रांची की सीबीआई अदालत ने लालू प्रसाद को दोषी करार दे दिया लेकिन उसी वक्त कुछ चैनलों ने लालू को निर्दोष बरी करने की खबर चला दी. ऐसा क्यों और कैसे हुआ ?
नीतीश चंद्र, टीवी पत्रकार
आज सबक लेने का दिन है रिपोर्टर्स और संपादकों के लिए। रांची में चारा घोटाला मामले में लालू यादव के बरी हो जाने की गलत खबर जिस तरह से कई चैनलों पर चली वो हर कीमत पर खबर पहले ब्रेक करने की उसी होड़ का नतीजा है जो दिनों दिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बढ़ती ही जा रही है।
सीनियर आईपीएस अधिकारी नटराजन पर यौन शोषण के आरोप से जुड़े मामले पर भी आज ही फैसला आना था। नटराजन के वकील ने जैसे ही कोर्ट से बाहर आकर विक्ट्री साइन दिखाया और एक्विटल कहा कि कई रिपोर्टर्स ने उसे लालू का वकील समझकर लालू यादव के बरी होने की गलत खबर ब्रेक कर दी। किसी ने आगे ये सुनने और समझने की जरूरत नहीं समझी कि वकील किसके एक्विटल की बात कह रहा है और वकील किसका है। खबर पहले ब्रेक करनी है सो रुकने और इंतजार कर पूरे मामले को समझने की फुर्सत किसके पास है। हालांकि थोड़ी देर बाद ही खबर को सुधार लिया गया लेकिन भद तो पिट गयी न, क्या जरूरत थी कुछ सेकेंड के लिए गलत खबर ब्रेक कर अपने ऊपर बने भरोसे को कम करने की।
इन्हीं चैनलों की खबर को देखकर पटना में भी लालू यादव के घर के बाहर जश्न शुरू हो गया। इसी भ्रम में लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप भी घर से बाहर आ गए और समर्थकों से शांति बनाए रखने को कहकर अंदर चले गए।
दरअसल ये भी सच है कि रिपोर्टर्स पर हेडऑफिस की तरफ से सबसे पहले खबर ब्रेक करने का काफी दवाब भी होता है और ऐसे ही दवाब की वजह से ऐसी गलतियां भी होती हैं। संपादकों को भी सोचना होगा कि क्या खबर पहले ब्रेक करने का इतना अधिक दवाब रिपोर्टर्स पर बनाने की वाकई जरूरत है ? एक मिनट का फर्क क्या वाकई इतना कुछ नुकसान पहुंचा देगा चैनल को जिसके लिए ऐसा रिस्क लेने की जरूरत हो। हालांकि खबरों को लेकर रिपोर्टर्स की भी जिम्मेदारी जरूर बनती है कि वो सही खबर बताये लेकिन सबसे आगे होने के दवाब में खड़ा रिपोर्टर जिस मनः स्थिति में रिपोर्टिंग कर रहा होता है उसमें ऐसे खतरे की गुंजाइश तो बनी ही रहेगी।
नोट- चारा घोटाला मामले में सीबीआई कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को निर्दोष करार दिया जबकि लालू यादव को दोषी ठहराया. लालू की सजा पर 3 फरवरी को फैसला होगा.