राजद, कांग्रेस व जदयू गठबंधन के भविष्य को लेकर सवाल उठते रहे हैं। गठबंधन से बड़ा सवाल नेतृत्व का हो गया है। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने नेतृत्व के लिए नीतीश कुमार का नाम कर विवाद खड़ा कर दिया था, लेकिन शुक्रवार को तीनों पार्टियों के अध्यक्षों ने बैठक कर इस विराम लगाने की कवायद की और कहा कि नेता का चयन चुनाव के बाद किया जाएगा। इससे फिलहाल विवाद थम गया है, लेकिन खत्म नहीं हुआ है।
बिहार ब्यूरो
शुक्रवार को हुई बैठक में जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह, राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी शामिल हुए। इस बैठक में शामिल एक प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि लालू यादव व नीतीश कुमार का अभी दल मिला है, लेकिन दिल मिलने पर संशय बरकरार है। उन्होंने कहा कि दोनों के एक मंच पर चुनावी मंच पर एक साथ आने कोई आधिकारिक सूचना नहीं है, लेकिन तीनों पार्टियां चाहती हैं कि दोनों नेता एक मंच पर आएं, ताकि जनता के बीच इसका संदेश सकारात्मक जाए।
लेकिन खबर यह भी है कि दोनों नेताओं ने अभी तक एक मंच से भाषण करने के मुद्दे पर अपनी सहमति नहीं दी है। यही वजह है कि प्रदेश नेतृत्व सिर्फ संभावना जता रहा है, न तिथि घोषित कर रहा है और न जगह बता रहा है। राजनीतिक मजबूरियों में राजद व जदयू साथ-साथ आने को विवश हुए हैं, लेकिन दोनों भाइयों का दिल इसे स्वीकार नहीं कर रहा है। यानी दिल मिलने पर अभी संशय बरकरार है। 20 वर्षों तक एक –दूसरे की जड़ में मट्ठा डालकर राजनीति करने वाले दोनों भाइयों के लिए हाथ में लोटा लेकर जड़ में जल डालने को मन नहीं मान रहा है।
आधिकारिक सूत्रों की मानें तो दोनों की संयुक्त सभा होने की संभावना नहीं के बराबर है। वे दोनों अधिक से अधिक पटना में संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर गठबंधन को वोट देने की अपील कर सकते हैं और अलग-अगल चुनावी सभाओं में पहुंच सकते हैं। अब यह देखना मजेदार होगा कि जीतनराम मांझी के बयान के आलोक में बन रही राजनीति में जो नया संशय पैदा हुआ था, वह तीनों प्रदेश अध्यक्षों के बयान से थमेगा या गठबंधन की गांठ को ज्यादा रुखरा करेगा।