लोकसभा चुनाव में राजद व जदयू की जबरदस्त हार ने बिहार का सियासी समीकरण ध्वस्त कर दिया। लालू यादव व नीतीश कुमार पर हार का ऐसा चाबुक चला कि दोनों की 20 वर्षों की दुश्मनी और 20 भी दिन नहीं चल सकी। दोनों एकजुटता की राह तलाशने लगे। मांझी सरकार के विश्वास प्रस्ताव और राज्यसभा चुनाव में सारे गिले शिकवे दूर हो गए। लालू यादव के घर इफ्तार पार्टी में नेताओं की उपस्थिति देखकर ऐसा लगा, जैसे दोनों पार्टियों का विलय हो गया हो।
वीरेंद्र यादव
शुक्रवार को लालू यादव के आवास पर गहमागहमी थी। गाडि़यों का रेला उमड़ पड़ा था। आदमी की गिनती नहीं। लालू यादव हाथ में माइक लेकर भीड़ को व्यवस्थित बनाए रखने में व्यस्त थे। गेट के अंदर प्रवेश किया तो पत्रकार से नेता बने प्रगति मेहता से मुलाकात हुर्इ। अभी वे राजद में अतिपिछड़ा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं। अतिथियों के स्वागत में जुटे थे। उसने से आगे बढ़ा तो फोटोग्राफरों से घिरे लालू यादव तैयारी की मुआयना कर रहे थे। इस बीच किसी ने उनको प्रणाम करने के लिए पैर छू दिया। वह नाराज हो गए और कहा- अरे इसे बाहर करो, कौन आ गया। मीडियावाले बाइट के लिए बिलबिला रहे थे। लेकिन लालू यादव अपने ही अंदाज में थे। हद तो यह हो गयी कि पत्रकारों की अफरातफरी से वह गिरते-गिरते बचे। काफी मशक्कत के बाद उन्होंने अपनी बात कहने के लिए मौका निकाल पाए। उन्हें रमजान को लेकर अपनी बातें कहीं। इस बीच किसी ने गठबंधन के बारे में पूछ दिया। इस पर उन्होंने कहा- हम अजुल-फजूल सवालों का जवाब नहीं देता है।
लालू यादव के आवास का राजनीतिक नजारा एकदम बदला-बदला लग रहा था। राजद के कार्यकर्ता व नेता प्रवासी लग रहे थे, जबकि जदयू वालों के चेहरे पर हरियाली दिख रही थी। पिछले पांच सालों से सत्ता से दूर रहने के कारण लालू यादव का आकर्षण भले कम नहीं हुआ हो, भीड़ जुटाने की क्षमता भले कम नहीं हुई हो, लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता और नेता विलुप्त से हो गए हैं। यह संकट आज भी दिखा। उस भीड़ में राजद नेता के रूप में प्रभुनाथ सिहं व जयप्रकाश यादव ही नजर आ रहे थे। हो सकता है कि कुछ राजद नेता रहे हों, पर उनका पब्लिक फेस तो बिल्कुल नहीं रहा होगा। बड़ी मुश्किल से प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे पर नजर पड़ी।
इसके विपरीत जदयू नेताओं की भरमार थी। विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी के साथ संसदीय कार्यमंत्री श्रवण कुमार और श्याम रजक पहलकदमी करते नजर आए। आगे बढ़ा तो मंत्री पीके शाही और अवधेश कुशवाहा भी कतार में मौजूद थे। जदयू के दो दर्जन से अधिक विधायक और विधान पार्षद मौजूद थे। कई राजनीतिक पदों पर विराजमान लोग भी पार्टी की शोभा बढ़ा रहे थे। एकबारगी ऐसा लग रहा था, जैसे हम जदयू के किसी पार्टी में शरीक हो रहे हों। आखिर हमने मंत्री श्याम रजक से पूछ लिया- कितने वर्षों बाद इस आवास में आज आए हैं। उन्होंने कहा- हम साल गिन रहे हैं।
हार का चाबुक की ऐसी मार की उम्मीद न लालू यादव को थी, न नीतीश कुमार को। लेकिन इस हार ने उनके अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया। उनको अपनी पहचान बनाए रखने के लिए सत्ता की संजीवनी आवश्यक हो गयी थी। अपनी राजनीतिक साख बनाए और बचाए रखने के लिए दोनों ने एक होने की औपचारिक घोषणा की और विधान सभा उपचुनाव में साथ लड़ने का ऐलान भी किया। आज की इफ्तार पार्टी में सत्ता की संजीवनी के लहलहाने की संभावना बढ़ी दिख रही थी। अब सवाल यह है कि सत्ता की संजीवनी लोकसभा चुनाव में हासिए पर पहुंचे राजद-जदयू को आगे की राजनीति के लिए जीवनदान दे पाएगा।