प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय अभियान को जारी रखने के लिए बिहार भाजपा नीतीश-लालू के विरोध से आगे की सोच रही है। वह लालू-नीतीश के राजनीतिक विरोध के इतर नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों के सहारे मैदान में सींचना चाहती है। इसकी रणनीति बनाने में भाजपा का प्रदेश नेतृत्व जुट गया है।
वीरेंद यादव
विधानमंडल दल के नेता सुशील मोदी इस मुद्दे पर गंभीर होमवर्क में जुट गए हैं, जबकि विधान सभा में विपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव सुशील मोदी के साथ चलने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। अभी तक उनकी कार्यशैली मोदी से अलग नजर नहीं आ रही है।
भाजपा अभी मुख्यत: चार बिंदुओं पर काम कर रही है। इसका पहला मकसद है जनाधार का विस्तार। इसके लिए सदस्यता अभियान चलाया जा रहा है। यह काम व्यापक स्तर पर हो रहा है। इसके लिए संगठन विभिन्न स्तरों पर काम कर रहा है। दूसरा मुख्य बिंदु है सामाजिक समीकरण। भाजपा राजद और जदयू के आधार वोटों पर निगाह टिकाए हुए हैं। इसके लिए सामाजिक और जातीय गणित पर मंथन हो रहा है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि यादव जाति का 25 से 30 प्रतिशत वोट भाजपा में शिफ्ट हो गया तो लालू यादव के लिए अपना नेतृत्व बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा।
तीसरा बिंदु है कि भाजपा अपने लिए ‘नमो नाम के अमृत रस’ को संजीवनी मान रही है। भाजपा चुनाव के पूर्व सीएम के उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं करेगी। वह नरेंद्र मोदी के नाम पर ही वोट मांगेगी और बिहार में अपने शासन काल के ‘सुशासन’ को प्रमुखता से उठाएगी। भाजपा का अंतिम मंत्र है लालू-नीतीश-मांझी की विफलता को दरकिनार करना।
भाजपा नेता अब नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों और विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिल रही सफलता को अपना अमोघ अस्त्र बनाएगी। भाजपा जनविश्वास की नयी व्याख्या करेगी। चुनाव के वर्ष में प्रचार अभियान पर सान चढ़ाया जाएगा। सभी खेमा इसमें जुट गए हैं, लेकिन भाजपा की तैयारी फिलहाल अन्य पर भारी पड़ रही है।
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