीएफ ने बिहार पुलिस की टीम के साथ शारदा अपार्टमेंट में कार्रवाई की । आडी नीचे गैराज में देख आंखें खिली । फ्लैट नंबर सूचना मुताबिक कंफर्म हो गया । फिर सीधा धावा । आपरेशन में गैंगस्टर अजय सिंह साथियों समेत पकड़ा गया । अपहरण में इस्तेमाल सामानों की जब्ती हुई । अब गैंगस्टर अजय सिंह के माडेस अप्रेंडी को समझिए । वह सधा हुआ अपहर्ता है । कोई हड़बड़ी नहीं करता । अपहरण बाद सीधा दुम साध लेता है । बीस-पचीस दिनों तक कोई हलचल नहीं करता । जब पुलिस हार गई होती है और परिजन निराश हो जाते हैं,तो वह एक्टिव होता है । गिरोह में सभी सदस्यों का काम बंटा होता है । संपर्क कई माध्यमों से साधा जाता है और अलग-अलग शहरों से । रिकार्ड है कि इस गिरोह ने कई बार चलती ट्रेनों से उछाल नान स्टापेज वाले स्टेशनों पर पैसों का बैग प्राप्त किया । ठेकेदार रविरंजन सिंह अपहरण मामले में सौदा जल्दी और सस्ते में इसलिए पट गया था, क्योंकि राजनीतिक दबाव बहुत था । अजय सिंह की राजनीतिक पहुंच कम नहीं है । पहले बता चुके हैं कि वह चंद्रशेखर की पार्टी से चुनाव लड़ चुका है । छह फरवरी, 2003 को जब उसने जयपुर में हीरा कारोबारी की पत्नी सुमेधा दुर्लभजी का अपहरण किया था, तब उसके साथ आज के केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल मंत्री का करीबी रिश्तेदार भी था । धनंजय सिंह को भी तब अपराध में शामिल पाया गया था, जिसके पिता कभी जनता दल के विधायक थे । धनंजय खुद रिलायंस से जुड़ा था और गिरोह के काल्स की देख-रेख करता था । आज भी उसने लखनऊ में स्वयं को कांग्रेस के हाल ही में दिवंगत हुए नेता के परिवार के करीब बताया, जिनकी बहू पटना में नामी ब्यूटी पार्लर चलाती हैं । ऐसे में,यह नहीं माना जाना चाहिए कि अजय सिंह जैसा शातिर चार-पांच दिनों में बड़े आसामी से सौदा कर लेता ।
बाद में जागती है बिहार पुलिस
अब बिहार पुलिस की बात करते हैं । मैंने पहले ही कहा कि बगैर थप्पड़ खाए बिहार पुलिस नहीं जगती । यह थप्पड़ भी अपराधी की ऐसी होनी चाहिए कि सरकार की चूल हिले और मीडिया हल्ला बोले । जयपुर जेल में सुमेधा दुर्लभजी अपहरण मामले में अजय सिंह आजीवन कैद की सजा काट रहा था । वह 22 अक्टूबर, 2011 को एक महीने के पेरोल पर आया । मतलब 22 नवंबर, 2011 को वापसी हो जानी चाहिए थी । लेकिन वापस जेल नहीं गया । 23 नवंबर को जयपुर जेल प्रशासन ने शाहपुरा थाने में रिपोर्ट लिखाई । तलाश में जयपुर पुलिस पटना भी आई । किंतु कुछ पता नहीं चला । मेरा मानना है कि बिहार पुलिस को तभी जगना चाहिए था । अजय सिंह पेरोल तोड़ जेल से गीता पाठ के लिए बाहर नहीं आया था । बिहार में यहां- वहां देखा भी जा रहा था । दरअसल, वह अपने गिरोह को फिर से जिंदा करने में लगा था । लेकिन बिहार पुलिस सो रही थी । फायदा अजय सिंह ने उठाया ।
अजय सिंह ने दो महीने में अपने गिरोह को नये तरीके से जिंदा कर लिया । जनवरी, 12 में उसने गया फोरलेन पर ही इंडस्ट्रलियस्ट अनिल अग्रवाल को बनारस से आसनसोल जाते वक्त अपहरण कर सनसनी फैला दी । बिहार पुलिस ने कहा-अपहरण मेरे यहां नहीं हुआ, झारखंड पुलिस ने कहा- अपहरण मेरे इलाके में नहीं हुआ । बड़़ी मुश्किल वाराणसी में रिपोर्ट दर्ज हुई । उधर अपहरण बाद अजय सिंह गिरोह सो गया । पुलिस हार गई, परिजन अपशकुन मानने लगे, तब संपर्क किया । महीने भर बाद जब अनिल अग्रवाल घर वापस आये, तो पुलिस ने अपनी पीठ थपथपा ली । लेकिन सभी जान रहे थे कि पांच करोड़ में छूटे हैं । कल शाम मुझे यूपी एसटीएफ ने अजय सिंह से पूछताछ कर साढ़े पांच करोड़ की डील अनिल अग्रवाल मामले में कंफर्म की । इसके बाद भी यह गिरोह दूसरे प्रदेशों में अपहरण करता रहा । डाक्टर दंपती के पहले का मामला कांट्रेक्टर रविरंजन सिंह का गया फोरलेन पर हुआ अपहरण था । इस मामले में भी रिहाई और गिरोह का सच जान बिहार पुलिस सोती रही । नहीं सोती,तो डाक्टर दंपती अगवा नहीं होते । बिहार पुलिस की नाकामी सूरत के सोहेल हिंगोरा मामले में भी स्पष्ट है । मैंने ही बिहार में नौ करोड़ की फिरौती वसूली मामले का खुलासा किया था । बड़ा हंगामा हुआ । गैंगस्टर की पहचान चंदन सोनार के रुप में हुई । लेकिन आज भी चंदन सोनार पुलिस की गिरफ्त से दूर है ।
(फेसबुक पेज से साभार )