नरेंद्र मोदी फोबिया से पीडि़त लालू यादव व नीतीश कुमार के बीच शिखर वार्ता का सबको इंतजार है। करीब दो दशक तक दुश्मनी निभाने के बाद दोस्ती के लिए विवश हुए दोनों भाईयों के बीच गुरुवार को विधान परिषद में नीतीश कुमार के कक्ष में बातचीत होने के संकेत मिल रहे हैं। इस दौरान भावी रणनीति पर भी चर्चा होगी।
सामाजिक न्याय और सांप्रदायिक सौहार्द की राजनीति करने के नाम पर एक बार फिर नयी गोलबंदी के संकेत साफ हो गए हैं। उसका खाका भी दिखने लगा है। गैरभाजपा के नाम पर यह पहली गोलबंदी हो रही है, जिसमें राजद, कांग्रेस, जदयू के अलावा वामपंथी दल भी शामिल होंगे। भाजपा के साथ आठ साल सत्ता चलाने वाले नीतीश कुमार अब कांग्रेस व राजद के साथ मिलकर शेष अवधि की सरकार को निरापद रखना चाहते हैं।
गैरभाजपा वाद के इस दौर में कुनबे के दलों का आपसी विश्वास लगातार आशंका से घिरा रहेगा। नेतृत्व का संकट भी बरकरार रहेगा। यह तय है कि नेतृत्व की लड़ाई राजद व जदयू के बीच में होगा। इस बीच दोनों के विलय की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन फिलहाल दोनों नेताओं के बीच बातचीत उपचुनाव की रणनीति को लेकर ही होगा। सीटों का तालमेल, लेन-देन और उम्मीदवारों को लेकर भी चर्चा संभावित है।
बताया जाता है कि एक-एक कर सत्ता हाथ से निकलते जाने से लालू यादव आहत हो गए हैं और काफी परेशान भी रह रहे हैं। ऐसे में नीतीश के साथ मिलकर सत्ता तक पहुंचने के नये रास्ते तलाश रहे हैं। जीतन राम मांझी सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को आठ स्टाफ की सुविधा देकर लालू यादव दंपति को बड़ी राहत दी है। इससे वह गदगद हो गए हैं। जदयू व जीतन राम मांझी को मदद करके वह अपना आभार भी जताना चाहते हैं। लेकिन सबसे बड़ी वजह है अस्तित्व की रक्षा। लालू व नीतीश दोनों अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए साथ-साथ आ रहे हैं और साथ-साथ कब तक चलेंगे, यह कहना जल्दबाजी होगी।