नौकरशाही डॉट इन के सम्पादक इर्शादुल हक और हमारी सहयोगी ऋशाली यादव को दिये साक्षात्कार में बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बचपन में हुए शोषण का खुलासा किया जो दिल को दहलाने वाला है. पढिए साक्षात्कार की पहली किस्त
अगर मेरे पिता दस पसेरी चावल के एवज भूस्वामी के यहां मेरी गुलामी लिखवाने के दबाव में झुक गये होते तो मैं मुख्य मंत्री के बजाय आज भी खेतों में मजदूरी करता हुआ गुमनाम सा रहता.
कर्ज में चावल
मुख्यमंत्री ने अपने बचपन को याद करते हुए कहा कि मेरी शादी मात्र 11 साल की उम्र में कर दी गयी. मेरे ही साथ मेरे छोटे भाई( जिनकी मौत हो गयी) की शादी तो मात्र 3 साल की उम्र में कर दी गयी थी. एक गरीब और समाज के हाशिये की बिरादरी होने के कारण मुझे कई तरह की सामाजिक यातनायें झेलनी पड़ीं.जब मेरी शादी तय हुई तो हमारे समाज के चलन के अनुसार लड़का पक्ष ही लड़की पक्ष को चावल गिफ्ट करता था. इस प्रकार तय हुआ कि मेरी शादी में 10 पसेरी(50 किलो) चावल लड़की वालों को देना है. इस तरह दोनों भाइयों की शादी में 20 पसेरी चावल देना था. पिताजी (रामजीत राम मांझी) के लिए 20 पसेरी चावल की व्यवस्था करना असंभव था. मजबूर हो कर वह गांव के भूस्वामी के यहां पहुंचे. भूस्वामी चावल कर्ज देने पर सहमत तो हो गया, पर इस शर्त पर कि मुझे चावल के बदले उसके यहां गुलामी लिखवानी पड़ेगी. शर्तों के अनुसार पिताजी को बाजाब्ता उस कागज पर अंगूठे का निशान लगाना था कि मैं उनके यहां नियमित मजदूर के तौर पर काम करूंगा. मेरे पिता एक बंधुआ मजदूर की पीड़ा झेल चुके थे. इसलिए उन्होंने इस बात की चिंता न की कि मेरी शादी हो या न हो वह गुलामी के लिए बनने वाले दस्तावेज पर दस्तखत नहीं करेंगे. काफी दिन बीत गये. फिर कहीं और से मेरे पिताजी ने चावल कर्ज लिया, बदले में खुद मजदूरी करने को तैयार हुए. आज अगर मेरे नाम की गुलामी लिखवा ली गयी होती तो मैं क्या आज यहां( मुख्यमंत्री) होता ?
जीतन राम मांझी की अनकही दास्तान
किसी और शोषण का क्या जिक्र करूं? कोई एक हो तो कहूं. पूरा बचपन ऐसी घटनाओं से भरा है. पर मैं खुद को एक मिसाल समझता हूं. और मैं मानता हूं कि तमाम बाधाओं के बावजदू मैंने शिक्षा हासिल की. इसलिए हर समाज के लोग चाहे वह महादलित ही क्यों न हों, हर हाल में शिक्षा हासिल करें. मेरे समाज के लोग पीन-खाने पर बहुत खर्च करते हैं( उनका इशारा नशा की तरफ है). हर परिवार यह तय करे कि अपनी थोड़ी सी आमदनी में से भी भी कुछ बचा कर बच्चों को पढायेगा.
मीडिया और विरोधियों का रवैया ?
देखिए शोषण के मामले में आज भी हमारा समाज बहुत नहीं बदला है. उन्हें एक दलित से आज भी चिढ़ है. पर हम उनके रवैये पर ध्यान नहीं देते. हम काम में भरोसा करते हैं. मीडिया का एक हिस्सा, मनुवादी समाज और विरोधी दल जो चाहें बोलें. हमने विधान सभा में बोल भी दिया है. अब हमें उनके बारे में कुछ नहीं बोलना. हम काम से ही उन्हें जवाब देंगे.
कुछ लोग आपको रबड़ स्टॉम्प कहने में नहीं हिचके.
मैंने कहा कि उन्हें जो बोलना है बोलते रहेंगे. हम काम करेंगे. पर मैं आप को बताऊं कि सरकार और संगठन दो चीजें होने के बावजूद लक्ष्य एक ही रखते हैं. फिर भी सरकार अपना काम करती है और संगठन अपना. लेकिन हम संगठन के किसी भी पदाधिकारी के सुझाव को जरूर सुनेंगे. अगर उनका सुझाव अच्छा लगेगा तो हम उस काम को करेंगे. अगर लगा कि उनका सुझा ठीक नहीं तो हम बिल्कुल भी उस पर अमल नहीं करेंगे.
महादलित समाज को आपसे उम्मीद ?
माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने बहुत कुछ किया है दलितों के लिए, बच्चियों के लिए. पहले स्कूल नहीं थे, टीचर नहीं थे. अब गांव-गांव में स्कूल भी हैं और टीचर भी. सड़कें हैं और काफी गांवों में बिजली भी है. हम इसकाम को जारी रखेंगे. और गति देंगे. यह बात जरूर है कि एक महादलित परिवार का आदमी हमें देख कर गर्व करेगा उसे प्रेरणा मिलेगी. हम पूरी कोशिश में हैं कि सरकार सबके विकास के लिए काम करे.
आप नीतीश कुमार से कितने प्रभावित हैं और नीतीश आपसे कितने प्रभावित हैं ?
आदरणीय नीतीश कुमार जी मुझसे कितने प्रभावित हैं, यह मुझे नहीं पता. पर इतना कह सकता हूं कि वह मुझसे प्रभावित थे तभी तो उन्होंने और आदरणीय शरद यादव जी ने मुझ पर भरोसा किया और आज मैं यहां हूं. नहीं तो मेरे जैसे बहुत लोग थे. जहां तक आदरणीय नीतीश जी से मेरे प्रभावित होने की बात है तो मैं बताऊं कि मैं 1980 से यानी 34 सालों से विधायक हूं. इन चौतीस सालों में मुझे सात मुख्यमंत्रियों के साथ काम करने का मौका मिला. लेकिन मैंने इस दौरान किसी भी मुख्यमंत्री में इतनी ऊर्जा, इतना बड़ा विजन और मेहनत करने की इतनी ललक किसी में नहीं देखी. आज नतीजा है कि बिहार की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है.
मुख्यमंत्री बनने की कल्पना
मैंने अभी कहा कि मैं 1980 से विधायक हूं. इस पूरे पीरियड में सिर्फ एक टर्म मैं मंत्री नहीं रहा. वरना हर सरकार में, भले ही दो साल, तीन साल के लिए ही सही, मंत्री जरूर रहा. एक मंत्री के तौर पर किस की इच्छा नहीं होती कि वह मुख्यमंत्री बने. पर इच्छा होना या कल्पना करना एक बात है पर सपना पूरा होना दूसरी बात. आज सपना पूरा हुआ.
दिन चर्या
एक साधारण इंसान हूं. सुबह चार बजे जगता हूं. सुबह में सत्तू पीना. फिर जो मिला वह खा लेना. दिन भर काम में लगे रहना. दो पहर में भोजन मिले तो करना, न मिले तो कोई बात नहीं. हां ननवेज भी खाता हूं.
साक्षात्कार की दूसरी किस्त कल