ये वही थे जिन्होंने गुजरात के 92 प्रतिश हिंदू भाइयों के दिलों में, 6 प्रतिशत मुसलमानों का खौफ बिठाने की कोशिश की थी. और अब ये वही हैं जो अमनपसंद हिंदुओं के दिलों में यह जहर घोल रहे हैं कि मुसलमान “लव जिहाद” के जरिए हिंदुओं की बहू-बेटियों की इज्जत लूटने पर तुले हैं.
इर्शादुल हक
यह “लव जिहाद” संघी साजिश की घृणित शब्दावली है. जो हिंदू भाइयों के दिलों में मुसलमानों के खिलाफ घृणा, द्वेष और हिंसा की हद तक उकसाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
अशोक सिंघल और उमा भारती जैसे लोगों की परिभाषा के अनुसार “लव जिहाद का मतलब है कि मुसलमान हिंदुओ की बहन बेटियों को अपने प्यारा के माया जाल में फंसाते हैं. उनसे शादी रचाते हैं इससे हिंदुओं की मर्यादा पर चोट पहुंचती है”.
उमा और सिंघल टाइप लोगों की यह नापाक सोंच कुछ लोगों को उद्वेलित कर सकती है, कर चुकी है.
इसे अगर उलट कर देखें और कहें कि अकबरुद्दीन ओवैसी और असदुद्दीन ओवैसी जैसे साम्प्रदायिक मानसिकता के लोग मुसलमान युवा से कहें कि हिंदू लोग हमारी बहनों को अपने प्यार जाल में फंसा कर उनसे शादी करने की साजिश करते हैं, तो कुछ मुस्लिम भी उनकी गुमराही का शिकार बन ही जायेंगे.
पर सवाल यह है कि अपनी राजनीति की रोटी पर सिंघली कुनबे के लोग बहुसंख्यक हिंदुओं के दिलों में अपमान की भावना भरते हैं. जिस कम्युनिटी का लीडर अपने समाज के लोगों में अपमान की भावना भरके किसी दूसरे मजहब के लोगों से नफरत करने की सीख देते हैं, वे खुद अपने समाज के सबसे बड़े दुश्मन हैं.
क्या कोई मुसलमान अपने नवजवानों को इस बात के लिए प्रेरित करेगा कि वह हिंदू लड़कियों को अपने प्यार जाल में फंसाये? हिंदुओं के स्वाभिमान और मर्यादा को ललकारे? कत्तई नहीं. पर इस तरह की अफवाहों को जब कोई नेता उड़ायेगा तो ज्यादा तर लोग इस अफवाह को सच मान लेंगे.
जैसा कि इस बार के दंगो में कुछ बहुसंख्यक वर्ग के बुद्धिजीवियों को भी मैने देखा, वो भी इस अफवाह का हिस्सा बन गये.
यह एक आसान साम्प्रदायिक फार्मूला है कि आप लोगों में स्वाभिमान की भावना भरने के बजाये उनमें अपमान की भावना भर के उन्हें एक समुदाय विशेष के प्रति गोलबंद करने में सफल हो सकते हैं.
प्रेम और भाईचारे से किसी समुदाय के अंदर एकता लाना बहुत कठिन है. इसलिए दूसरे समुदाय के प्रति नफरत की भावना भर के, एक समुदाय के लोगों में एकता की घृणित कोशिश की जाती है. संघ का वजूद इसी “घृणा आधारित एकता” पर कायम है. वह दिन संघ के लिए सुसाइडल होगा जिस दिन वह प्रेम और भाईचारे के नाम पर एकता की कोशिश शुरू करेगा.
दो-तीन प्रतिशत लोगों को मेरी यह टिप्पणी बड़ी नागवार लग सकती है. पर मुझे इस बात की कोई चिंता इसलिए नहीं है कि 97 प्रतिशत लोग हमारी बातों से सहमत हैं.
मैं एक बात और जोर देकर कहना चाहता हूं कि दंगाई और साम्प्रदायिक मानसिकता का शिकार मुसलमानों का भी एक तबका है. जो सैयद शहाबुद्दीनों, इमाम बोखारियों और ओवैसियों को अपना मसीहा मानता है. जो हिंदुओं के खिलाफ घृणा आधारित एकता पर बल देता है. पर मैं एक आम हिंदू और एक आम मुसलमान से अपील करता हूं कि आप सैयद शहाबुद्दीनों, बोखारियों, औवैसियों और तोगड़ियों, सिंघलों, उमा भारितियों की अफवाहों का कब तक शिकार बनेगें. इनके बहकावे में इंसानी लाशों की गिनती हिंदू और मुसलमान के नाम पर कब तक करते रहेंगे.
हम कब चेतेंगे.
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लेखक नौकरशाही डॉट इन के सम्पादक हैं
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