लालू प्रसाद अपने बच्चों को राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं, ऐसे में वह जहां यादववाद को उछाल रहे हैं वहीं इस जाति के अन्य नेता को उभरने न देने की भी कोशिश में लगे हैं.
लालू प्रसाद ने स्वाभिमान रैली में सुशील मोदी को छात्र संघ की राजनीति के दौरान अपना सेक्रेटरी बताया और कहा कि वह वित्त मंत्री के रूप में नीतीश कुमार के स्टेपनी थे.
प्रणय प्रियंवद (स्टेट ब्यूरो हेड, आई नेक्स्ट , पटना)
सवाल ये है कि कि क्या वित्त मंत्री, मुख्यमंत्री का स्टेपनी होता है। आप हम या नीतीश कुमार ये माने या ना मानें पर लालू प्रसाद की राजनीतिक दृष्टि तो यही कहती है कि वित्त मंत्री, मुख्यमंत्री का स्टेपनी होता है। सच ये है कि लालू प्रसाद ने इस बहाने वर्तमान वित्त मंत्री विजेन्द्र प्रसाद यादव को निशाने पर लिया। लालू संकेतों में बात करने में महारत रखते हैं। विजेन्द्र प्रसाद यादव कभी लालू प्रसाद के मंत्रिमंडल में हुआ करते थे। अभी नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री हैं। विजेन्द्र यादव की पहचान एक सोबर और नीतीश कुमार के यस मैन मंत्री के रूप में रही है। वे पढ़े लिखे और समझदार भी समझे जाते हैं। सच ये भी लालू प्रसाद नहीं चाहते कि उनकी पार्टी में या महागठबंधन में किसी दूसरे यादव नेता का कद बढ़े। इसलिए उन्होंने वर्तमान वित्त मंत्री को घुमाफिरा कर अपने पुराने अंदाज में नीतीश कुमार का स्टेपनी करार दिया। इससे पहले भी वे यादव नेताओं को औकात बताते रहे हैं।
लालू की जिद
सपा के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र सिंह यादव टिकट बंटवारे के सवाल पर लालू की नीतियों की वजह से ही तीन-चार दिनों तक आमरण अनशन पर रहे। अपनी बेटी मीसा भारती को लोकसभा चुनाव लड़ाने पर लालू ऐसे अड़ गए थे कि अपने पुराने यस मैन रामकृपाल यादव की परवाह नहीं की। हालांकि यह भी कहा जाता है कि रामकृपाल यादव ने पहले ही तय कर रखा था कि वह भाजपा में शामलि होंगे. इसकी वजह राजद में उन्हें उचित सम्मान न मिलना था. हालांकि राम कृपाल ने जीत हासिल कर लालू को गंभीर चुनौती दी.
कभी लालू के साथ और अब अलग पार्टी जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक चला रहे पप्पू यादव ने जब एक यादव युवक की नृशंस हत्या का मामला उठाया तो लालू को लगा कि पप्पू यादव हीरो हो जाएंगे। फिर उन्होंने पप्पू यादव से मुद्दा छीनने के लिए राजनीति शुरू कर दी। अनंत सिंह को जेल भिजवाने का क्रेडिट लेने के लिए इसे प्रचारित करना शुरू किया कि मेरे ही कहने पर नीतीश कुमार ने अनंत सिंह जो जेल भेजा।
श्रेय लेने की होड़
नीतीश कुमार ने खुले मंच से कभी नहीं कहा कि मैं तो अनंत सिंह को जेल नहीं भेजना चाहता था, लेकिन लालू प्रसाद के कहने पर अनंत को जेल भेजा। राजनीति में ऐसा कई बार होता है कि खुद के आगे नेता अपनी ही जाति के नेताओं के पर कतरने लगता है। खुद को सामाजिक न्याय का पुरोधा बताने वाले लालू प्रसाद ने पहले तो अपने सालों को खूब बिगडऩे का मौका दिया था और जब लगा कि साले उनके लिए ही भस्मासुर न हो जाए तो औकात बताने में लग गए। स्वाभिमान रैली के मंच पर लालू अपने पूरे परिवार के साथ मंच पर आए। दो बेटे और एक बेटी। हद ये कि विजेन्द्र यादव को इस अंदाज में जलील करने के बावजूद नीतीश कुमार चुप रहे। शायद नीतीश कुमार लालू प्रसाद को खुश करने के आगे बाकी किसी यादव नेता की फिक्र नहीं करते। मुलायम सिंह यादव की भी नहीं। मुलायम भी अलग हो गए लालू नीतीश से।