लखनऊ में दो साल में तीन एसएसपी आये-गये पर अनेक व्यवसाइयों की हत्या के आरोपी छुट्टा घूम रहे हैं जबकि हर एससपी पीड़ितों से नये सिरे से छानबीन करते हैं और चले जाते हैं.
सुरिन्दर पाल सिंह, लखनऊ
सूबे की राजधानी लखनऊ में पुलिस प्रमुख के पद पर तैनात होने वाला हर आईपीएस अफसर लम्बित मामलों के शीघ्र निस्तारण, अनसुलझी वारदातों को जल्द सुलझाने और अपराधों पर अंकुश लगाने जैसे तमाम दावे करता है पर हकीकत इन अफसरों के दावों से बेहद परे है. राजधानी के तत्कालीन पुलिस प्रमुख डी. के. ठाकुर के कार्यकाल में हुई के.बी.सी. चश्मेवाले के मालिक गुलाब टेक चंदानी की हत्या का मामला इस हकीकत को बयां करने के लिए काफी है.
गुलाब टेक चंदानी के परिवार वाले इस खौफनाक घटना को याद कर आज भी सहम जाते हैं. वह दहशत में हैं.इसलिए कि हत्यारे अब भी पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं. वारदात को दो साल होने को हैं. इन दो सालों में डी.के. ठाकुर सहित तीन पुलिस प्रमुख बदल चुके हैं और चैथा आईपीएस अफसर राजधानी पुलिस की कमान संभाल रहा है.बड़ा सवाल यह कि हर पुलिस प्रमुख ने अनसुलझी वारदातों को जल्द सुलझाने का दावा किया पर चंदानी हत्याकाण्ड का खुलासा करने में यह सभी नाकाम साबित हुए.
पुलिस प्रमुख आते हैं, चले जाते हैं
तत्कालीन पुलिस प्रमुख डी. के. ठाकुर का तबादला होने के बाद आईपीएस अफसर आशुतोष पाण्डेय राजधानी के पुलिस प्रमुख के पद पर तैनात हुए. इनके कार्यकाल में भी यह वारदात पहेली बनी रही. इसके बाद आईपीएस अफसर आर. के. चतुर्वेदी ने पुलिस प्रमुख के पद का कार्यभार ग्रहण किया. पर अपने कार्यकाल में यह अफसर भी इस हत्याकाण्ड की गुत्थी सुलझाने में असफल रहे.
बात वर्तमान समय की करें तो मामले की जांच ज्यों की त्यों है. राजधानी के वर्तमान पुलिस प्रमुख जे. रवीन्द्र गौड के अब तक के कार्यकाल में भी मामले की जांच किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी है. इस व्यापारी की हत्या का खुलासा न होना राजधानी पुलिस की कार्यशैली पर ढेरों सवाल खड़े कर रहा है. इधर चांदनी परिवार के राम टेक चांदनी कहते हैं- “हर नया अधिकारी नए सिरे से घटना के बारे में पूछताछ करता है. मामला सिर्फ पूछताछ तक ही सीमित रह जाता है. अब हमने जाना कि के पुलिस वाले कितने बेदर्द होते हैं. आज तक पुलिस भइया के उस लाइसेंसी पिस्टल का पता नहीं लगा सकी जो घटना के दिन भया के पास थी”. इधर लखनऊ के मौजूदा सीनियर एसपी जे रवींद्र गौड कहते हैं- “2011 में हुए चंदानी हत्याकाण्ड में अब तक हुई जांच पड़ताल के रिकार्ड देखने के बाद कुछ कहा जा सकता है”. गौड के कथन से यह साफ पता चल जाता है कि वह इस मामले में कितने गंभीर हैं.
यह घटना तो बानगी मात्र है जो अफसरों के दावों की पोल खोलती है. ऐसी ही न जाने कितनी ही वारदातें हैं जिनके खुलासे न होने के कारण बदमाशों के हौसले इस कदर बुलन्द हैं कि वह आए दिन व्यापारियों की सरेराह हत्याएं कर रहे हैं.
तालकटोरा थानाक्षेत्र में प्लाईवुड कारखाने के मालिक सुमित गुप्ता की हत्या बदमाशों के बुलन्द हौंसलों और राजधानी पुलिस की शिथिल कार्यप्रणाली का प्रत्यक्ष उदाहरण है. इतना ही नहीं बक्शी का तालाब थानाक्षेत्र में सर्राफा व्यवसाई राजपाल के घर हुई डकैती और बंथरा थानाक्षेत्र में सरेराह व्यापारी को गोली मारने जैसी वारदातों ने उजागर कर दिया है कि राजधानी पुलिस व्यापारियों की सुरक्षा को लेकर कितनी संजीदा है.
इसी तरह गोमतीनगर थानाक्षेत्र में बीते दिनों पत्नी के साथ घर लौट रहे पान मसाले का व्यवसाय करने वाले सतीश की हत्या का मामला हो या फिर खजुआ इलाके में किराना व्यवसाई के नौकर मनोज की गोली मारकर हत्या की सनसनीखेज वारदात. पुलिस की जांच में कोई प्रगति नहीं है.
अंततः सवाल यह है कि राजधानी के पुलिस प्रमुख के पद पर विराजने वाला हर आईपीएस अफसर आखिर कब तक यूं ही अपराधों पर अंकुश लगाने के खोखले दावे करता रहेगा? क्या राजधानी लखनऊ में कभी सच में ऐसा कोई आईपीएस अफसर पुलिस प्रमुख के पद पर तैनात होगा जो ऐसे दावों को हकीकत में तबदील कर सके?